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अरुण दीक्षित
भोपाल।मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ की गुरुवार को दिल्ली में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से लम्बी मुलाकात ने एक बार फिर कमलनाथ विरोधियों के कान खड़े कर दिए हैं।
जी 23 के अस्तित्व में आने के बाद जहां सभी पुराने प्रमुख नेता गांधी परिवार के सामने खड़े दिखाई दे रहे हैं वहीं कमलनाथ की गांधी परिवार से नजदीकी एक अलग संदेश दे रही है।यही बजह है कि पार्टी के भीतर कमलनाथ की लाइन को छोटा करने की कोशिश करने वाले नेता असमंजस में पड़ गए हैं।
कांग्रेस सूत्रों के मुताविक कमलनाथ आज सबेरे दिल्ली में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मिले।यह मुलाकात एक घण्टे से भी ज्यादा चली। भरोसेमंद सूत्रों के मुताविक सोनिया ने कमलनाथ से पार्टी के अंदरूनी हालात पर विस्तार से बात की।खासतौर पर महाराष्ट्र और गुजरात पर चर्चा हुई है।
उल्लेखनीय है कि भाजपा के सघन अभियान के बाद भी देश के प्रमुख राज्यों में कांग्रेस भाजपा को कड़ी टक्कर दे रही है।उत्तर से शुरू करें तो पंजाब,हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, राजस्थान,गुजरात,महाराष्ट्र, गोवा , मध्यप्रदेश, कर्नाटक,केरल,छत्तीसगढ़, झारखंड तथा पूर्वोत्तर के राज्यों में कांग्रेस और भाजपा में सीधा मुकाबला है।
यह भी सच है कि दिल्ली, उत्तरप्रदेश, बिहार,बंगाल,ओडिशा,तमिलनाडु, तेलंगाना, आंध्रप्रदेश और जम्मूकश्मीर में कांग्रेस की हालत बहुत ही खराब है। राजस्थान और मध्यप्रदेश में भी अंतर्कलह ने कांग्रेस को खोखला कर दिया है।
राहुल गांधी द्वारा अध्यक्ष पद छोड़े जाने के बाद कांग्रेस में अनिर्णय का जो माहौल बना है उसने बहुत नुकसान किया है। इसी के चलते राहुल के इर्दगिर्द रहे कई युवा नेता पार्टी छोड़ गए हैं।ज्योतिरादित्य सिंधिया,जितिन प्रसाद,प्रद्योत माणिक देववर्मा ,प्रियंका चतुर्वेदी, दिव्या स्पंदन आदि वे नाम हैं जो आज पार्टी से बाहर हैं।इनमें सबसे ताजा नाम सुष्मिता देव का जुड़ा है । उन्होंने दो दिन पहले ही पार्टी छोड़ी है। वे अब ममता बनर्जी के लिए काम करेंगी।
सबसे खास बात यह है कि कांग्रेस छोड़ने वाले इन नेताओं में ज्यादातर वे हैं जिनके पिता पार्टी में अहम भूमिका निभाते रहे थे। इनके अलाबा आज जो असंतुष्ट युवा तुर्क हैं वे भी राहुल की तरह पीढ़ियों से कांग्रेस से जुड़े रहे हैं।इनमें सचिन पायलट,दीपेंद्र हुड्डा और मिलिंद देवड़ा के नाम सबसे ऊपर हैं।
पुराने नेताओं का जत्था राहुल की जगह किसी और का नेतृत्व चाह रहा है और नए नेता कांग्रेस से बाहर अपना भविष्य तलाश रहे हैं।ऊपर से नरेंद्र मोदी और अमित शाह संघ के साथ मिलकर पूरी ताकत के साथ गांधी परिवार और कांग्रेस के खिलाफ युद्ध चला रहे हैं।
इन हालात में गांधी परिवार अपने उन विश्वस्त नेताओं की ओर देख रहा है जो अभी भी परिवार के साथ हैं।इनमें कमलनाथ का नाम सबसे ऊपर है।कमलनाथ संजय गांधी के करीबी मित्र थे।इंदिरा गांधी उन्हें मध्यप्रदेश लायी थीं।वे उन्हें अपना तीसरा बेटा मानती थीं।उतार चढ़ाव के दौर में कमलनाथ ने भी कभी निष्ठा या खेमा नही बदला है। चार दशक से भी ज्यादा समय से वे कांग्रेस में अहम भूमिका में हैं।
ऐसे में पिछले कुछ दिनों में सोनिया गांधी से उनकी यह दूसरी मुलाकात बहुत ही महत्वपूर्ण मानी जा रही है।सूत्रों की माने तो सोनिया गांधी कमलनाथ को अहमद पटेल की भूमिका में लाना चाहती हैं।क्योंकि अहमद पटेल के निधन के बाद पार्टी में ऐसा कोई वरिष्ठ नेता नही है जो नेतृत्व और कार्यकर्ताओं के बीच शॉक अब्जॉर्बर का काम कर सके।कमलनाथ इस भूमिका के लिए सबसे उपयुक्त हैं।वे वरिष्ठ तो हैं ही अन्य दलों के नेताओं से भी उनके संबंध हैं। लेकिन यहां भी समस्या कांग्रेस के ही नेता हैं।ये नेता नही चाहते कि कमलनाथ का पार्टी में कद बढ़े।क्योंकि कमलनाथ की बजह से ये अपना "खेल" खुलकर नही खेल पाएंगे।
कमलनाथ "कागजी और मौसमी" नेता भी नही हैं।वे पिछले 41 साल से चुनावी लड़ाई लड़ कर संसद पहुंचते रहे हैं।पिछले विधानसभा चुनाव में उनके नेतृत्व में जहां कांग्रेस 15 साल बाद मध्यप्रदेश में सत्ता में लौटी थी वही 2019 के लोकसभा चुनाव में मध्यप्रदेश से एकमात्र विजेता उनके पुत्र नकुल नाथ थे।तब ज्योतिरादित्य सिंधिया और दिग्विजय सिंह को भी पराजय का सामना करना पड़ा था। अब देखना यह है कि गांधी परिवार फैसला न ले पाने की स्थिति से कब तक उबरता है।लेकिन यह साफ है कि अब वह अपने पुराने वफादारों की ओर देख रहा है।