What a chance Shivraj Singh is missing in Madhya Pradesh! | मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह क्या मौका खो रहें है!
भोपाल

मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह क्या मौका खो रहें है!

Shiv Kumar Mishra
27 May 2020 3:29 PM
मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह क्या मौका खो रहें है!
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मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पद संभालते ही मीडिया उद्घोष किया था कि इस पारी में उनके कार्य करने की शैली भिन्न रहेगी। बतौर मुख्यमंत्री के राजनैतिक और प्रशासनिक अंदाज में दिख रही काम करने की झलक शिवराज के मौका खोने की कहानी बयां कर रहा है।

एक विश्लेषण .....

मध्यप्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार के गठन और शिवराज सिंह चौहान के मुख्यमंत्री पद की शपथ लिए 65 दिन पूर्ण हो चुके हैं। 23 मार्च को शिवराज सिंह चौहान ने सीएम पद की शपथ ली थी। कोविड-19 कोरोनावायरस संक्रमण के चलते संपूर्ण देश में लॉकडाउन हो गया। 1 दिन 2 दिन 7 दिन गुजर गए। मध्य प्रदेश की जनता मंत्रिमंडल गठन और भाजपा के आला नेता मंत्री बनने के लिए पल-पल गिने जा रहे थे। शिवराज ने अपने अंदाज में राजनीति करते महीना गुजार दिया। पार्टी में असंतोष बढ़ने लगा। संवैधानिक मर्यादाओं का जमकर मखौल उड़ाया गया। राजनीतिक उपेक्षाओं की जबरदस्त इबारत लिखी गई।

प्रदेश की जनता को अफवाहों का शिकार बनाया गया। अंततः 21 अप्रैल को मंत्रिमंडल का गठन किया गया। सिंधिया गुट से समझौते के तहत सिंधिया के समर्थक दो पूर्व विधायकों और भारतीय जनता पार्टी के 3 विधायकों को मंत्री बनाया गया। फॉर्मूला संभाग -अंचल और जातिगत आधार पर तय किया गया। चंबल और ब्राह्मण जाति के आधार पर भाजपा विधायक डॉक्टर नरोत्तम मिश्रा , विंध्य क्षेत्र से और जातिगत समीकरणों के आधार पर आदिवासी वर्ग की मीना सिंह को मंत्री बनाया गया।

नरोत्तम मिश्रा को मध्यप्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनवाने और कांग्रेस की कमलनाथ सरकार को गिरवाने में अहम भूमिका निभाने के तहत पुरुस्कृत किया गया।बुंदेलखंड और सिंधिया गुट के साथ-साथ ठाकुर वर्ग को साधने गोविंद सिंह राजपूत को मंत्री बनाया गया। इसी के साथ ही सिंधिया गुट के तुलसीराम सिलावट को दलित कोटे के तहत मंत्री पद की कमान सौंपी गई। होशंगाबाद संभाग और पिछड़ा वर्ग को संतुष्ट करने के लिए कमल पटेल को मंत्री बनाया गया।

मंत्रिमंडल गठन के बहाने पार्टी के कई वरिष्ठ और वफादार नेताओं की जमकर उपेक्षा की गई। संवैधानिक मर्यादाओं का भी पुनः पालन नहीं किया गया। भारतीय संविधान के मुताबिक कम से कम बारह मंत्री बनाए जाना आवश्यक है। पार्टी के बाकी नेताओं को आस बंधी कि शीघ्र ही उनकी किस्मत के ताले भी खुलेंगे। एक बार फिर पार्टी नेताओं की उपेक्षा और आम जनता को अफवाहों के कुचक्र में फंसाने का खेल शुरू हो गया। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भ्रम फैलाने के लिए राजभवन भी हो आए। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने मंत्री पद के दावेदारों और अन्य सीनियर नेताओं को भोपाल प्रदेश मुख्यालय बुलाकर मंत्रणा का अस्त्र भी चला दिया ।

आखिर मध्य प्रदेश में मंत्रिमंडल का पूर्ण गठन क्यों नहीं हो रहा है ?

मंत्रिमंडल का गठन मुख्यमंत्री का विशेषाधिकार है ।तो आखिर कौन इस गठन में अड़ंगे लगा रहा है ?

अगर शिवराज पर दबाव है । तो वे अपने राष्ट्रीय नेतृत्व को सहमत क्यों नहीं कर पा रहे हैं ?

जब भाजपा में टास्क फोर्स का गठन हो सकता है। तो मंत्रिमंडल का गठन क्यों नहीं ?

इन प्रश्नों के जवाब राजनीतिक तौर पर छुपे हुए हैं और मंत्रिमंडल विस्तार के गठन को कोविड-19 संक्रमण का सहारा लेकर टाला जा रहा है। गौरतलब है कि यह वह दौर है जब राजनीतिक ,प्रशासनिक और सामाजिक तौर पर मतभेद मनभेद को बुलाकर टीमवर्क के साथ काम करने की आवश्यकता है।

अगर शिवराज अपनी हठ के चलते मंत्रिमंडल विस्तार नहीं कर रहे हैं तब भी और अगर वे राजनीतिक दवाब में विस्तार नहीं कर पा रहे हैं तब भी एक राजनेता के तौर पर बहुत बड़ी भूल कर रहे हैं। एक प्रसिद्ध दार्शनिक के अनुसार सफलता के सहभागी अधिक होते हैं पर असफलता किसी एक व्यक्ति के सिर पर फोड़ी जाती है। और इस लिहाज से अगर भविष्य में कोई बड़ा संकट खड़ा हुआ तो इसके जिम्मेदार सिर्फ और सिर्फ शिवराज होंगे कोई और नहीं।

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