भोपाल

क्या मोदी को चुनौती देंगे शिवराज?

क्या मोदी को चुनौती देंगे शिवराज?
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उन्होंने जनता से ही पूछ लिया कि उनकी सरकार अच्छी है या बुरी।फिर से उनकी सरकार बननी चाहिए कि नहीं।उन्होंने यह भी कहा कि जो हमारा साथ देगा, हम उसका साथ देंगे!

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को खुली चुनौती देने के मूड में आ गए हैं ? सुनियोजित रणनीति के तहत सार्वजनिक रूप से हाशिए पर ढकेले जा रहे शिवराज क्या अब ताल ठोकेंगे?या फिर उन्होंने तय कर लिया है कि अपमानित होकर सत्ता से बेदखल नही होंगे?वे उसी तरह से हर बात का उत्तर जनता के बीच ही देंगे जिस तरह खुलेआम उन्हें "किनारे" लगाने की मुहिम चलाई जा रही है।

यह और ऐसे कई अन्य सवाल शुक्रवार को डिंडोरी जिले में शिवराज सिंह की सभा के बाद उठे हैं।इस सभा में शिवराज पूरी तरह बदले हुए नजर आए।उन्होंने जनता से ही पूछ लिया कि उनकी सरकार अच्छी है या बुरी।फिर से उनकी सरकार बननी चाहिए कि नहीं।उन्होंने यह भी कहा कि जो हमारा साथ देगा, हम उसका साथ देंगे!

शिवराज के आज के भाषण की व्याख्या करने से पहले यह जान लेते हैं कि इसकी जरूरत क्यों पड़ी!इसके लिए मैं आपको कुछ महीने पीछे ले चलता हूं।मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव की कमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की केंद्रीय टीम ने संभाल रखी है।गृहमंत्री अमित शाह उसकी अगुवाई कर रहे हैं। इस व्यवस्था के बाद शाह जब पहली बार मध्यप्रदेश आए तो उन्होंने एक जनसभा में यह संकेत दिया कि शिवराज सिंह चौहान अगले मुख्यमंत्री नही होंगे।उन्होंने कहा कि दिल्ली में मोदी जी के नेतृत्व में और एमपी में सामूहिक नेतृत्व में बीजेपी की सरकार बनानी है।उसके बाद यह माना गया कि मोदी अब शिवराज को कोई मौका नहीं देना चाहते।बाद में भोपाल में जब मीडिया ने अमित शाह से यह सवाल पूछा तो उन्होंने मीडिया को सलाह दी कि वह इस बात की चिंता न करे।यह उनकी पार्टी का मामला है।पार्टी देख लेगी।इसी के साथ एमपी में सामूहिक नेतृत्व का जुमला चल निकला।

मध्यप्रदेश में चुनाव प्रबंधन का जिम्मा संभाल रहे केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर और प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा ने भी इसी बात को आगे बढ़ाया।नरेंद्र तोमर से जब इस बारे में पूछा गया कि क्या शिवराज सिंह अगले मुख्यमंत्री होंगे!तो उन्होंने यह कह कर पल्ला झाड़ लिया कि इस बारे में फैसला केंद्रीय संसदीय बोर्ड करेगा।

इसके बाद अगले मुख्यमंत्री के रूप में शिवराज का नाम लिया जाना बंद हो गया।इस पर आखिरी मुहर खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लगाई।वे 25 सितम्बर को भोपाल में पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित करने आए थे।मोदी ने प्रदेश के लाखों कार्यकर्ताओं के सामने शिवराज सिंह चौहान का नाम तक नहीं लिया।करीब एक घंटे के अपने भाषण में प्रधानमंत्री ने सिर्फ अपनी सरकार की योजनाओं की बात की।शिवराज की किसी योजना का जिक्र तक नहीं किया।उस दिन यह मान लिया गया कि सबसे लंबे समय तक मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री रहने का रिकॉर्ड बना चुके शिवराज अब अपने अंतिम ओवर खेल रहे हैं।इस बात की चर्चा भी खूब हुई।यह भी माना गया कि शिवराज सिंह की किस्मत का फैसला नरेंद्र मोदी ने कर दिया है।

इस घटना के बाद शिवराज भी हतोत्साहित नजर आए।निराशा का भाव उनके चेहरे पर साफ दिखाई दे रहा था।लेकिन कुछ दिन बाद ही शिवराज सिंह ने खुद ही यह मुद्दा उठाया।पहले उन्होंने अपने गृह जिले सीहोर के लाड़कुई कस्बे में एक जनसभा में भावुक भाषण देते हुए कहा - मेरे जैसा भाई नही मिलेगा।मैं चला जाऊंगा तो याद करोगे।उसके दो दिन बाद उन्होंने फिर यही मुद्दा उठाया।इस बार अपने चुनाव क्षेत्र में उन्होंने लोगों से कहा - सोच रहा हूं कि चुनाव लड़ूं या न लडूं। लडूं तो यहीं से लडूं या फिर कहीं और से?तब यह माना गया कि शिवराज ने यह मान लिया है कि विधानसभा चुनाव में यदि बीजेपी जीत भी गई तो वह मुख्यमंत्री नही बनेंगे।साथ ही यह चर्चा भी शुरू हो गई कि बीजेपी उन्हें विधानसभा चुनाव लड़ाएगी भी या नहीं?

लेकिन दो दिन बाद जबलपुर में नरेंद्र मोदी की सभा में शिवराज ने अचानक एक नया दांव चला।उन्होंने मोदी की मौजूदगी में ही मंच से जनता से पूछा कि मैं कैसी सरकार चला रहा हूं? मेरी सरकार अच्छा काम कर रही है कि नही!

शुक्रवार को तो वे एक साथ कई कदम आगे बढ़ गए।शिवराज ने जिला प्रशासन द्वारा आयोजित सभा में आदिवासी महिलाओं को पैसा बांटने के बाद मंच से ही यह सवाल किया कि मैं कैसी सरकार चला रहा हूं ?अच्छी सरकार चला रहा हूं कि बुरी सरकार चला रहा हूं?सभा में मौजूद लोगों ने उन्हें जोर से उत्तर भी दिया।तो उन्होंने अगला सवाल किया कि तो यह सरकार आगे चलनी चाहिए कि नहीं?मामा को मुख्यमंत्री बनना चाहिए कि नहीं?

शिवराज यहीं नही रुके! उन्होंने प्रशासन द्वारा जुटाई गई भीड़ से पूछा - मोदी जी को प्रधानमंत्री बनना चाहिए कि नहीं?भाजपा की सरकार बननी चाहिए कि नहीं।इसके बाद शिवराज ने कहा - जो हमारा साथ देगा ,हम उसका साथ देंगे।

उनके इस भाषण के बाद राजनीतिक हलकों में सुगबुगाहट शुरू हो गई है। सवाल उठ रहा है कि क्या शिवराज नरेंद्र मोदी को चुनौती दे रहे हैं?अमित शाह द्वारा सामूहिक नेतृत्व की बात कहे जाने और नरेंद्र मोदी द्वारा भरी सभा में नाम तक न लिए जाने के बाद शिवराज ने सोच समझ कर जनता के बीच अपनी सरकार की बात उठाई है।उन्होंने जनता से ही पूछा है कि उनकी सरकार कैसी है। अगर अच्छी है तो फिर सरकार बननी चाहिए और उन्हें मुख्यमंत्री बनना चाहिए?

जो बात अमित शाह ने शुरू की उसे शिवराज जनता की अदालत में ले गए हैं।उन्होंने यह भी साफ कर दिया है कि वे अब पीछे नहीं हटेंगे।जनता से खुद के बारे में सीधी बात करेंगे।

शिवराज के शुक्रवार के भाषण में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के सवाल पर भी सवाल उठ रहा है। माना जा रहा है कि इस सामान्य सवाल के साथ उन्होंने नरेंद्र मोदी की अगली पारी पर भी सवाल उठा दिया है।

अभी विधानसभा चुनाव की बात हो रही है।लोकसभा चुनाव सात महीने बाद होने हैं!अभी मोदी भी सिर्फ विधानसभा चुनाव की बात कर रहे हैं।यह अलग बात है कि वे खुद अपनी तीसरी पारी का ऐलान कर चुके हैं।उनके नेतृत्व पर संघ और बीजेपी में कोई सवाल भी नही उठा रहा है।न ही कोई उन्हें चुनौती देने की स्थिति में है।

फिर शिवराज ने अपने साथ नरेंद्र मोदी का नाम क्यों लिया ?क्यों उन्होंने यह कहा कि जो हमारा साथ देगा हम उसका साथ देंगे?

सवाल यह भी है कि अचानक शिवराज ने खुद की सरकार की बात जनता की अदालत में क्यों उठा डाली?क्या पिछले 10 दिन में बीजेपी और संघ के भीतर ऐसा कुछ हुआ है जिससे शिवराज को ताकत मिली है और उन्होंने मोदी की लाइन को तोड़ते हुए फिर से मुख्यमंत्री बनने की बात कही है?क्या शिवराज को इसके लिए भीतर से समर्थन मिल गया है?

सबसे बड़ी बात यह है कि दस साल में पहली बार परोक्ष रूप से ही सही,नरेंद्र मोदी के तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने पर सवाल उठा है।क्योंकि सब यही मान कर चल रहे हैं कि प्रधानमंत्री की कुर्सी तो स्थाई रूप से मोदी के लिए ही आरक्षित है।अगर बीजेपी की सरकार बनेगी तो मोदी ही प्रधानमंत्री होंगे।ऐसे में यह सवाल पूछना कि मोदी जी को प्रधानमंत्री बनना चाहिए कि नहीं ,अपने आप में बड़ी बात है।

एक बात तो तय है कि शिवराज ने यह साफ कर दिया है कि वे इतनी आसानी से मैदान छोड़ने वाले नहीं हैं।अगर बीजेपी विधानसभा चुनाव जीती तो वे मुख्यमंत्री की कुर्सी के पहले दावेदार होंगे।सामूहिक नेतृत्व की बात की परवाह उन्हें नहीं है।शिवराज ने यह रूप दस साल में पहली बार दिखाया है।एक समय में प्रधानमंत्री की कुर्सी के दावेदार रहे "मामा" अब तक मोदी के सामने दंडवत रहे हैं।वे उन्हें भारत के लिए भगवान की देन बताते रहे हैं।

माना जा रहा है कि अंदर ही अंदर कुछ पक रहा है।शिवराज के साथ कोई तो खड़ा है।अगर नही तो क्या वे शंकर सिंह वाघेला के रास्ते पर जायेंगे?या फिर येदुरप्पा की तरह मोदी को आईना दिखायेंगे?मोदी मंच से चिल्ला चिल्ला कर कह रहे हैं कि उनके मन में "मध्यप्रदेश" है।उधर शिवराज के मन में क्या चल रहा है अब वे ही जाने।पर इतना तय है कि उनके ये तेवर मोदी को खुली चुनौती का आभास देते प्रतीत हो रहे हैं।

अरुण दीक्षित

अरुण दीक्षित

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