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- अपना एमपी गज्जब है~4...
अपना एमपी गज्जब है~4 गाय सड़क मरती है तो मरे रणबीर~आलिया को महाकाल के दर्शन नहीं करने देंगे..
अरुण दीक्षित
महाकाल की नगरी उज्जैन से खबर आई है कि हिंदूवादी संगठनों ने अभिनेता रणबीर कपूर और उनकी पत्नी आलिया भट्ट को महाकाल बाबा के दर्शन नही करने दिए!कपूर दंपति को महाकाल के दर्शन करने के बजाय उज्जैन कलेक्टर के दर्शन करके लौटना पड़ा।
बताया गया है कि रणबीर आलिया अपनी नई फिल्म ब्रम्हास्त्र की सफलता के लिए महाकाल बाबा के दरबार में मत्था टेकने आए थे।यह पहला मौका नहीं था जब फिल्मी दुनियां के लोग महाकाल के दर पर आए हों।इससे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का इंटरव्यू करने वाले अक्षय कुमार व अन्य अभिनेता भी उज्जैन आ चुके हैं।उज्जैन जाने से पहले रणबीर ने सोशल मीडिया पर इस बात की घोषणा भी की थी।
रणबीर को महाकाल मंदिर में न घुसने देने की मुख्य वजह शिव की सवारी नंदी की मां यानी गौ माता बताई गई। कहा जा रहा है कि दस ग्यारह साल पहले रणबीर ने किसी इंटरव्यू में यह कह दिया था कि मांस मच्छी के साथ साथ वे बीफ भी खाते हैं। बीफ उन्हें पसंद है।
उनका यही बयान अब उन्हें दुख दे रहा है।मुंबईया फिल्मों के लगातार फ्लॉप होने के दौर में उनके कुछ रकीबों ने उनका यह वीडियो खोजकर सोशल मीडिया पर डाल दिया।उसके साथ ही एक मुहिम शुरू हुई।इसे नाम दिया गया~बायकॉट ब्रह्मास्त्र!
ऐसे मुद्दों पर विरोध की सुपारी लेने वाले हिंदूवादी दल सबसे आगे रहते हैं।यही वजह रही कि कपूर दंपत्ति के उज्जैन पहुंचने से पहले उनका विरोध करने वाले हिंदूवादी संगठन मंदिर के दरवाजे पर पहुंच गए। वे कह रहे थे कि बीफ खाने वाले को मंदिर में नही घुसने देंगे।मंदिर के एक पुजारी महोदय ने भी कैमरे के सामने चिल्लाकर चिल्लाकर कहा कि गोमांस खाने वाले को मंदिर में नही घुसने देंगे।प्रदर्शनकारियों ने मौके पर मौजूद पुलिस अफसरों से बदसलूकी भी की।बदले में पुलिस ने लाठियों से उनका अभिनंदन किया।
उधर मंदिर के दरवाजे पर हंगामे की खबर पाने के बाद रणबीर आलिया मंदिर नही गए। वे कलेक्टर के घर गए और फिर वहां से वापस घर लौट गए।मीडिया में कहा गया है कि चूंकि रणबीर की पत्नी मां बनने वाली हैं।उनके साथ धक्का मुक्की न हो जाए इसलिए उन्होंने मंदिर न जाने का फैसला किया।
यह तो थी उज्जैन की घटना!अब गौ भक्त राज्य में, गौ भक्त सरकार के रहते गायों की हालत की बात।इस समय बारिश का मौसम है।इन दिनों आपको पूरे राज्य में हजारों गाएं सड़क पर घूमती मिल जायेंगी।राजधानी भोपाल हो या व्यावसायिक राजधानी इंदौर!महाकाल की नगरी उज्जैन हो या महाकाल के भक्त सिंधिया की नगरी ग्वालियर!कमोवेश प्रदेश के हर शहर और गांव की सड़कों पर आपको गाएं घूमती दिख जाएंगी। इनमें ज्यादातर के कानों में सरकारी टैग भी लगे मिलेंगे।
ग्वालियर से यदि आप इंदौर की तरफ आए तो आपको सड़क के दोनो ओर गायों की लाशें मिलेंगी।जो ट्रकों से कुचल कर मरी हैं।साथ ही इस राजमार्ग पर गायों के बड़े बड़े झुंड भी मिलेंगे।
सड़क पर आवारा घूमती गायों की वजह से हर साल कितने लोगों की जान जाती है इसका आंकड़ा तो अलग से उपलब्ध नही है।लेकिन सड़कों पर घायल गायों की संख्या अच्छी खासी रहती है।कुछ संगठन गायों के सींगों पर रिफलेक्टर भी लगाते हैं ताकि लोग खुद भी बचें और गायों को भी बचाएं।
मजे की बात यह है कि 11 साल पहले बीफ खाने की बात कहे जाने से अपनी भावनाओं को आहत करने वाले इन हिंदूवादी संगठनों को सड़क पर मरती गाएं नही दिखाई देती हैं। सड़कों पर प्लास्टिक की पन्नी चबाती और इसकी वजह से बीमार होने वाली गौ माता पर इनकी नजर नहीं जाती है।उनके लिए इन्होंने कभी काले झंडे नही उठाए। न कभी सड़क पर पड़ी गायों को बचाने की मुहिम चलाई।लेकिन किसी ने बीफ खाने की बात कही,और किसी ने उसकी सुपारी दी तो फौरन इनका हिंदुत्व जाग जाता हैं।
इन कथित गौ भक्तों के बाद बात गौ भक्त सरकार की।प्रदेश में करीब दो दशक से गौ भक्त सरकारें हैं।2003 में उमा भारती ने जब तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के खिलाफ आक्रमक अभियान चलाया था तब दिग्विजय पर एक गंभीर आरोप यह भी था कि उन्होंने गांवों में गायों की चरनोई की जमीन भी बांट दी है।
उमा ने अपनी 9 महीने की सरकार में पंच ज कार्यक्रम भी शुरू किया था। उस पंच ज जल,जंगल,जमीन
जानवर और जन शामिल थे।उनके बाद आए बाबूलाल गौर ने इस कार्यक्रम को आगे बढ़ाया।भगवान श्रीकृष्ण के वंशज गौर ने प्रदेश में गोकुल गांव बनाए थे।
गौर के बाद आए शिवराज सिंह तो बड़े गौभक्त हैं।उन्होंने गाय की सेवा के लिए बहुत कुछ किया है।वे मुख्यमंत्री निवास में भी गायें पालते हैं।उन्होंने राज्य में गौ पालन एवम पशुधन संवर्धन बोर्ड भी बनाया है।साथ ही गौकशी करने वालों के लिए सख्त सजा का भी प्रावधान किया है।उनके परिवार ने गायों की डेयरी भी खोल रखी है।हर दृष्टि से पक्के गौ भक्त हैं शिवराज।
मध्यप्रदेश में इस समय करीब 2200 गोशालाएं हैं।इनमें करीब 1600 सौ गोशालाएं सरकार चलाती है। बाकी निजी संस्थाएं चला रही हैं। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक राज्य सरकार ने गोशालाओं के निर्माण पर करीब 257 करोड़ रुपए खर्च किए हैं।यह काम मुख्यमंत्री गौ सेवा योजना के तहत किया गया है।
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश की निजी और सरकारी गौशालाओं में करीब पौने तीन लाख गाएं हैं।इन गायों के भोजन के लिए सरकार प्रतिदिन 20 रुपए के हिसाब से अनुदान देती है।
राज्य सरकार ने गौशालाओं के लिए मनरेगा से 900 करोड़ का अनुदान भी दिया था।साथ ही दिग्विजय के पाप को देखते हुए हर गौशाला को चरनोई के लिए पांच पांच एकड़ जमीन भी दी है।
बीच में 15 महीने के लिए प्रदेश में कांग्रेस की सरकार रही।उसके मुखिया कमलनाथ ने भी गौमाता की सेवा के लिए हरसंभव कोशिश की।नई गौशालाएं बनाईं।पंचायतों को गौशालाएं बनाने के लिए प्रोत्साहित किया।चूंकि बीच में ही उनके विधायक समर्थन मूल्य लेकर भाजपा में चले गए इसलिए वे बेचारे ज्यादा समय तक गौसेवा कर नही पाए।
लेकिन फिर भी राज्य में गायों की हालत खराब है। गो पालन परिषद के अध्यक्ष स्वामी अखिलेशानंद गिरी ने कुछ महीने पहले कहा था कि 20 रुपए में एक गाय को दो समय चारा दे पाना कठिन है।20 रुपए में गाय का पेट नही भरता। करोना काल में तो सरकार ने समय पर अनुदान भी नही दिया।कमलनाथ ने गायों के लिए 150 करोड़ का बजट प्रावधान किया था।शिवराज ने आकर उसे 60 करोड़ कर दिया।अब इतनी कम राशि में कैसे भरेगा गाय का पेट।
यही वजह है कि प्रदेश में गोशालाएं बंद हो रही हैं।सरकारी आंकड़ों के मुताबिक तीन साल में 200 से ज्यादा गोशालाएं बंद हुई हैं।खुद गौ संवर्धन बोर्ड ने अपनी तीन गोशालाएं बंद कर दी हैं।
प्रदेश में निजी गोशालों की हालत बहुत खराब है।इसी साल जनवरी में भोपाल के नजदीक बैरसिया में एक गोशाला में 100 से ज्यादा गाएं मर गईं थीं।अभी पिछले दिनों भारी बारिश के चलते राजगढ़ जिले में दर्जनों गायें मारी गईं।जिस गोशाला में ये गाएं थी उसके संचालक ताला लगाकर भाग गए।जिसकी वजह से गाएं पानी में फंस गईं।बाद में उनके शव पेड़ों पर लटके मिले।चूंकि इन गोशालाओं का संचालन हिंदूवादी और राष्ट्रवादी दल से जुड़े लोगों के हाथ में था इसलिए इन कथित धर्मरक्षकों की भावनाएं आहत नहीं हुईं।एक ने गाय का मांस खाने की बात कह दी तो काले झंडे लेकर महाकाल के द्वार पहुंच गए।लेकर गायों को तिल तिल मारने वालों के खिलाफ इनके मन में कोई भाव नहीं आया।
सबसे मजे की बात यह है कि ये प्रदर्शनकारी जिस राष्ट्रवादी दल के लिए जमीन तैयार करते हैं वह गोवा और पूर्वोत्तर के राज्यों में गोमांस खाने और बेचने वालों के साथ मिलकर सरकार बनाता है। दिल्ली की इनकी सरकार का मंत्री खुद बीफ खाने की बात स्वीकार करता है।लेकिन तब इनकी भावना आहत नहीं हुई। सड़क पर उतरकर प्रदर्शन तो दूर किसी ने मुंह नही खोला।
इससे भी ज्यादा मजे की बात यह है कि अन्य धर्मों के लोग अपने धर्म का प्रचार करने के लिए लोगों को अपनी ओर लाने के लिए हर संभव कोशिश करते हैं।और ये ? ये अपने ही धर्म से जुड़े लोगों को काले झंडे दिखाते हैं। इन्हें यह भी ध्यान नहीं रहता कि इस देश में लोगों को इस बात की आजादी है कि वे अपने धर्मस्थल पर जा सकते हैं।लेकिन "सुपारी" के लिए वे सब कुछ भूल जाते हैं।
गाय सड़क पर कुचल कर मरे!प्लास्टिक और अन्य अखाद्य पदार्थ खाकर मरे!या फिर गोशालाओं में भूख से।इन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता।
न ही इनका ध्यान राजस्थान के बीकानेर में बीमारी से मरी हजारों गायों के शव खुले में पड़े होने की ओर जाता है। शायद वहां इनका धर्म जागृत नही होता है।
लेकिन मध्यप्रदेश में वे किसी को मंदिर में इसलिए नही घुसने देते क्योंकि उसने सालों पहले बीफ खाने की बात कही थी।है ना अपना मध्यप्रदेश गज्जब।गज्जब भी और अजब भी।