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- मध्यप्रदेश में सिंधिया...
मध्यप्रदेश में सिंधिया को पहला झटका, देना होगा उनके दो मंत्रियों को इस्तीफा
मालूम हो कि किसी भी नेता को मंत्री पद की शपथ लेने के 6 महीने के भीतर विधानसभा का सदस्य बनना जरूरी है,अन्यथा 6 माह पूरा होते ही मंत्री पद चला जाएगा। लेकिन कोरोना काल में अब तक उपचुनाव नहीं हो पाए हैं।वही आज उम्मीद लगाई जा रही थी, कि चुनाव आयोग बिहार के चुनावों के साथ उपचुनावों की भी तारीखों का ऐलान कर सकता है, लेकिन ऐसा नही हुआ, इसके लिए 29 को बैठक बुलाई गई है।
चूँकि विधायक पद से इस्तीफा देकर ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) के साथ बीजेपी ज्वाइन करने के बाद सबसे पहले 21 अप्रैल को संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार मुख्यमंत्री की अनुशंसा पर दोनों मंत्रियों तुलसी सिलावट और गोविंद सिंह राजपूत (Tulsi Silvat and Govind Singh Rajput) ने मंत्री पद की शपथ ली थी, ऐसे में अब 21 अक्टूबर तक विधानसभा के लिए निर्वाचित न होने पर दोनों नेताओं को अपने मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ सकता है।
जानकारों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट का निर्णय है कि कोई व्यक्ति लोकसभा और विधानसभा का चुनाव जीते बिना मंत्री बन जाता है तो वह छह माह तक ही पद रह सकता है। उसे इन छह माह में चुनाव जीतकर सदन का सदस्य बनना जरूरी है। यदि उसे सदन का सदस्य बने बिना दोबारा मंत्री बनाना है तो पहले इस्तीफा देना होगा । लेकिन मुसीबत यह है कि गोविंद राजपूत और तुलसी सिलावट को अगर दोबारा मंत्री की शपथ दिलाई जाएगी तो यह आचार संहिता का उल्लंघन होगा क्योंकि यह लोग उस समय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ रहे होंगे और इसलिए अब यह तय है कि इन दोनों को इस्तीफा देना ही होगा और अगर मंत्री दोबारा बनते हैं तो उसके लिए विधायक का चुनाव जीतना जरूरी भी होगा।
वही दूसरी तरफ मंत्रिमंडल में भी निर्धारित संख्या से ज्यादा मंत्री बनाए गए हैं। वर्तमान में शिवराज मंत्रिमंडल में मुख्यमंत्री समेत कुल सदस्यों की संख्या 34 है, जो कि नियम के विरुद्ध है, क्योंकि राज्य में विधानसभा की सदस्य संख्या 230 है, उसके अनुसार प्रदेश में अधिकतम 35 मंत्री हो सकते हैं, लेकिन 3 विधायकों की मृत्यु और 25 सिंधिया समर्थक विधायकों के इस्तीफे के कारण इस वक्त विधानसभा की सदस्य संख्या 202 है, ऐसे में मंत्रियों की संख्या पर भी सवाल खड़े होना लाजमी है, हालांकि कांग्रेस इस पर पहले ही आपत्ति जता चुकी है