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- "बुंदेलखंड के शेर डॉ...
मौत से कहना अब हमसे नाराजगी खत्म कर दे।
ले जा रही है मौत मुझे को मेरी माँ और बापू से दूर कर के।
बहुत अरमान थे उनके, मेरे लिए,पर मौत लेकर जा रही है, मुझको उनके सब अरमान तोड़ के।
मरीजों के इलाज एवं सेवा के लिए डॉक्टरी पेशे में डॉक्टरों को शपथ दिलाई जाती है। अक्सर डॉक्टर शपथ लेते हैं, दिखावे के लिए पर डॉक्टर शुभम उपाध्याय जो शपथ ली उसको सही साबित किया। उसने जी जान से कोरोना मरीजों की सेवा की और मात्र 26 वर्ष की आयु में इस दुनिया को अलविदा कह दिया।
एक छोटे से शहर का होनहर बालक जिसने अपने माता पिता का सपना पूरा करने के लिए सफेद कोट पहना था। जब पहली बार सफेद कोट पहनकर माँ बाप के सामने आया तो उनके पिता की छाती गर्व से चौड़ी हो गई थी। खुशी के मारे पिता के आँख से आँसू बह रहे थे, उन्होंने सोचा था उनका बुढ़ापा बहुत आसानी से गुजर जाएगा बुढ़ापे की होने वाली बीमारियों की देखरेख उनका होनहार डॉक्टर बेटा करेगा पर किस्मत को तो कुछ और मंजूर था, बूढ़े बाप के कंधे पर जवान बेटे की अर्थी, इससे बड़ा दुख दुनिया में कुछ और नहीं होता जब पिता को यह खबर मिली की उनका बेटा डॉक्टर शुभम उपाध्याय अब नहीं रहा,तो मानो उनके पैरों से ज़मीन खिसक गई हो।
बार-बार उनके मन में यही विचार आ रहा था अभी कल ही की तो बात है, जब बेटे का नीट का परिणाम आया था, परिणाम देख कर शुभम खुशी में झूम रहा था, सबसे पहले मेरे पास दौड़ता हुआ आया, मेरे पैर छुए मुझसे और अपनी माँ से आशीर्वाद लिया। ऐसा लग रहा था शुभम को पूरी धरती की दौलत मिल गई हो, पर शुभम को क्या मालूम था की यह खुशी मात्र 7 साल में चकनाचूर हो जाएगी।
वह दिन भी आया जिस दिन मेरे बेटे को एमबीबीएस की डिग्री दी गई, उस दिन मुझे लगा आज मेरा बेटा मुकम्मल डॉक्टर बन गया, मेरा मन तो यह कर रहा था मैं झूम झूम के नाचू जोर जोर से चिल्लाऊ, आज मेरा बेटा डॉक्टर बन गया, फिर वह दिन भी आ गया जिस दिन के लिए माँ-बाप सालों इंतजार करते हैं,शुभम को संविदा पर नौकरी मिल गई। मेरे बेटे ने इसी साल आठ अप्रैल को सागर के बुंदेलखंड मेडिकल कॉलेज में संविदा चिकित्सक के रूप में ड्यूटी ज्वाइन की। शुभम को कोविड-19 मेडिकल अधिकारी बनाया गया। एक बार मन में कोरोना को लेकर मुझे और मेरी पत्नी को चिंता थी पर शुभम का जोश देखकर वह चिंता भी खत्म हो गई बार-बार शुभम अपनी प्रतिज्ञा को मुझे याद दिलाता, मैं उसके जज्बे को देखकर चुप हो जाता।
अप्रैल माह से शुभम दिन रात कोरोना के मरीजों की सेवा कर रहा था, कब कोरोना के कीटाणु उसके शरीर में प्रवेश हो गए पता ही नहीं चला और 28 अक्टूबर को कोरोना वायरस से संक्रमित पाए गए और तब से लेकर 10 नवंबर तक उनका इलाज सागर के बुंदेलखंड मेडिकल कॉलेज में चल रहा था, लेकिन उनकी स्थिति अत्यधिक खराब होने के कारण उसे 10 नवंबर को भोपाल के चिरायु अस्पताल में रेफर किया गया और तब से उनका इलाज इसी अस्पताल में चल रहा था। शुभम के इलाज के दौरान जब उसके फेफड़ों की जांच की गई तो पता चला उसके फेफड़े 96% खराब हो चुके हैं।
डॉक्टर शुभम उपाध्याय को फेफड़े ट्रांसप्लांट करवाने के लिए चेन्नई के एमजीएम अस्पताल ले जाने की तैयारी चल करने लगे। चेन्नई के चिकित्सकों की टीम भोपाल स्थित चिरायु अस्पताल में आकर उसकी निरंतर निगरानी भी कर रही थी। मध्यप्रदेश सरकार ने उसके इलाज का पूरा खर्च राज्य सरकार वहन करने का आश्वासन दिया। चिकित्सक विचार कर रहे थे कि जैसे ही वह थोड़ा स्थिर लगेगा, उसे बेहतर उपचार हेतु भोपाल से विमान के जरिए चेन्नई ले जाया जाएगा, लेकिन जिंदगी पर हावी हो गई मौत और हमारे प्रदेश के होनहार डॉक्टर शुभम उपाध्याय ने दम तोड़ दिया।
ऐसे कोरोना वीर योद्धा को सलाम, ऐसे होनहर डॉक्टर कम ही पैदा होते हैं, जिसने मात्र 26 वर्ष की आयु में अपने प्रदेश का नाम रोशन किया।
अलविदा शुभम
तुम को सलाम शुभम
जिंदगी तो बेवफा है,
एक दिन ठुकराएगी।
मौत महबूबा है,
अपने साथ लेकर जाएगी।
मोहम्मद जावेद खान