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अरविंद जयतिलक
राजस्थान के उदयपुर में नूपुर शर्मा के समर्थन में सोशल मीडिया पर एक पोस्ट को लेकर दो जेहादियों द्वारा कन्हैयालाल साहू की दिनदहाड़े हत्या रेखांकित करता है कि राज्य में कानून-व्यवस्था चैपट है और सिस्टम नींद की गोलियां लेकर सो रहा है। अगर समय रहते ही कन्हैयालाल को सुरक्षा दे दी गयी होती तो उनकी जान बच जाती। जबकि उन्होंने जान से मारने की मिल रही धमकी को पुलिस-प्रशासन से साझा किया था। लेकिन पुलिस-प्रशासन हाथ पर हाथ धरे बैठा रहा और जेहादी कन्हैयालाल को मौत का घाट उतारने में सफल रहे। गंभीरता से विचार करें तो यह हत्याकांड समाज में खौफ और देश को डराने वाला है। इसलिए कि दोनों जेहादियों ने कन्हैयालाल साहू की हत्या गला रेतकर की और उसे सोशल मीडिया पर पोस्ट किया। उनका यह वीडियो देश भर में वायरल हो रहा है जिससे समाज स्तब्ध और सन्न है।
यह कृत्य तालिबानी और इस्लामिक स्टेट के आतंकियों जैसा है जो सर से धड़ अलग करके वीडियो जारी करते हैं। जिस तरह उनका मकसद दहशतगर्दी के जरिए गैर-इस्लामिक लोगों को डराना होता है, ठीक उसी तरह इन दोनों जेहादियों ने भी कुछ इसी तरह का संदेश दिया है। उनका दुस्साहस देखिए कि उन्होंने खुद के बनाए वीडियों में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी जान से मारने की धमकी दी है। गौर करें तो यह सामान्य नहीं बल्कि असामान्य घटना है। इससे कई तरह के सवाल उपजते हैं। मसलन क्या इस हत्याकांड के पीछे जेहादी शक्तियां हैं जो पिछले दिनों नूपुर शर्मा की टिप्पणी के मसले पर देश को जलाने की कोशिश की थी ? क्या येे शक्तियां इन दोनों हत्यारों के वीडियो के जरिए गैर-इस्लामिक समाज के लोगों को डराने की साजिश रच रहे हैं? क्या इन दोनों हत्यारों के पीछे पाकिस्तान प्रायोजित आतंकी संगठनों का हाथ हैं? इन सभी संभावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता। इसलिए कि इन हत्यारों ने पूरे इत्मीनान से इस हत्याकांड को अंजाम दिया और वीडियो को जारी किया।
उनकी इन हरकतों से साफ जान पड़ता है कि ये हत्यारें जेहादी आतंकी संगठनों से जुड़े हैं और इन्हें प्रशिक्षण भी हासिल है। गौर करें तो इस हत्याकांड के लिए के लिए सिर्फ दोनों जेहादी ही जिम्मेदार नहीं है। वे लोग भी जिम्मेदार हैं जो नुपूर शर्मा के मसले पर देश को जलाने और धमकाने और जेहादी तत्वों को उकसाने-भड़काने का खेल रचा। भारत एक लोकतांत्रिक देश है। यहां कानून का शासन है न कि शरिया का। अगर कोई व्यक्ति किसी धर्म या मजहब के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी करता है तो निःसंदेह उसे सजा मिलनी चाहिए। लेकिन उसे सजा देने का अधिकार किसी व्यक्ति या संगठन का नहीं है। यह काम न्यायालय का है। लेकिन ऐसा जान पड़ता है कि कुछ जेहादी मानसिकता वाले लोग भारत को शरिया कानून के फ्रेम में फिट करना चाहते हैं। यह राष्ट्र की एकता से खिलवाड़ करने जैसा है। उचित होगा कि इन जेहादी मानसिकता वाले हत्यारों के खिलाफ देश निर्णायक कदम उठाए। कितना अच्छा होता कि जो लोग नूपुर शर्मा के मसले पर देश को आग में झोंकने पर आमादा थे वे इन दोनों हत्यारों के खिलाफ भी अपनी आवाज बुलंद करते। अच्छा यह भी होता कि सुदूर खाड़ी के वे देश जो नूपुर शर्मा के मामले में आगबबूला थे, वे भी इन हत्यारों के खिलाफ अपना आक्रोश दिखाते।
लेकिन सभी की चुप हैं। उनकी इस चुप्पी से साफ है कि वे इन हत्यारों के साथ हैं। यह उचित है कि क्रिकेट खिलाड़ी इरफान पठान ने आगे बढ़कर इस हत्याकांड को मानवता को चोट पहुंचाने वाला करार दिया है। इसकी प्रशंसा होनी चाहिए। उचित होगा कि अब राजस्थान सरकार इस हत्याकांड से जुड़े मुकदमे को फास्ट ट्रैक कोर्ट में ले जाए और हत्यारों को उनके किए की सजा दिलाए। फिलहाल राजस्थान सरकार ने इस हत्याकांड की जांच के लिए एसआईटी का गठन कर दिया है। पर राहत की बात यह है कि केंद्र सरकार ने इस घटना को महज दो जेहादी मानसिकता वाले हत्यारों की कारस्तानी नहीं माना है, बल्कि इसकी गंभीरता को देखते हुए इसकी जांच के लिए आतंकवाद निरोधी जांच एजेंसी (एनआईए) को उदयपुर भेज दिया है। संभव है कि आतंकवाद विरोधी कानून गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम कानून के तहत मामला दर्ज होने के बाद यह मामला जांच के लिए एनआईए को सौंप दिया जाए। सुरक्षा एजेंसियों की नजर में यह हत्याकांड आतंकी संगठनों से भी जुड़ा हो सकता है। इस हत्याकांड की जांच के लिए एनआईए इसलिए सर्वाधिक उपयुक्त है कि उसे आतंकी संगठनों को बेनकाब करने में महारत हासिल है। याद होगा गत वर्ष पहले इस राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआइए) ने आतंकी संगठन आईएसआईएस से प्रेरित माॅड्यूल 'हरकत उल हर्ब ए इस्लाम' के खतरनाक मंसूबे को समय रहते ही उजागर कर दिया था। यह संभव है कि कन्हैयालाल साहू के हत्यारे भी कुछ इसी तरह के आतंकी संगठनों से जुड़े हुए हों।
ऐसा इसलिए कि गिरफ्तार किए गए एक हमलावर की पहचान रियाज अख्तरी के रुप में हुई है जिसका संबंध पाकिस्तान स्थित दावत-ए-इस्लामी से जुड़ा पाया गया है। याद होगा दावत-ए-इस्लामी के कुछ सदस्य 2011 में पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के गवर्नर सलमान तासीर की हत्या समेत कई आतंकी घटनाओं में शामिल पाए गए थे। सलमान तासीर ईशनिंदा कानून के विरोधी थे। पाकिस्तान के कट्टर समूह उन्हें तनिक भी पसंद नहीं करते थे। यह भी संभव है कि दावत-ए-इस्लामी के आतंकी भारत में मौजूद हों। अन्य इस्लामिक संगठनों की तरह दावत-ए-इस्लामी संगठन भी दुनिया भर में शरिया कानून का हिमायती है। उसके सदस्य ऐसे लोगों की हत्या से तनिक भी नहीं गुरेज नहीं करते हैं जो इस्लाम के विरोधी हैं या इस्लाम पर टिप्पणी करते हैं। कन्हैयालाल साहू की हत्या के तर्ज पर गत वर्ष पहले उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में हिंदू समाज पार्टी के अध्यक्ष कमलेश तिवारी की हत्या गला रेतकर कर दी गयी थी। इन दोनों हत्याओं की समानता से साफ है कि भारत में पसरे कुछ जेहादी लोगों की मानसिकता इस्लाम पर टिप्पणी करने वालों को हत्या के अंजाम तक पहुंचाना और भाारत का इस्लामीकरण कर शरिया कानून लागू करना है। इस मानसिकता से निपटने के लिए बेहतर होगा कि केंद्र सरकार इस हत्याकांड को आतंकी नजरिए से ही देखे। इसलिए कि यह घटना तालिबानी और इस्लामिक स्टेट के आतंकियों द्वारा किए जाने वाले मनोभावों और प्रवृत्तियों से मिलता-जुलता है।
यह सच्चाई भी है कि भारत में कई आतंकी संगठन के सदस्य मौजूद हैं। इन संगठनों के कई सदस्य पकड़े भी जा चुके हैं। ऐसे लोग आतंकी और देश विरोधी गतिविधियों में लिप्त होकर अपने लोगों के पक्ष में माहौल बनाते हैं। याद होगा गत वर्ष पहले जब अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) के स्काॅलर से हिजबुल मुजाहिदीन कमांडर बने डा0 मन्नान बशीर वानी को मार गिराया गया उसके बाद किस तरह उस परिसर में कुछ छात्रों ने आतंकी मन्नान के जनाजे की नमाज पढ़ाने की कोशिश की। कुछ इसी तरह के जेहादी मानसिकता के लोगों ने जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय में 'भारत तेरे टुकड़े होंगे' जैसे देश विरोधी नारे लगाए। इसी तरह की मानसिकता के लोग जम्मू-कश्मीर में जवानों पर पत्थर बरसाते नजर आते हैं। इसी मानसिकता के लोग इस्लामिक स्टेट का झंडा लहराते हैं। इसी तरह के लोग संसद पर हमले के गुनाहगार अफजल गुरु की फांसी पर नमाज-ए-गायबाना की रस्म अदा करते हैं।
फांसी का बदला लेने की कसमें खाते हैं। फिर क्यों न माना जाए कि इस तरह का कृत्य भारत की एकता और अखंडता के लिए खतरनाक है और ऐसे देशविरोधी लोगों के खिलाफ कड़ाई बरती जानी चाहिए। ध्यान देना होगा कि विगत कुछ वर्षों में देश में ऐसे आतंकी संगठनों के हिमायती बढ़े हैं। वे सिर्फ मौके के इंतजार में रहते हैं। जब भी देश में धार्मिक उन्माद की स्थिति पैदा होती है वे पर्दे के पीछे से देशविरोधी कृत्यों में संलिप्त हो जाते हैं। याद होगा वर्ष 2006 में जब डेनमार्क के एक अखबार ने पैगंबर मोहम्मद साहब की तस्वीरें छापी थी तब दुनिया भर में बवाल मचा था। तब भारत में भी मजहबी उन्मादियों ने हिंसक प्रदर्शन करके न केवल आम जनजीवन को अस्त-व्यस्त किया बल्कि सरकारी संपत्ति का जमकर दहन किया। ये जेहादी तत्व नूपुर शर्मा मामले में भी सक्रिय देखे गए। कन्हैयालाल साहू के हत्यारे इसी जेहादी मानसिकता की उपज हैं। अब समय आ गया है कि इनके जहरीले फन को कुचला जाए।