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यूं तो एमपी में बलात्कार की खबरें आम हैं।घर से लेकर होटलों और खेत से लेकर जंगल तक बलात्कार होते ही रहते हैं।लेकिन अब सरकारी स्कूल भी बलात्कार का केंद्र बन रहे हैं। कोई और नही खुद स्कूल के शिक्षक नाबालिग बच्चियों के साथ बलात्कार कर रहे हैं।
2023 के जुलाई महीने में ऐसी कई खबरें सामने आईं।चूंकि "सरकार" चुनाव की तैयारी में व्यस्त है इसलिए उसका ध्यान अभी सिर्फ "वोट" के जुगाड पर केंद्रित है।और विपक्ष उसे भी इन मामलों पर बात करने की फुर्सत नहीं है।ऐसे में जब डाकू से लेकर महात्मा तक, सब बलात्कार कर रहे हैं तो शिक्षक भी कर लें तो कौन सा आसमान टूट पड़ेगा!शायद यही सोच सब पर भारी पड़ रही है?
ताजा मामला आदिवासी बहुल बैतूल जिले के घोड़ाडोगरी ब्लॉक का है।सरकारी मिडिल स्कूल के प्रभारी हेडमास्टर भीमराव लांजीवार ने गत 7 जुलाई को स्कूल में ही एक छात्रा के साथ बलात्कार किया।छात्रा के परिजनों ने कोतवाली में एफआईआर दर्ज कराई!करीब 20 दिन बाद 26 जुलाई को पुलिस ने बलात्कारी हेडमास्टर को गिरफ्तार किया।फिलहाल वह जेल में है।सरकार ने उसके निलंबन का आदेश जारी करके अपना कर्तव्य पूरा कर लिया है।
शुरुआती जांच में सामने आया है कि हेड मास्टर सातवी और आठवीं की छात्राओं को पीने का पानी लाने के बहाने अपने कक्ष में बुलाता था और उनके साथ छेड़खानी करता था।करीब आधा दर्जन लड़कियों ने उसकी इन हरकतों का खुलासा किया है।वह जान से मार देने की धमकी देता था इसलिए लड़कियां चुप रहीं।एक लड़की के साथ बलात्कार के बाद मामला खुला।
हेड मास्टर के निलंबन के बाद सरकार चुप बैठ गई है।अब आगे कानून अपना काम करेगा।उसका काम कब पूरा होगा यह तो भगवान जाने! लेकिन बलात्कारियों के घर पर बुलडोजर चलवाने वाले "मामा" की नजर भी इस ओर नही गई है।यही वजह है कि नाबालिग शिष्या के साथ बलात्कार करने वाले नरपिशाच हेडमास्टर का घर अभी तक सुरक्षित है।
दो दिन पहले राजधानी भोपाल की बैरसिया तहसील के सरकारी स्कूल में एक शिक्षक द्वारा 14 साल की छात्रा से छेड़छाड़ की भी खबर आई थी।
इससे पहले आदिवासी जिले झाबुआ से ऐसी ही खबर आई थी।झाबुआ के एसडीएम सुनील कुमार झा आदिवासी लड़कियों के लिए बने छात्रावास का औचक निरीक्षण करने पहुंचे।उन्होंने वार्डन को बाहर कर दिया और अकेले में लड़कियों से बात की।11 से 13 साल तक की उम्र की इन बच्चियों के मुताबिक एसडीएम ने उन्हें गलत ढंग से गलत जगह पर छुआ।उनसे सैनिटरी पैड के बारे में सवाल जवाब किए।कुछ छात्राओं को गले भी लगाया।
एसडीएम के जाने के बाद बच्चियों ने अपनी वार्डन को पूरी बात बताई।वार्डन ने जिले की कलेक्टर तक जानकारी पहुंचाई।युवा महिला कलेक्टर ने तत्काल पुलिस में शिकायत दर्ज कराने का निर्देश दिया।शिकायत दर्ज होने के बाद एसडीएम को गिरफ्तार किया गया।झाबुआ से भोपाल तक खूब हंगामा हुआ।उन्हें सस्पेंड भी कर दिया गया।
सबसे मजेदार बात इसके अगले दिन हुई।पूरा राजस्व अमला एक हो गया।विशेष अदालत में एसडीएम की जमानत की अर्जी लगी।तहसीलदार से लेकर अन्य कर्मचारियों ने एक स्वर में छोटी छोटी आदिवासी बच्चियों को झूठा बता दिया।उनके बयानों के आधार पर विशेष अदालत ने एसडीएम को जमानत दे दी।इसके चलते एसडीएम साहब एक दिन बाद ही जेल से रिहा हो गए।
बच्चियां बार बार यह कहती रहीं कि जब एसडीएम उनसे बात कर रहे थे तब वे उनके साथ अकेले ही थे।वार्डन को बाहर कर दिया था।लेकिन बड़े अफसरों के आगे इन आदिवासी बच्चियों की आवाज दब गई !अदालत के आगे युवा महिला कलेक्टर भी लाचार दिखी!
इसी जुलाई में एक मामला बुंदेलखंड के निवाड़ी जिले में भी हुआ।जिले के नया खेड़ा गांव के प्रायमरी स्कूल के प्रधान अध्यापक सियाराम अहिरवार स्कूल में ही रासलीला रचाते थे।उन्होंने स्कूल में बच्चों के लिए खाना बनाने वाली महिला से संबंध बना लिए थे।वे अक्सर स्कूल के ही एक कमरे में उस महिला के साथ बंद हो जाते।बच्चों ने सब कुछ देखा।उन्होंने अपने अभिभावकों को बताया।गांव के लोगों ने हेडमास्टर को ऐसा करने से रोका तो उन्होंने गांव वालों को एस सी एक्ट में फंसाने की धमकी दे डाली।
सियाराम जब नही माने तो गांववालों ने उनके वीडियो बनाना शुरू किए।कई वीडियो बनाने के बाद उन्होंने जिले के कलेक्टर से लेकर मुख्यमंत्री तक शिकायत की।राज्य मानव अधिकार आयोग को भी सबूत के साथ शिकायत की।
इसके बाद भी जब उनकी सुनवाई नहीं हुई तब वे सड़क पर उतरे।ट्रेक्टर खड़े करके सड़क रोकी।जब हंगामा हुआ तब कलेक्टर की नींद खुली।उनके आदेश के बाद हेडमास्टर सियाराम को निलंबित करके दुसरे दफ्तर में अटैच किया गया।सरकारी परंपरा के मुताबिक जांच भी कराई जा रही है।
नया खेड़ा गांव के लोग चाहते हैं कि शिक्षा के मंदिर को अय्याशी का अड्डा बनाने वाले हेडमास्टर को बर्खास्त किया जाए।क्योंकि अगर वह नौकरी में रहा तो किसी और स्कूल में यही सब करेगा।गांव के लोग भोपाल आकर हर देहरी पर मत्था टेक गए हैं।वीडियो की पेनड्राइव भी दे गए हैं और प्रिंट भी। वे अपने बच्चों के भविष्य को लेकर चिंतित हैं।लेकिन उनकी चिंता में सरकार शामिल नहीं हो रही है।
स्कूल के भीतर महात्मा गांधी की तस्वीर के नीचे रासलीला करने वाले हेडमास्टर के बारे में कौन सोचे? वैसे भी अब तो गांधी की जगह गोडसे ले रहे हैं।उम्मीद की जाती है कि छोटे छोटे बच्चे बच्चियों के बारे में सरकार जरूर सोचेगी!खासतौर पर जब राज्य में "मामा" की सरकार हो। मामा को पूरे सबूत भी उपलब्ध कराए गए हों!क्योंकि शिक्षक का यह आचरण घोर कदाचरण की श्रेणी में आता है।
लेकिन कौन सुने! पुलिस "वीआईपी व्यवस्था" में लगी है! सरकार चुनाव में व्यस्त है।वह बहनों के खातों में हर महीने हजार रुपए डाल रही है।उनके नंगे पांव में चप्पल पहना रही है।लेकिन उनकी बच्चियों की सुरक्षा और सरंक्षण के लिए उसके पास समय नही है!अभी तो उसे सिर्फ अपनी चिंता सता रही है।
एक हेडमास्टर स्कूल में बच्चियों से बलात्कार कर रहा है।दूसरा स्कूल में बच्चों के सामने रंगरेलिया मना रहा है।एक मास्टर बच्ची को छेड़ रहा है।एसडीएम जांच के बहाने आदिवासी बच्चियों से छेड़छाड़ कर रहा है!
ये तो कुछ उदाहरण हैं। रोज अखबारों में प्रदेश भर की ऐसी खबरें छपती रहती हैं! पर बड़े बड़े सरकारी विज्ञापनों के नीचे दब जाने वाली इन खबरों पर किसका ध्यान है ?इनके लिए किसके पास समय है ?
राष्ट्रीय क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों में दर्ज होना ही इन खबरों की नियति बन गई है।सबसे मजे की बात यह है कि सरकार कह रही है कि राज्य का एक तिहाई बजट वह बच्चियों,किशोरियों,महिलाओं और बुजुर्ग महिलाओं पर खर्च कर रही है!अब हम क्या कहें..यही न कि अपना एमपी गज्जब है! आपकी क्या राय है!
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