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- उम्मीद की नई किरण:...
उम्मीद की नई किरण: साम्प्रदायिक माहौल मे आर्थिक कारण बने साम्प्रदायिक सौहार्द के आधार!
मध्य प्रदेश के ग्वालियर इलाके में हज़ारों किसानों ने झांसी-इंदौर हाईवे के दोनों तरफ गुड़ की छोटी-छोटी दुकानें सजा रखी हैं। यह एक अद्धभुत नज़ारा है। ऐसा कम ही देखने में आता है कि किसान खुद व्यापारी बन, अपनी दुकान पर अपनी ही उपज बेचते नज़र आयें। असल में ये दृश्य इस इलाके के ग्रामीण अंचलों की आर्थिक बदहाली को बयाँ कर रहा है।
किसानों का संकट
इस इलाके में गन्ना पेराई के लिए डबरा, भीमपुरा और सखनी में तीन चीनी मिलें थीं। किसान अपनी उपज इन मिलों में लेकर जाते थे और मध्यप्रदेश सरकार द्वारा निर्धारित स्टेट एडवायज़री प्राइस (SAP) के अनुरूप भुगतान प्राप्त करते थे। राज्य सरकार केंद्र से सलाह करके यह मूल्य निर्धारित करती है। लेकिन अब ये सभी मिलें बंद हो गईं हैं।
किसानों का आरोप है की इनमे सबसे बड़ी डबरा चीनी मिल किसानों का करोड़ों का बकाया दबाए बैठी है। माना जाता है कि इन मिल मालिकों के सर पर भाजपा के विधायकों और मंत्रियों का वरदहस्त है। तीनों मिलों के बंद हो जाने से इस अतिशय उपजाऊ इलाके के किसान भीषण आर्थिक संकट का सामना कर रहे हैं। पिछले तीन सालों से वे लगातार गन्ना बो रहे हैं मगर फसल तैयार होने पर खरीददार नहीं मिलता।
मुस्लिम आर्थिक हस्तक्षेप
किस्मत से पश्चिमी उत्तरप्रदेश, खासकर मुज्जफरनगर इलाके, के मुस्लिम व्यापारी किसानो की नैया पार लगाने आ गए। उन्होंने यहाँ आकर गन्ने से गुड़ बनाने के लिए सैंकड़ों क्रशर लगा लिए। जमीन और कच्चा माल खरीदकर धंधा शुरू करना मुजफ्फरनगर के इन कुशल व्यापारियों के लिए कोई मुश्किल काम न था। इन मुस्लिम व्यापारियों और स्थानीय किसानों ल, जिनमें अधिकाँश हिन्दू हैं, के बीच एक अनोखा तालमेल दिखाई देता है। ये दोनों मिलकर यहाँ के चीनी उद्योग पर आई इस मानवनिर्मित आपदा का मिलकर सामना कर रहे हैं।
ग्वालियर का यह इलाका जो चम्बल के बीहड़ों और बुंदेलखंड से दो तरफ से घिरा हुआ है, राज्य के सर्वाधिक मुस्लिम-विरोधी, साम्प्रदायिक प्रभावित इलाकों में गिना जाता था। यद्यपि ग्वालियर का राजपरिवार (अब जिसके मुखिया ज्योतिर्रादित्य सिंधिया है) कांग्रेस पार्टी के प्रति निष्ठा रखता है और इलाके में उनका ख़ासा रूतबा है, परन्तु फिर भी अयोध्या आन्दोलन के दौरान ग्वालियर कांग्रेस और भाजपा के मध्य विचारधारा के ज़बरदस्त संघर्ष का अखाड़ा बन गया। उस दौरान चम्बल और बुंदेलखंड से हजारों कारसेवकों को उत्तरप्रदेश भेजा गया था। मगर अब यह सब इतिहास की बातें हैं। अब नए मुद्दे उसकी जगह ले चुके हैं
नौकरियाँ नहीं है।चीनी मिलें बंद होने से किसानों का रोज़गार ठप्प हो गया है। जिसके कारण चौतरफा बेचैनी का आलम है। तीन बार के मुख्यमंत्री द्वारा बिजली, पानी, सड़क की उपलब्धियों का बखान किसानों को लुभाने में नाक़ाम साबित हो रहा है।
भाजपा विरोधी लहर
भाजपा 'सुशासन' के माध्यम से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने के बड़े- बड़े दावों के बल पर सत्ता में आती रही। मगर आज राज्य का मतदाता खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहा है।
पन्द्रह साल एक लम्बा अरसा होता है। शिवराज सरकार के भाई-भतीजावाद और भ्रष्टाचार से जनता बुरी तरह त्रस्त है। जिसके कारण मुख्यमंत्री के विकास के दावे असर डालने में नाकाम हो रहे हैं। भाजपा के छुटभैये नेताओं के बदतमीज़ी और अहंकारपूर्ण रवैये से जनता इस कदर आजिज़ आ चुकी है कि वह अब इन्हें सत्ता से बाहर देखना चाहती है।
अमरेश मिश्र वरिष्ठ पत्रकार और समाजसेवी