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- भोपाल सीट से कौन होगा...
भोपाल: भोपाल के लिए कांग्रेस को कोई उम्मीदवार ही नहीं मिल रहा अब सुई गौर पर अटकी। राहुल गांधी को भावी प्रधानमंत्री के रूप में महिमामंडित करने में अग्रणी लोगों को भोपाल संसदीय क्षेत्र के लिए कांग्रेस में कोई उम्मीदवार ही नहीं मिल रहा है जबकि मध्यप्रदेश में उसकी सरकार है और बख्त है बदलाव का नारा इन दिनों खूब गूंज रहा है।वहीं भाजपा के सामने उम्मीदवारों की लाइन लगी हुई है और सुरक्षित सीट समझकर केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर भी यहीं से चुनाव लड़ने का मन बना रहे हैं।
विधानसभा चुनाव जीतने के बाद मध्यप्रदेश में कांग्रेस अतिउत्साह में है परंतु राजधानी के लिए उसे जीतनेवाला उम्मीदवार नहीं मिल रहा है।यह स्थिति कांग्रेस की अकेले भोपाल में ही नहीं है बल्कि मध्यप्रदेश की सभी सीटों पर बनने वाली है।यह स्थिति इसलिए भी बनीं क्योंकि उसने सभी जिताऊ और शक्तिशाली उम्मीदवारों को विधानसभा चुनाव में झोंक दिया था जिसमें से कुछ जीत गये तो कुछ खेत रहे, अब उसके सामने लोकसभा के लिए 'जिताऊ' प्रत्याशी तलाशने की आ गई है। जो जीत सकते थे उनमें अधिकांश मंत्री बन गए या सत्ता में महत्वपूर्ण भागीदारी के लिए प्रयत्नशील हैं और हारनेवालों का मनोवल जीतने योग्य शेष नहीं रहा है। इस कारण हाईकमान द्वारा मंत्रियों को कह दिया गया है कि वे लोक सभा चुनाव के लिए लड़ने को तैयार रहें।किसी को कभी भी कहा जा सकता है।
इस समय कांग्रेस में उम्मीदवारों के लिए रायशुमारी चल रही है। उसमें कई प्रत्याशियों के नाम आए हैं किंतु जीत की गारंटी कोई भी नहीं दे पा रहा है, क्योंकि तीन दशक से निरंतर कांग्रेस हार रही है। इसी तारतम्य में करीना कपूर,नगमा जैसी अभिनेत्रियां,दिग्विजय सिंह,पी सी शर्मा, ज्योतिरादित्य सिंधिया ,प्रियंका गांधी जैसे नाम उछाले गए हैं तो अभी हाल में भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर को भी इस तरह का प्रस्ताव दिया मिला है।
वैसे अन्य स्थानीय प्रत्याशी भी भोपाल से टिकट मांग रहे हैं जिनमें पूर्व महापौर विभा पटेल ,सुनील सूद तथा महापौर प्रत्याशी रहीं आभा सिंह भी शामिल हैं।क्योंकि चुनाव में पराजित होने में भी प्रत्याशी की प्रकारांतर में जीत होती है इसलिए दूसरी ओर नॉन सिरियस प्रत्याशियों की कोई कमी नहीं है पर भोपाल संसदीय क्षेत्र की रचना इस प्रकार की है कि आज की तारीख में कांग्रेस किसी को भी प्रत्याशी को बनाने की हिम्मत जुटा नहीं पा रही है। भोपाल में मुस्लिम मतदाता अपेक्षाकृत अधिक होने से वह मुस्लिम प्रत्याशी उत्तराने का खतरा भी नहीं उठाना चाहती जबकि एक समय था कांग्रेस के मुस्लिम प्रत्याशी भोपाल में जीतते भी रहे हैं जब देवास जिले का एक हिन्दू बाहुल्य क्षेत्र भोपाल में शामिल था तब 1957 और 1962 में मैमूना सुल्ताना कांग्रेस से और आरिफ बेग भारतीय लोकदल से विजयी हो चुके हैं किंतु 1967 में जब भारतीय जनसंघ से जगन्नाथ राव जोशी पहली बार गैर कांग्रेसी प्रत्याशी के रूप में जीते तो कांग्रेस का राष्ट्रीय नेतृत्व भी बुरी तरह चौक गया था जबकि उस समय जनसंघ की कोई स्थिति ही नहीं हुआ करती थी।
इसके बाद डॉ. शंकर दयाल शर्मा को 1967 में खड़ा किया और वे जनसघ के भानुप्रकाश को हराकर लोकसभा में पंहुंचे पर आरिफ बेग से वे 1977 में पराजित हुए तो 1980 में उन्होंने अपनी हार का बदला चुका दिया।1984 में कांग्रेस के एन प्रधान जीतने के बाद फिर यह सीट कांग्रेस को नहीं मिली ।सन 1989 से लगातार चार चुनाव पूर्व मुख्यसचिव सुशील चंद्र वर्मा भाजपा टिकट से जीतते रहे । श्री वर्मा ने 1991 में नवाब पटौदी और 1996 में कैलाश कुंडल और 1998 में आरिफ बेग को हराया।श्री बेग को कांग्रेस ने टिकट दिया था। इसके बाद उमा श्री भारती 13 वीं लोकसभा में सुरेश पचौरी को हराकर पहुंची और 14 वीं और 15 वीं लोकसभा का कैलाश जोशी ने कांग्रेस प्रत्याशियों को हराकर प्रतिनिधित्व किया और वर्तमान में आलोक संजर पी सी शर्मा को हराकर लोकसभा का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। निरंतर 8 बार भोपाल सीट पर भाजपा के प्रत्याशियों की जीत से भोपाल भाजपा के लिए सुरक्षित हो चुकी है।
इस बीच भोपाल का निरंतर विस्तार हुआ और राजधानी होने से स्वाभाविक रूप से सन 1956 जब नए मध्य्प्रदेश का गठन हुआ भोपाल की आवादी लगभग दुगुनी हो चुकी है ,अब कांग्रेस का इस सीट पर प्रत्याशी खड़े करने में पसीना छूटने लगा है और प्रत्याशी बनने के लिए बड़े बड़े नेता बंगले झांकने लगते हैं।इसलिए कांग्रेस की ओर से कभी करीना कपूर तो कभी प्रियंका गांधी का नाम लिया जाता है। भोपाल के नव निर्वाचित विधायक जो अब कमलनाथ मंत्रिमंडल के सदस्य पी सी शर्मा को डर है कि कहीं उन्हें यह चुनाव लड़ने की जिम्मेदारी न दे दी जाए इसलिए उससे बचने के लिए उन्होंने संभवतः करीना कपूर का नाम उछाला होगा पर करीना कपूर भला राजनीति में क्यों आना चाहेगी ? और जब उनके ससुर नवाब पटौदी ही अनुकूल परिस्थिति में चुनाव हार चुके हों तब उनके जीतने की संभावना ही कितनी है? किन्तु कांग्रेस नेताओं द्वरा इस तरह के बाहरी प्रत्याशियों के नाम उछालने से कांग्रेस की स्थिति और खराब हुई है।अब राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के चलते नित्य नए नाम उछाले जाने लगे हैं जिसके चलते कभी दिग्विजय सिंह तो कभी ज्योतिरादित्य सिंधिया तो कभी अजय सिंह के नाम प्रस्तावित किये गए। श्री सिंधिया को पश्चिम उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाये जाने के बाद दिग्विजय सिंह का नाम जब गंभीरता से लिया जाने लगा तो उनकी ओर से भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर को प्रस्ताव दिया गया है कि वे यदि अपनी सहमति दें तो उन्हें कांग्रेस चुनाव लड़ा सकती है। कहा जाता है कि श्री गौर ने अभी तक न सहमति दी है और न असहमति अर्थात वे चुनाव लड़ भी सकते हैं।पर यह प्रस्ताव भाजपा के लिए भी सुबिधाजनक होगा क्योंकि वे कुछ समय से अपनी पार्टी के लिए समस्या बने हुए हैं। यदि बाबूलाल गौर भोपाल से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ते हैं तो उनकी वही स्थिति होगी जो अभी हाल में पूर्व मंत्री सरताज सिंह की हुई है।
(लेख Bhuwan Singh Kushwah जी की वाल)