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- सूफी सन्त हजरत शाह...
📷 : दरगाह शरीफ पीर फतेह उल्लाह शाह , रायसेन
: शारिक रब्बानी
भोपाल रियासत जहाँ अपनी प्राकृतिक सौर्दंयता और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि की वजह से सदैव प्रसिद्द रहा है । वहीं यह अनेक सूफी सन्तों की आमदगाह व इलाका भी रहा है।इस रियासत में और भोपाल के आसपास के इलाकों मे अनेक महापुरुषों एवं सूफी बुजुर्गों नेअपने ज्ञान व ध्यान की रोशनी फैलाई है।
इन्हीं में एक महत्वपूर्ण नाम पीर शाह फतेह उल्लाह शाह का है जिनकी दरगाह शहर भोपाल से लगभग 45 किलोमीटर पर रायसेन में स्थित है। यह दरगाह गँगा जमुनी तहजीब की बेहतरीन मिसाल है । कहा जाता है कि पीर शाह फतेह उल्लाह शाह साहब को सूफी बुजुर्ग हजरत निजामुद्दीन औलिया ने गोँडवाना के अजनबी क्षेत्र की ओर रवाना किया था।और शाह फतेह उल्लाह शाह राजपूताना के कठिन मार्गों तथा भयानक जँगलो का दिन रात सफर करके रायसेन की ऐतिहासिक बस्ती के निकट पधारे थे। और उन्होंने अपनी ईमानदारी, सच्चाई व अपनी अन्य खूबियों के कारण उस बस्ती व सम्पूर्ण मालवा में अत्यंत लोकप्रियता प्राप्त कर ली थी।
📷 : दरगाह शाह फतेह उल्लाह शाह , साथ में शारिक रब्बानी
विश्व प्रसिद्ध शायर एहसान दानिश जो मेरे उस्ताद के उस्ताद भी रहे हैं। पीर शाह फतेह उल्लाह शाह का उल्लेख अपनी आत्मकथा जहान ए दानिश में इस दरगाह के ताल्लुक से बहुत ही मार्मिक अंदाज मेें किया है जिसको मुख्तसर बयान इस तरह है। एहसान दानिश साहेब कहते है कि भोपाल में कयाम के दौरान एक दिन जी चाहा कि साँची में महात्मा बुद्ध के स्टैचूू देख आऊं। मैंने सईद रजमी से कहा उन्होंने खुशी-खुशी मेरी बात मान ली और ड्राइवर को गाड़ी के लिये कह दिया।और हम सईद रजमीी, शेरी भोपाली, नाजिम भोपाली के साथ चारो लोग गाड़ी पर बैठ कर चल दिये।
कुछ रास्ता तय करने के बाद एक जगह मुझे एक सफेद इमारत दिखाई दी । मैंने शेरी भोपाली से पूछा यह किसकी इमारत है ? उन्होंने बताया कि यह हजरत शाह फतेह उल्लाह शाह की मजार है जो निहायत अच्छे साहबे करामत बुजुर्ग है। इसके बाद जैसे ही हमारी गाड़ी शाह फतेह उल्लाह शाह की मजार के पास पहुंची तो अचानक मोटर ने जवाब दे दिया।हम सब लोग नीचे उतर गये। ड्राइवर मोटर ठीक करने में लग गया ।
शेरी भोपाली ने कहा आओ, जब तक मोटर ठीक हो रही है हम लोग फातेहा पढ़ लें। मैं इमारत के अंदर मजार के पास चला गया और शेरी ने बाहर ही खडे होकर फातेहा पढ़। मैं जब इमारत के अंदर था कुछ और लोग आये और उन्होंने मुझे मिठाईयां भी दी जब वह लोग चले गये तो कुछ देर रूकने के बात इमारत से मिठाई लेकर जब बाहर आया तो हमारे बाकी साथी अचंभित थे उनका कहना था कि हम लोग तबसे यही हैं इमारत का दरवाजा बन्द था कोई इमारत मेें गया ही नहीं।
तुम वहां से मिठाई लेकर आ रहे हो और यह भी बताया कि गााड़ी बहुत कोशिश के बावजूद अभी नहीं बन सकी । मैैंने उन लोगों को मिठाई बाँटी और मेरे आते ही गाड़ी भी ठीक हो गई ।हम लोग साँची गये और वहां घूमने के बाद भोपाल वापस आये ।
एहसान दानिश साहेब कहते है कि, इसके बाद में शाह फतेह उल्लाह शाह और इस वाक्या को कभी नहीं भूल सका। मुझे भी इस दरगाह पर जाने का अवसर मिला है।मशहूर शायर एहसान दानिश की तरह मुझे भी हजरत शाह फतेह उल्लाह शाह से गहरी अकीदत है।और उस इलाके मे तमाम लोगों से इनके बारे में बहुत से वाक़यात सुनने को मिलते हैं।
शाह साहब को इस संसार से पर्दा किये हुए सैकड़ों साल बीत जाने के बाद भी उनके हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई श्रद्धालु आज भी उनकी दरगाह पर एकत्र होते रहते हैैं।
- शारिक रब्बानी वरिष्ठ (उर्दू साहित्यकार)
नानपारा, बहराईच ( उत्तर प्रदेश )