भोपाल

सदन में जिसे विचारणीय बताया, बाहर वह काम पूरा कर चुके मुख्यमंत्री !

अरुण दीक्षित
12 July 2023 4:12 PM IST
सदन में जिसे विचारणीय बताया, बाहर वह काम पूरा कर चुके मुख्यमंत्री !
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The Chief Minister has completed the task outside which was said to be worth considering in the House

यूं तो विधानसभा में उठाए जाने वाले सवाल हमेशा सरकार को कटघरे में खड़ा करने के लिए ही होते हैं!लेकिन कभी कभी सरकार खुद ऐसे उत्तर देती है जो उस पर ही सवाल उठा देते हैं। मध्यप्रदेश विधानसभा द्वारा 11 जुलाई को प्रस्तुत की गई प्रश्नोत्तर सूची में प्रकाशित कुछ सवाल इसका ज्वलंत प्रमाण हैं।मजे की बात तो यह है कि इनमें एक सवाल का जवाब खुद मुख्यमंत्री ने दिया है।मुख्यमंत्री का यह जवाब यह भी प्रमाणित करता है कि विधानसभा में जानकारी देने को लेकर वे और उनकी सरकार कितनी "संवेदनशील" है।

पहले सवाल की बात!बैतूल जिले से कांग्रेस विधायक निलय विनोद डागा ने आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं के बारे में एक लिखित सवाल पूछा था। यह सवाल (499) उत्तर सहित पृष्ठ क्रमांक 44 और 45 पर प्रकाशित हुआ है।चूंकि महिला और बाल विकास विभाग के मंत्री खुद मुख्यमंत्री हैं इसलिए उत्तर भी उन्होंने ही दिया है।

अपने चार खंड के विस्तृत सवाल में कांग्रेस विधायक ने मुख्यमंत्री से यह पूछा था कि क्या सरकार आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं को सरकारी कर्मचारी घोषित कर उन्हें सरकारी कर्मचारियों को मिलने वाली सुविधाएं देगी।क्या आंगनवाड़ी कार्यकर्ता खुद का मानदेय बढ़ाने और सरकारी कर्मचारी घोषित करने के लिए आंदोलन करती रही हैं।यदि हां तो सरकार इनके बारे में कोई नीति निर्धारण किया जाना प्रस्तावित कर रही है।यदि हां तो कब तक!सवाल में यह भी पूछा गया है कि क्या सरकार ने इनका मानदेय बढ़ाने की घोषणा की थी।यदि हां तो इसका वास्तविक लाभ इन्हें कब तक दिया जायेगा।यदि नही तो क्या सरकार इनका मानदेय बढ़ाने करेगी।यदि नही तो क्यों?

अपने लिखित उत्तर में मुख्यमंत्री ने आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं की भूमिका के महत्व को तो स्वीकार किया है।लेकिन उन्हें सरकारी कर्मचारी का दर्जा देने से साफ इंकार कर दिया है।उन्होंने कहा है कि आंगनवाड़ी सेवा योजना केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित निर्देशों एवम मापदंड के अनुसार प्रदेश में संचालित की जाती है।केंद्र सरकार ने इन्हें मानसेवी की श्रेणी में रखा है।इन्हें सरकारी कर्मचारी नही माना गया है।

मुख्यमंत्री ने यह माना है कि अपना मानदेय बढ़ाने और सरकारी कर्मचारी घोषित करने को लेकर आंगनवाड़ी कार्यकर्ता आंदोलन करती रही हैं।उन्होंने यह भी कहा है कि इनके अतिरिक्त मानदेय में (राज्यमद से) वृद्धि किए जाने का प्रस्ताव विचाराधीन है।लेकिन इस प्रस्ताव पर अमल की समय सीमा देना संभव नहीं है।मुख्यमंत्री ने यह माना है कि सरकार ने इनका मानदेय बढ़ाने की घोषणा की थी।यह भी बताया है कि इस पर कार्यवाही चल रही है।यह कब तक होगा इसकी समय सीमा दिया जाना संभव नहीं है।

एक बार फिर बता दूं कि मुख्यमंत्री ने विधानसभा में यह लिखित उत्तर 11 जुलाई 2023 को सदन के मानसून सत्र में दिया है।यह सदन के रिकॉर्ड में मौजूद है।

अब इसका दूसरा पहलू जानिए!चुनावी मोड में चल रहे मुख्यमंत्री इन दिनों दोनों हाथों से रेवड़ियां बांट रहे हैं।कुछ महीने पहले जब आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं ने हड़ताल की थी तब उन्हें काम पर लौटने को विवश कर दिया गया था।लेकिन पिछले महीने की 11 तारीख को उन्होंने आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं का मानदेय बढ़ाने का ऐलान कर दिया था।

मुख्यमंत्री की घोषणा के मुताबिक आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं का मानदेय 3 हजार रूपये और सहायिकाओं का 750 रुपए महीना बढ़ाया जाएगा।साथ ही उन्हें हर साल क्रमश 1 हजार और 500 रुपए की वृद्धि भी दी जाएगी।62 साल की उम्र पूरी होने पर उन्हें एकमुश्त सवा लाख और एक लाख रुपए दिए जाएंगे।यह घोषणा 1 जुलाई 2023 से लागू होगी। अगस्त के महीने से उन्हें इसका लाभ मिलेगा।

इस घोषणा के 17 दिन बाद 28 जून 2023 को महिला एवम बाल विकास विभाग ने इस संबंध में लिखित आदेश भी जारी कर दिया।

लेकिन विधानसभा के 11 जुलाई के उत्तर में मुख्यमंत्री खुद अपनी घोषणा भूल गए।इससे यह भी जाहिर होता है कि सरकार विधान सभा में जानकारी देने को लेकर कितनी गंभीर और सतर्क है।जो घोषणा हुई, उस पर अमल भी शुरू हुआ लेकिन उसका जिक्र खुद मुख्यमंत्री के उत्तर में नही है।

उधर उत्तर देने वाले महिला एवम बाल विकास विभाग के सूत्रों का कहना है कि सवाल पहले आया और उसका उत्तर भेज दिया गया।मुख्यमंत्री ने घोषणा बाद में की!

मजे की बात यह है कि खुद मुख्यमंत्री को भी यह मालूम नही है कि जिस घोषणा पर अमल हो गया है उसे वे खुद ही विचाराधीन बता रहे हैं!वह भी लिख कर!इससे बड़ी विडंबना और क्या हो सकती है।

विधानसभा में विपक्ष के नेता डाक्टर गोविंद सिंह कहते हैं - विधानसभा में आजकल सब कुछ हो रहा है।सरकार ने संसदीय प्रक्रिया को मजाक बना दिया है।बजट ही बिना चर्चा के पास कराया जा रहा है तो अन्य मुद्दों की स्थिति का सहज आंकलन किया जा सकता है। हर दृष्टि से गरिमा गिरी है।विपक्ष असहाय है।उसकी सुनी नही जाती है।मुख्यमंत्री बेहद संवेदनशील हैं।उन्हें जनता की परवाह ही नही है।

सवाल करने वाले विधायक निलय डागा कहते हैं - मेरे प्रश्न पर गलत जानकारी दी गई है।मैं इसकी शिकायत विधानसभा अध्यक्ष से करूंगा।मंत्री नही खुद मुख्यमंत्री गलत जानकारी दे रहे हैं। इससे बड़ी विडंबना और क्या हो सकती है।

विधायक जी की शिकायत का क्या होगा!इसका अंदाज आप इसी बात से लगा सकते हैं कि मध्यप्रदेश विधानसभा का 5 दिन चलने वाला मानसून सत्र दूसरे दिन ही खत्म हो गया।दोनों दिन विपक्ष के विधायक अपनी बात रखने के लिए अध्यक्ष से गुहार करते रहे।उन्होंने सदन में नारेबाजी भी की।गर्भगृह में भी गए।लेकिन आसंदी ने उनकी मांग पर ध्यान ही नही दिया।दोनों दिन में सदन कुल करीब 4 घंटे चला।सब कुछ बिना चर्चा "पारित" हो गया।अब आगे जो कुछ होगा वह विधानसभा चुनाव के बाद ही होगा।

इससे पहले भी विधानसभा को लेकर बहुत बातें होती रही हैं।लेकिन जब खुद मुख्यमंत्री अपनी घोषणा पर अमल के बाद भी उस पर विचार होने की बात कहें तो क्या कहा जा सकता है? यही न कि अपना एमपी गज्जब है।है कि नहीं!

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