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- बाढ के बाद जो बच गया...
ब्रजेश राजपूत
भोपाल से विदिशा होते हुये अशोकनगर जिले की सीमा आने से पहले ही रोड पर पडता है बिसनपुर गांव। तकरीबन डेढ़ सौ कच्चे पक्के मकानों वाला ये गांव बुरे हाल में दिखा। एक तरफ नदी तो दूसरी तरफ बडे से नाले से घिरा ये गांव एक दिन तक पानी में डूबा रहा। अब जब पानी उतरा है तो पूरा गांव ऐसा गीला लग रहा है जैसे किसी ने हमारे आपके ऊपर बाल्टी भर कर पानी डाल दिया हो और फिर पोंछने को कुछ ना दिया हो।
बाढ की तबाही सड़क से ही नजर आने लगती है। सड़क किनारे ही किसान श्रीदास का मकान था। था इसलिये कि वो शुक्रवार को उफनती नदी के पानी में तहस नहस हो गया। मकान के नाम पर अब बस मलबा बाकी है। इस बर्बाद मलबे को बरसते पानी में हटाकर घर गृहस्थी की चीजों को निकालने की कोशिश श्रीदास का पूरा परिवार कर रहा था। टूटे मकान के मलबे में कहीं टीवी दबा हुआ दिख रहा है तो कहीं पर रसोई में अनाज का सामान तो कहीं भीगे हुये गद्दे और रजाईयां। श्रीदास बताते हैं कि सुबह आठ बजे के करीब ऐसा पानी आया कि चाय नाश्ता छोड़कर बस किसी तरह हम ही घर के बाहर निकल कर खडे हो पाये और थोडी ही देर में ये चार कमरों का मकान हमारे सामने ही ढह गया। फिर हमें खबर आयी कमरे में बंद अपने ढोरों की तो वो बेचारे कमर कमर तक पानी में घिरे खडे थे तो उनको किसी तरह निकाल कर ऊंचाई पर पहुंचाया मगर अब हमारे पास कुछ नहीं बचा है। सब या तो तहस नहस हो गया या फिर बुरी तरह गीला।
श्रीदास की पत्नी रामबाई कहती हैं कि कल से ही ये गीले कपडे पहने हैं आटा दाल चावल सब गीला हो गया है कल शाम को कोई खाना दे गया था तो मुश्किल से गले से नीचे उतरा अब फिर सोच रहे हैं बच्चों को क्या खिलायें। श्रीदास से बात करते वक्त ही हरी कहार आ गये उघाडे बदन नीचे बस छोटा सा तौलिया लपेटे हुये। टीवी वाले भैया अंदर गांव में भी चलो हमारे घर भी देख लो ऐसे ही टूट गये हैं। अब देखो ना खाने बचा है ना पहनने ये तौलिया भी किसी और से मांग कर पहने हुये हैं। बच्चे भूखे हैं कल दिन भर से। पटवारी की राहत तो नहीं आयी मगर हमारे सरपंच कुछ पैकेट दे गये थे तो गुजारा हो रहा है। अब आप टीवी पर दिखा दोगे तो जल्दी मदद मिल जायेगी और टूटे घर बनाने के लिये पैसे भी।
गांव वालों के मीडिया पर अभी तक के इस भरोसे पर कुर्बान जाने को मन करता है। बिसनपुर अशोकनगर की तरफ बढने पर ही सडक किनारे के खेतों में भारी पानी के आकर गुजर जाने के निशान दिखते हैं। सोयाबीन के छोटे छोटे पौधे पानी में या तो डूबे हैं या फिर ज्यादा पानी से मुरझाये हुये हैं। सडके किनारे के घरों में उपर तक से पानी जाने के सबूत दूर से ही दिखते हैं। विदिशा छोड घाट बमुरिया चौराहा आता है जो जहां से अशोकनगर जिले की सीमा शुरू हो जाती है। ये छोटा सा सडक किनारे के गांव पर भी बगल से गुजरने वाली कैथन नदी काल बनकर गुजरी। गांव के कच्चे मकान ढह गये हैं।
बृजेश दांगी का मकान सडक पर ही दिखा जो बाढ में बुरी तरह तहस नहस हो गया था वो बताते हैं कि ज्यादा पानी आया तो हम खेत की तरफ भागे क्योंकि किसान की जान तो फसलों में फंसी रहती है। हमारी संपत्ति तो वही होती है मगर खेत मे तो पानी ने बर्बादी की है वहां से आया पानी यहां मकान में घुस गया और बाप दादों के इस पुराने मकान को गिरा। बच्चे पडोसी के घर में दो दिन से हैं वहीं खाना पीना और सोना हो रहा है। अब क्या होगा टीवी का ये सवाल सुनते ही वो चेहरे पर हल्की सी मुस्कुराहट ला कर पचास साल के ब्रजेश कहते हैं हमारा क्या होगा साहब जो सबका होगा वो हमारा होगा कोई हमारा घर ही तो नहीं गिरा अंदर गांव में बहुत घर गिरे और अनाज बर्बाद हुया है तो क्या अब सरकारी मदद का भरोसा है अरे नहीं साहब भगवान का भरोसा है उसी ने जन्म दिया वही पालेगा हमें और हमारे बच्चों को भी। पानी का क्या है कल था आज नहीं है हम तो यहां हमेशा रहेंगे।
किसान के हौसले की दाद देते हुये सडक पर आये तो देखा घाट बमुरिया से अशोकनगर जाने वाला पुल को लकडी के बडे ठूंठ रखकर रोका गया है उतर कर देखा तो पुल में कोई खराबी नहीं दिखी पानी भी पुल से बहुत नीचे से जा रहा था। ये क्यों बंद कर दिया रास्ता वहां खडे सिपाही से सवाल किया तो जवाब हमारे साथी स्वदेश शर्मा का आया जो हमसे मिलने मुंगावली से यहां आ गये थे। सर ये पुल उपर से ठीक है मगर थोडा नीचे चलकर देखिये असलियत समझ जायेगे। पुल के किनारे लगे पत्थरों पर डगमगाते हुये उतरे तो दिखा कि पुल जो सड़क से जोडने वाली मिट्टी कैथन नदी जब उफनी तो अपने साथ ले गयी। अब पुल के पाये तो सलामत है मगर किनारे की मिट्टी गायब है। थोडा सा भी बोझ पुल और सडक के बीच गहरी खाई बना देगा। पुल बंद होने से लोग अब कुनमुनाते हुये मुंगावली होते हुये अशोकनगर जाने को मजबूर हो रहे थे।
सच है कि बाढ ना खेत देखती है ना मकान और ना ही बडे पुल और रास्ते। प्रदेश के छह जिले पिछले दिनों भारी बारिश और उसके बाद आयी बाढ की आपदा झेल रहे हैं। अशोकनगर भी उनमें से है जहां पानी ने जनता को परेशान भले ही कर दिया हो मगर हौसले पर जरा भी असर नहीं डाला है ये इतनी देर में ही मैं समझ गया था।