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- क्या अहमद पटेल की जगह...
अरुण दीक्षित
भोपाल। पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ कांग्रेस नेता कमलनाथ की कांग्रेस अध्यक्ष सोनियां गांधी से मुलाकात के बाद कांग्रेस में अटकलों का दौर शुरू हो गया है। माना यह जा रहा है कि नेतृत्व के संकट से गुजर रही कांग्रेस के लिए कमलनाथ संकटमोचक बनेंगे! हालांकि अपने अनिर्णय और असमंजस की स्थिति के लिए बदनाम हो चुकी कांग्रेस कोई फैसला कर पायेगी इसमें संदेह है।लेकिन माना यह जा रहा है कि हालात को देखते हुए कमलनाथ जल्दी ही किसी नई भूमिका में आ सकते हैं।
कमलनाथ गुरुवार को दिल्ली में सोनियां गांधी से मिले थे।उनकी मुलाकात के समय प्रियंका भी मौजूद थीं।इस मुलाकात के बाद कमलनाथ ने मीडिया से सिर्फ इतना कहा-कांग्रेस नेतृत्व ने आजतक मुझे जो भी जिम्मेदारी दी वह मैंने पूरी ईमानदारी से निभाई है।आगे भी मैं ऐसा ही करूँगा।लेकिन वे यह कहना भी नही भूले- मैं मध्यप्रदेश नही छोडूंगा।
उल्लेखनीय है कि 20 मार्च 2020 को सरकार गिरने के बाद से कमलनाथ मध्यप्रदेश में ही जमें हैं।वह विधानसभा में कांग्रेस विधायक दल के नेता भी हैं और प्रदेश कांग्रेस की कमान भी संभाल रहे हैं।पिछले कुछ दिनों से कांग्रेस का ही एक धड़ा यह मांग कर रहा है कि कमलनाथ को दो में से एक पद छोड़ देना चाहिये।अभी यह सब बंद कमरों में चल रहा है।इस मुहिम से कमलनाथ भी अनजान नही हैं।शायद यही बजह थी कि उन्होंने भी साफ साफ कह दिया था कि मैं प्रार्थनापत्र देकर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नही बना था।
लेकिन सोनियां से उनकी मुलाकात के बाद अटकलों का दौर शुरू हो गया है।यह सच है कि कांग्रेस में इस समय भारी आंतरिक संकट है।राहुल गांधी के अध्यक्ष पद छोड़ देने के बाद कोई फैसला नही हो पाया है।सोनिया अंतरिम अध्यक्ष का दायित्व निभा रही हैं।पार्टी के 23 बड़े नेताओं द्वारा आवाज उठाये जाने के बाद आंतरिक संकट और गहरा गया है।इस बजह से अध्यक्ष का फैसला भी अटक गया है।
अहमद पटेल के असामयिक निधन ने यह संकट और बढ़ाया है।अहमद पटेल गांधी परिवार के विश्वासपात्र तो थे ही साथ ही उनके सभी वरिष्ठ नेताओं से भी मधुर संबंध थे।कांग्रेस के भीतर और बाहर अहमद पटेल की अच्छी पकड़ थी। फिलहाल ऐसा कोई नेता नही है।जो बड़े नेता हैं उन पर पार्टी नेतृत्व को विश्वास नही है।यही बजह है कि अस्तित्व पर ही संकट आ जाने के बाद भी कांग्रेस कोई फैसला नही कर पा रही है।भाजपा,खासकर नरेंद्र मोदी के हमलों के आगे वह वेवश और बेदम दिख रही है।उसके अपने नेता पौरुष की सेना के हाथियों की तरह व्यवहार कर रहे हैं।
जिन राज्यों में वह सत्ता में है वहां हालात बहुत बुरे हैं।राजस्थान पंजाब महाराष्ट्र छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में लगातार हालात बिगड़ रहे हैं।इसका सीधा असर नेतृत्व पर पड़ रहा है।उसकी कमजोरी लगातार उजागर हो रही है।
ऐसे में कमलनाथ एकमात्र वो नेता हैं जो पार्टी के भीतर और बाहर सबसे बात कर सकते हैं। ममता बनर्जी और मायावती से भी उनके संबंध हैं तो शरद पवार और लालू यादव से भी उनकी बात होती रही है।
सबसे बड़े विरोधी नरेंद्र मोदी से भी कमलनाथ का दोस्ताना सा रहा है।गुजरात के एक प्रमुख उद्योगपति कमलनाथ के भी करीबी दोस्त हैं और मोदी के भी।
गांधी परिवार से उनकी निकटता संजय गांधी के समय से है।परिवार के तीनों वर्तमान सदस्य भी उन्हें निकटता से जानते हैं।ऐसे में कमलनाथ ही वह नेता हैं जिन पर गांधी परिवार भरोसा कर सकता है।
कांग्रेसी यह भी कहते हैं कि कमलनाथ की अहमियत इसी बात से सावित होती है कि जब ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस छोड़ रहे थे तब गांधी परिवार के किसी सदस्य ने उनसे बात नही की।जबकि राजस्थान में सचिन पायलट को रोका गया।यह अलग बात है कि वहां भी आजतक कोई फैसला नही हुआ है।
वैसे भी कमलनाथ कांग्रेस के पहली पंक्ति के नेताओं में सबसे आगे हैं।पी चिदंबरम, कपिल सिब्बल,सलमान खुर्शीद, गुलामनबी आजाद,दिग्विजय सिंह, सुशील कुमार शिंदे,आनंद शर्मा,जयराम रमेश,शशि थरूर और मणिशंकर अय्यर सब उनके बाद में आते हैं।इन सबसे उनके सम्बन्ध हैं।
यह कहा जा सकता है कि कमलनाथ की छवि एक लोकप्रिय राष्ट्रीय नेता की नही है।वे इस मोर्चे पर मोदी-शाह का मुकाबला नही कर सकते हैं।लेकिन इतना तय है कि वे एक बेहतर समन्वयक सावित हो सकते हैं।
अतः यह माना जा रहा है कि कमलनाथ को जल्दी ही कोई नई भूमिका मिल सकती है।लेकिन कांग्रेस का जो इतिहास रहा है उसे देखते हुए कुछ भी कहना वेमानी होगा।क्योंकि वह कोई भी फैसला समय पर नही करती है।अगर समय पर ,सही फैसले लिए गए होते तो आज यह हालत नही होती।