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अपना एमपी गज्जब है.6 : एजी के "ड्राफ्ट" को गलत नहीं कह पा रही सरकार...
मध्यप्रदेश के महिला एवम बाल विकास मंत्रालय से जुड़ी महालेखाकार (एजी) की एक रिपोर्ट ने पिछले 10 दिन से मध्यप्रदेश सहित दिल्ली तक हंगामा मचा रखा है।यह अलग बात है कि मध्यप्रदेश में मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस इस मुद्दे पर राज्य सरकार को घेर नही पा रही है।उधर दिल्ली में सरकार चला रही आम आदमी पार्टी ने इस मुद्दे को लपक लिया है। समय के हिसाब से राज्य सरकार के मुखिया कटघरे में हैं।इसी वजह से अटकलों का दौर चल रहा है।
लेकिन एक बात तय है कि एजी की इस कथित रिपोर्ट को लेकर सरकार की स्थिति सांप छछूदर जैसी हो गई है।वह न रिपोर्ट को उगल पा रही है और न ही निगल पा रही है।आज तक सरकार यह नही कह पाई है कि एजी की रिपोर्ट गलत है।उसके आंकड़े सही नही है।
जब से यह रिपोर्ट सामने आई है तब से सरकार यही कह रही है कि यह फाइनल रिपोर्ट नहीं है।यह ड्राफ्ट रिपोर्ट है।इस पर विभाग अपना उत्तर देगा।लेकिन यह कोई नही कह रहा कि रिपोर्ट गलत है।
पहले सरकार के प्रवक्ता ने कहा - यह फाइनल रिपोर्ट नही है।यह ऑडिट कमेटी को जायेगी।विधानसभा में आयेगी।इसमें बदलाव भी हो सकता है।
उसके बाद मुख्यमंत्री के सबसे करीबी मंत्री ने सफाई दी !उन्होंने भी कहा कि यह रिपोर्ट नही है।यह तो ड्राफ्ट है। हां उन्होंने राज्य में 15 महीने सरकार चलाने वाली कांग्रेस को इस मामले में घसीट लिया।मंत्री के मुताबिक घपला कांग्रेस की सरकार में हुआ था।इसलिए हमने 36 करोड़ रुपए का भुगतान रोक लिया है।एक तरह से मंत्री ने यह तो मान लिया कि महिला एवम बाल विकास मंत्रालय ने गरीब बच्चों और महिलाओं को पोषण आहार देने में गड़बड़ी की है।लेकिन कांग्रेस के कार्यकाल में।
इसके बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान खुद सामने आए।उन्होंने भी ट्वीट करके कहा कि यह फाइनल रिपोर्ट नहीं है।इस पर विभाग को अपना मत देना है।फिलहाल इस मंत्रालय का दायित्व शिवराज सिंह के ही पास है।विभाग के मंत्री के नाते उन्हें तथ्यों का खंडन करना चाहिए था।लेकिन ऐसा करने के बजाय उन्होंने भी कांग्रेस पर ही आरोप लगा दिया।
इस बीच एजी की रिपोर्ट को ड्राफ्ट प्रमाणित करने के लिए एजी कार्यालय द्वारा महिला एवं बाल विकास के प्रमुख सचिव को रिपोर्ट के साथ भेजे गए पत्र को मीडिया तक पहुंचा दिया गया।
इस पत्र के साथ एक खुलासा और हो गया। एजी ऑफिस ने 12.08.22 के अपने पत्र में इस रिपोर्ट पर 15 दिन में उत्तर मांगा था।यह अवधि 27 अगस्त को खत्म हो गई।एक सितंबर को यह रिपोर्ट लीक होकर मीडिया तक पहुंच गई।इसके बाद हंगामा हुआ।पर इस कथित ड्राफ्ट रिपोर्ट का उत्तर विभाग ने नहीं दिया।इसके बाद यह सूचना जरूर आई कि इस बारे में एजी ऑफिस से 15 दिन का समय और मांगा गया है।सुना यह भी है कि विभाग रिपोर्ट के हर बिंदु का उत्तर तलाश रहा है।इसके लिए उसे और समय चाहिए होगा।
फिलहाल सरकार इस पर अड़ी है कि यह अंतिम रिपोर्ट नही बल्कि ड्राफ्ट है।मंत्री से लेकर मुख्यमंत्री तक सब यही कह रहे हैं।हम भी मान लेते हैं कि यह ड्राफ्ट रिपोर्ट ही है।अब सवाल यह है कि क्या यह ड्राफ्ट रिपोर्ट झूठ का पुलिंदा है।क्या एजी ऑफिस इस हंगामे के बाद, सरकार के सामने झुकते हुए,अपनी रिपोर्ट बदल देगा।
प्रशासनिक व्यवस्था को नजदीक से जानने वालों का मानना है कि प्रक्रिया के तहत रिपोर्ट का मसौदा तैयार करते समय विभाग से ही जानकारी ली जाती है।उसमें हुई भूल चूक में सुधार के लिए मसौदे को फिर से विभाग को भेजा जाता है।उसके बाद अंतिम रिपोर्ट बनती है।लेकिन ऐसा कभी नही हुआ कि एजी ऑफिस द्वारा तैयार की गई ड्राफ्ट रिपोर्ट पूरी की पूरी बदल गई हो।
एक बात यह भी है कि आमतौर पर ड्राफ्ट रिपोर्ट के साथ सुझाव नही दिए जाते हैं।जबकि इस रिपोर्ट के साथ सुझाव भी दिए गए हैं।अब सरकार के सूत्र इसे भी प्रक्रिया का हिस्सा बता रहे हैं।
सबसे आश्चर्य की बात यह है कि मुख्यमंत्री और मंत्री इस रिपोर्ट को ड्राफ्ट रिपोर्ट बताते हुए कांग्रेस पर तो आरोप लगा रहे हैं लेकिन वे यह नहीं कह पा रहे हैं कि यह रिपोर्ट गलत है।या इसके आंकड़े झूठे हैं।सवाल यही है कि ड्राफ्ट हो या रिपोर्ट, आंकड़े और तथ्य सही हैं या गलत।अगर गलती कांग्रेस की सरकार में हुई तो उसे ठीक क्यों नही किया गया।दोषियों को सजा क्यों नही दी गई।
वैसे पिछले सालों में यह पहला मौका है जब एजी की रिपोर्ट को लेकर राज्य सरकार कटघरे में है।इससे पहले रिपोर्ट के विधानसभा में पेश हो जाने के बाद उसकी समीक्षा होती रही है।पर ऐसा हंगामा कभी नही हुआ।जिस पर सरकार बचाव भी नही कर पा रही है।
जहां तक इसके असर की बात है तो राज्य के महालेखाकार के बारे में कुछ कह जरा कठिन है।लेकिन भारत के नियंत्रक एवम महालेखापरीक्षक अपनी रिपोर्ट पर सरकारें गिरवा चुके हैं।
याद करिए जब राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे तब 1987 में सीएजी की एक रिपोर्ट सामने आई थी। उस समय भारत के महालेखा परीक्षक त्रिलोकी नाथ चतुर्वेदी थे। उस रिपोर्ट में यह खुलासा किया गया था कि बोफोर्स तोप की खरीद में 65 करोड़ का घोटाला हुआ है।
राजीव गांधी के ही सहयोगी विश्वनाथ प्रताप सिंह ने इस मुद्दे पर उन्हें चुनौती दी।भारी हंगामा हुआ।देश में सर्वाधिक बहुमत से सरकार बनाने वाले राजीव गांधी बोफोर्स की चपेट में ऐसे आए कि अगले चुनाव में उनकी सरकार जाती रही।लंबी मुकदमेवाजी के बाद अदालत ने राजीव गांधी को बरी कर दिया।बोफोर्स केस भी खत्म हो गया।लेकिन कुछ न होते हुए भी राजीव गांधी के माथे पर बोफोर्स तोप चिपक कर रह गई।
उधर त्रिलोकी नाथ चतुर्वेदी बाद में भाजपा में शामिल हुए।उन्हें पद्मविभूषण से सम्मानित किया गया।वे राज्यसभा के सदस्य रहे।बाद में अटल बिहारी वाजपेई ने उन्हें कर्नाटक का राज्यपाल भी बनाया।
ऐसा ही मामला बाद में भी हुआ। यूपीए सरकार के मुखिया मनमोहन सिंह थे। विनोद कुमार राय भारत के महालेखा परीक्षक थे।उनका कार्यकाल 7 जनवरी 2008 से 22 मई 2013 तक रहा।उनके समय में सीएजी ने 2जी घोटाला और कोयला घोटाला उजागर हुआ।भाजपा विपक्ष में थी।उसने भारी हंगामा किया।सीबीआई ने जांच की।मंत्री गिरफ्तार हुए।मीडिया ट्रायल भी हुआ। मनमोहन की सरकार जाती रही।
बाद में अदालत ने सीएजी की रिपोर्ट को ही खारिज कर दिया।कह दिया कोई घोटाला नही हुआ।
लेकिन जो होना था वह हो गया।दिल्ली में भाजपा की सरकार बन गई और नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री।
पुरस्कार विनोद कुमार राय को भी मिला।उन्हें 2016 में पद्मभूषण सम्मान से नवाजा गया।देश के बैंक बोर्ड ब्यूरो का अध्यक्ष भी बनाया गया।
यही नहीं 2017 में सुप्रीम कोर्ट की ओर से उन्हें भारतीय क्रिकेट कंट्रोल ब्यूरो के प्रशासनिक पैनल का अध्यक्ष बनाया गया।अभी भी विनोद राय एक अंतर्राष्ट्रीय संस्था से जुड़े हैं।उनसे जुड़े बहुत से किस्से हैं।जो अक्सर चर्चा में रहते हैं।लेकिन उन्हें क्या फर्क पड़ता है।
इस संदर्भ में देखें तो एजी की रिपोर्ट ने अगर दिल्ली जैसा असर प्रदेश में भी दिखाया तो फिर वर्तमान सरकार को मुश्किल होगी।
और यदि सरकार के दवाब में एजी ने अपनी ड्राफ्ट रिपोर्ट को कूड़े में फेंक कर सरकार की रिपोर्ट पर ही मुहर लगा दी तो पूरे देश के लिए एक उदाहरण बन जायेगा।
कुछ भी हो!प्रदेश के इतिहास में तो एक नया अध्याय ही होगा।आखिर अपना एमपी गज्जब है।है न?