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क्या मध्यप्रदेश में होंगे मध्यावधि चुनाव ? जानिये हर सवाल का जबाब
दीपक शर्मा
इंदौर। मध्यप्रदेश में बने इस राजनीतिक घटनाक्रम के चलते कांग्रेस भाजपा ही नहीं आम जनता के मन में भी कई तरह के सवाल पैदा होने शुरु हो गए हैं। जहां एक ओर कांग्रेस अपनी सरकार को स्थिर बताने की चेष्टा कर रही है, वहीं कुछ लोग मध्यावधि के चुनाव को लेकर भी टेंशन में हैं। यह स्थिति इसलिए भी पैदा हो रही है क्योंकि सिंधिया समर्थक विधायकों ने इस्तीफे दे दिए हैं, वहीं अब कुछ इसे मध्यावधि चुनाव से जोड़कर देख रहे हैं।
वहीं राजनीति के जानकारों का कहना है कि दअरसल दोनों राजनीतिक दलों के विधायक आंकड़े बहुमत के पास होने यानि लगभग एक समान होने की वजह से प्रत्येक नागरिक के मन में सरकार का क्या होगा, ऐसे प्रश्न पैदा हो रहे हैं। जिनका समाधान ठीक ढंग से नहीं प्राप्त हो रहा है। यहां तक कि कई जगहों पर अलग-अलग प्रकार की बातें बतलाई जा रही हैं, वहीं आपके इन्हीं प्रश्नों को देखते हुए व इनके समाधान के लिए जवाब ढ़ूंढ़ने का प्रयास किया गया, जिसके तहत हमने अधिवक्ता एवं विधि व्याख्याता पंकज वाधवानी से बात कि उन्होंने हर सवाल का जवाब देते हुए बताया कि अब भारतीय संविधान के अनुसार क्या-क्या स्थितियां उत्पन्न हो सकती हैं।
उनके क्या-क्या समाधान है
इंदौर के अधिवक्ता पंकज वाधवानी के अनुसार कोई भी विधायक यदि विधायक MLAs रहते दल को बदल कर अन्य राजनीतिक दल अपना लेता है अथवा अपना राजनीतिक दल छोड़ देता है, तो संविधान में वर्ष 1985 में 52 वें संविधान संशोधन के तहत जोड़ी गई 10वीं अनुसूची और दल बदल कानून के अनुसार उसकी विधायकी नहीं रहेगी यानि विधायक को अपने पद से त्यागपत्र देना होगा, नहीं तो स्वत: ही वह विधायक नहीं रहेगा।
इस्तीफा स्वीकार करने का अधिकार विधानसभा अध्यक्ष का
अनेक लोगों में यह भी कंफ्यूजन है कि विधायक अपना त्यागपत्र किसे संबोधित करते हुए देगा। क्या राज्यपाल को विधायक के इस्तीफे को स्वीकार करने की शक्ति है, तो हमारे संविधान कहता है कि विधायक का इस्तीफा स्वीकार करना विधानसभा अध्यक्ष की शक्ति में आता है। इस्तीफा स्वीकार करते से ही उक्त विधानसभा सीट रिक्त हो जाएगी और वहां उपचुनाव कराने होंगे।
मध्य प्रदेश सरकार की वर्तमान कानूनी स्थिति
वहीं मध्यप्रदेश में 22 विधायकों के इस्तीफे के बाद, कांग्रेस सरकार अल्पमत में रह गई है। यदि ये इस्तीफे स्वीकार हो जाते हैं तो कमलनाथ सरकार का गिरना निश्चित है। उसके बाद प्रदेश के राज्यपाल द्वारा जिसे वह उपयुक्त पाते हैं उसे सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करेंगे। 22 विधायकों के बाद बहुमत के लिए आंकड़ा सिर्फ 104 विधायकों का रह जाएगा और जो कि वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी के पास 106 विधायक हैं ऐसी स्थिति में यदि फ्लोर टेस्ट कराया भी जाता है तो भी भाजपा सरकार का निर्माण कर सकती है।
सिंधिया समर्थक मंत्रियों और विधायकों का क्या होगा
ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ भारतीय जनता पार्टी के आपसी राजीनामे के तहत सिंधिया समर्थकों को मंत्री भी बनाया जा सकता है अथवा विधानसभा टिकट देकर उपचुनाव में भाजपा के विधायक के रूप में अवसर दिया जा सकता है। यहां तक कि सरकार में जो लोग विधायक नहीं है, उन्हें भी मंत्री बनाया जा सकता है, लेकिन मंत्री बनने के बाद 6 महीने के अंदर विधानसभा की सदस्यता प्राप्त करना जरूरी है। जो या तो किसी सदस्य का इस्तीफा दिलवा कर स्थान रिक्त करवाकर चुनाव करवाकर किया जा सकता है। इस प्रकार इन 22 विधायकों में से भी जिनको चाहे उन्हें नई बनने वाली सरकार में मंत्री बनाया जा सकता है ।
मध्यावधि चुनाव की संभावना कब
अधिवक्ता एवं विधि व्याख्याता वाधवानी के अनुसार भारतीय संविधान के अंतर्गत वर्तमान स्थिति में कमलनाथ सरकार द्वारा विधानसभा भंग करने की सिफारिश नहीं की जा सकती है क्योंकि वर्तमान सरकार अल्पमत में है और विधानसभा भंग करने की सिफारिश बहुमत में रहने वाली सरकार ही कर सकती है, ऐसी संवैधानिक व्यवस्था है।
यदि कांग्रेस के सभी विधायक इस्तीफा दे दें तो
वहीं यदि कांग्रेस के भी सभी विधायक इस्तीफा दे देते हैं,तब भी मध्यावधि चुनाव की अनिवार्यता नहीं है। सरकार का गठन हो सकता है। उसके पश्चात भाजपा की सरकार बहुमत सिद्ध करने के बाद, यदि चाहे तो, विधानसभा भंग करने की सिफारिश करके मध्यावधि चुनाव करवा सकती है।
सबसे खास बात मध्यावधि चुनाव की है तो ये स्थिति तब ही निर्मित हो सकती है जब विधानसभा शून्य या निरस्त यानि भंग कर दी जाए और विधानसभा को शून्य या निरास्त करने की शक्ति केवल राज्यपाल के पास है।
इस्तीफा वापस लेने के बाद की स्थिति
वहीं यदि 22 विधायकों में से कुछ विधायकों ने अपना इस्तीफा वापस ले लिया और वे कांग्रेस के खेमे में वापस चले जाते हैं, तो ऐसी स्थिति में भी संख्या बल देखना होगा, जिसके पास अधिक संख्या बल होगा वह सरकार का निर्माण कर लेगा और अविश्वास प्रस्ताव को भेद देगा।