भोपाल

शिवराज ही नहीं इस बड़ी वजह से दिग्विजय, उमा भारती, सुंदरलाल पटवा भी नहीं बचा सके थे अपना किला!

Special Coverage News
13 Dec 2018 12:58 PM IST
शिवराज ही नहीं इस बड़ी वजह से दिग्विजय, उमा भारती, सुंदरलाल पटवा भी नहीं बचा सके थे अपना किला!
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कुछ मिथक कुछ विश्वास कुछ तथ्य ऐसे बन जाते हैं कि वो समय दर समय खुद को सत्य साबित करते चलते हैं। उज्जैन जिला यूं तो महाकाल शिवशंकर की वजह से पूरी दुनिया में विख्यात है। प्रत्येक बारह वर्ष में यहां सिंहस्थ कुंभ आयोजित होता है। 2016 में भी यहां कुंभ आयोजित हुआ था और तब से लगातार यह बात गाहे-बगाहे सामने आ रही थी कि राज्य का मुखिया बदल सकता है। लगभग 60 साल पहले बने इस सूबे में पांच सिंहस्थ हो चुके हैं और संयोग से हर बार मुख्यमंत्री बदल गए हैं।

11 दिसंबर को आए विधानसभा चुनाव के नतीजों ने जिस तरह से भाजपा और शिवराज का विजय रथ रोका, उससे एक बार फिर यह सवाल खड़ा हो रहा है कि क्या वाकई सिंहस्थ की वजह से मध्यप्रदेश में सत्ता बदली है।

2004 का सिंहस्थ

अप्रैल-मई 2004 के सिंहस्थ की तैयारी दिग्विजय सिंह ने बतौर मुख्यमंत्री शुरू की थी। फिर 2003 के विधानसभा चुनाव आए और कांग्रेस की सरकार चली गई। इसके बाद मुख्यमंत्री बनी थीं उमा भारती। उमा ने बाद में अपने मुख्यमंत्रित्व काल में सिंहस्थ संपन्न कराया और अगस्त में उन्हें अचानक कुर्सी छोड़नी पड़ी।

1992 का सिंहस्थ

सुंदरलाल पटवा सीएम थे। सिंहस्थ पूरा कराने के छह माह बाद ही उनकी तो पूरी सरकार बर्खास्त कर दी गई और राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया।

1980 का सिंहस्थ

जनता पार्टी की सरकार में सुंदरलाल पटवा मुख्यमंत्री थे। एक माह भी नहीं टिक पाए और उनकी सरकार चली गई। इसके पहले भी जो दो कुंभ हुए उनमें तत्कालीन मुख्यमंत्रियों को किसी न किसी कारण से अपना पद गंवाना पड़ा था।

इतिहास पर नजर

महाकाल की नगरी उज्जैन में आयोजित सिंहस्थ का आयोजन तो सदियों से होता रहा है। लेकिन मध्यप्रदेश में सिंहस्थ के दौरान मुख्यमंत्रियों की विदाई एक संयोग है या कोई शिव का तांडव कहां नहीं जा सकता। वर्ष 1956 में जब मध्यप्रदेश का गठन हुआ था उस वक्त उज्जैन में सिंहस्थ आयोजन 8 माह पूर्व ही सम्पन्न हुआ था।


उस समय प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री रविशंकर शुक्ला ने एक नवंबर से 31 दिसंबर 1956 तक प्रदेश की (दो माह के लिए) बागडोर संभाली। लेकिन उसके बाद जितने भी सिंहस्थ हुए उस समय भारतीय जनता पार्टी या संघ के समर्थन वाली संविद सरकार के मुख्यमंत्री रहे हैं और उनका सिंहस्थ के दौरान जाना तय माना गया है। इसे महज संयोग ही नहीं कहा जा सकता। मध्यप्रदेश में सिंहस्थ के समय मुख्यमंत्रियों की विदाई एक परंपरा बन चुकी है। 1956 के बाद वर्ष 1968 के बाद सिंहस्थ आयोजित हुआ और उसके 11 माह के भीतर ही 12 मार्च 1969 को गोविंद नारायण सिंह को मुख्यमंत्री पद से हटना पड़ा था।

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