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- "बंधन" मुक्त होती उमा...
"बंधन" मुक्त होती उमा कहां जाएंगी..? अपना एमपी गज्जब है..41
उमा भारती एक बार फिर चर्चा में हैं! इस बार उन्होंने शराबबंदी की बात नही की है।अब वे राम पर बोली हैं!छोटा मोटा नही बल्कि बहुत ही कड़वा सच बोली हैं!उनका यह सच सबसे ज्यादा कड़वा उसी पार्टी को लगने वाला है जिसकी वे अभी सदस्य हैं।
छिंदवाड़ा के मशहूर हनुमान मंदिर के दर्शन करने गई उमा ने दो टूक कहा -राम पर बीजेपी का कॉपी राइट नही है!राम और हनुमान की भक्ति कोई भी कर सकता है। बात तो उमा ने सही कही है लेकिन इससे वर्तमान "रामजादों" को मिर्ची लग सकती है।
इस बयान के तीन दिन पहले भी उमा कुछ बोली थीं।उस दिन उन्होंने अपने लोधी समाज को अपने बंधन से "मुक्त" किया था।सब जानते हैं कि उमा लोधी राजपूत समाज से हैं।उन्हें अपने समाज से बेहद प्यार रहा है।इसी प्यार की वजह से वे लोधी समाज के परिचय सम्मेलन में शामिल हुई थीं।
सम्मेलन में उन्होंने अपने समाज से कहा - मैं बीजेपी की सदस्य हूं।मैं उसके साथ जुड़ी हूं।आप इस वजह से बीजेपी को वोट मत देना क्योंकि मैं उससे जुड़ी हूं।आप अपने अपने इलाके में अपने हिसाब से ,अपनी पसंद की पार्टी और प्रत्याशी को वोट देना।आप मेरी तरफ से मुक्त हो।
उमा के इन दोनों बयानों के अर्थ खोजे जा रहे हैं।अंधों के हाथी की तरह सब अपनी अपनी व्याख्या कर रहे हैं!इस पर बात करने से पहले आपको उमा की एक और घोषणा के बारे में बता दूं।हालांकि उमा संन्यासिन हैं।हमारे समाज में यह माना जाता है कि संन्यासी सभी सामाजिक बंधनों से मुक्त होता है!
पर साध्वी उमा श्री भारती ने 5 नवंबर को यह घोषणा की थी कि वे परिवार के बंधन से मुक्त हो जाएंगी।उनका कोई परिवार नही होगा। भविष्य में उन्हें "दीदी मां" के नाम से जाना जाएगा।उन्होंने यह भी बताया था कि वे ऐसा जैन संत विद्यासागर जी महाराज के निर्देश पर कर रही हैं।इस घोषणा पर अमल 17 नवंबर से होना था।
उमा की इन तीनो बातों को लेकर अलग अलग तरह की बातें हुई हैं।खासतौर पर लोधियों को बीजेपी को वोट न देने की उनकी सलाह को बीजेपी से उनके मोहभंग माना गया।और भी कई कोण निकाले गए!
मूल सवाल यह है कि उमा आखिर यह सब क्यों बोल रही हैं।क्या सचमुच बीजेपी से उनका मोहभंग हुआ है या फिर वे इस तरह की बातें करके बीजेपी नेतृत्व को संदेश भेज रही हैं।
आगे की बात करने से पहले कुछ बातें उमा के बारे में।सभी जानते हैं कि 2003 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने उमा की अगुआई में भारी बहुमत हासिल किया था!लेकिन 9 महीने बाद ही वे अपने ही साथियों के जाल में ऐसी फंसी कि एक वारंट के नाम पर उन्हें कुर्सी छोड़नी पड़ी।उसके करीब डेढ़ साल बाद ऐसे हालात बने कि वे बीजेपी से ही बाहर हो गईं।उन्होंने अपनी अलग पार्टी बनाई।सफल नहीं हुई।फिर वापस बीजेपी में लौटी।जिस राज्य में उन्होंने बीजेपी का खोया सम्मान वापस दिलाया था उसमें उन्हें जगह नही मिली।
वे उत्तरप्रदेश चली गईं।पहले उत्तरप्रदेश विधानसभा की सदस्य बनी फिर लोकसभा की।केंद्र में मोदी के नेतृत्व में बनी सरकार में वे मंत्री भी बनी।उन्हें गंगा सफाई का अहम दायित्व दिया गया।
बाद में उन्हें उस मंत्रालय से हटाया गया। 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्हें टिकट भी नही दिया गया।2018 के विधानसभा चुनाव में एमपी में उनके एक भतीजे को बीजेपी ने टिकट दिया।और वह जीता भी।लेकिन पिछले दिनों उसका चुनाव कोर्ट ने रद्द कर दिया।फिलहाल सुप्रीम कोर्ट ने उस फैसले पर रोक लगाकर उसे राहत दी है।
पर उमा भारती 2019 से खाली बैठी हैं।पिछले करीब साढ़े तीन साल से उमा लगातार कोशिश कर रही हैं कि किसी भी तरह से पार्टी की मुख्य धारा में लौट आएं।वह लगातार नरेंद्र मोदी की तारीफ करती रही हैं।उन्हें पितातुल्य भी बता चुकी हैं।लेकिन अपने स्वभाव के मुताबिक मोदी ने उनकी ओर कोई ध्यान नही दिया है।
इस बीच एमपी में उन्होंने शराबबंदी का मुद्दा उठाया।पिछले करीब दो साल से उमा राज्य में शराब की बिक्री बंद किए जाने की मांग कर रही हैं।उन्होंने शराब की दुकान पर पत्थर भी फेंके और आंदोलन करने की बात भी कही।लेकिन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने उनकी एक न सुनी।शिवराज ने शराबबंदी की जगह नशाबंदी की बात की।उमा ने वह भी मान ली।लेकिन शिवराज उस दिशा में भी आगे नहीं बढ़े।बल्कि उल्टा ही किया!
उमा की खूब फजीहत हुई। उन्होंने अपनी बात ऊपर पहुंचाने की बहुत कोशिश भी की। लेकिन कहीं भी उनकी बात सुनी नहीं गई।
तो अब आखिर उमा करें तो क्या करें। समस्या यह है कि आज उनके साथ कोई नही है।उनके अस्थिर चित्त की वजह से उनके साथ के लोग धीरे धीरे उनका साथ छोड़ते चले गए।परिवार के लोग भी ज्यादा साथ नही निभा पा रहे हैं।
माना जा रहा है कि इसी वजह से उन्होंने पहले परिवार से संबंध खत्म करने की घोषणा की।बाद में उन्होंने लोधी समाज को भी अपना फैसला खुद करने और बीजेपी को उनकी वजह से वोट न देने की सलाह देकर मुक्त कर दिया।
अब भगवान राम पर बीजेपी का कॉपीराइट न होने की बात कह कर वे एक कदम और आगे बढ़ गई हैं।हालांकि इसी बीच में उन्होंने शिवराज मंत्रिमंडल में जातीय और क्षेत्रीय संतुलन न होने की बात भी कही है।लेकिन उनकी सुन कौन रहा है?
उमा की सबसे बड़ी समस्या राजनीति में हाशिए पर पहुंच जाना है।वह पार्टी के भीतर अगड़े पिछड़े की बात भी नही कर सकती हैं।क्योंकि अगर वे पिछड़े वर्ग की हैं तो शिवराज सिंह भी पिछड़े वर्ग से ही आते हैं।राष्ट्रीय स्तर पर नरेंद्र मोदी भी खुद को पिछड़ा ही बताते हैं।
उमा के पास अब अलग पार्टी बनाने या फिर किसी अन्य दल में जाने का भी विकल्प नहीं है।तो आखिर वे करें तो क्या करें?शायद यही वजह है कि अब वे राम और अपने समाज की ओर लौट रही हैं।
वैसे राजनीति में उमा जैसे उदाहरण भी बिरले ही मिलेंगे!उन्होंने इतिहास रचा था।आज वे खुद इतिहास बनने से बचने के लिए छटपटा रही हैं।सबसे अहम बात यह बाबरी मस्जिद गिराने की आरोपी रही इस संयासिन की मदद आज खुद राम जी भी नही कर पा रहे हैं।हालांकि उनकी छटपटाहट की तुलना एक जमाने में पार्टी के लौहपुरुष रहे लालकृष्ण आडवाणी से की जा सकती है।लेकिन एमपी में तो ऐसा पहली बार हो रहा है।वे देहरी के भीतर तो हैं लेकिन एक अछूत की तरह कोने में पड़ी हैं। रामजादे उनकी सुनने को तैयार नहीं है।शायद राम जी ही उन पर कृपा करें।
लेकिन कुछ भी हो अपना एमपी गज्जब है।है कि नहीं?