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- कांग्रेस और ग्वालियर...
ज्ञानेंद्र रावत
देखा जाये तो ग्वालियर राजघराने का कांग्रेस के साथ बहुत पुराना रिश्ता रहा है। आजादी के बाद पंडित नेहरू के प्रयास से ही तत्कालीन महाराज जीवाणु राव सिंधिया मध्य भारत राज के राज प्रमुख और इंदौर नरेश यशवंतराव होल्कर उप राज प्रमुख बनाये गये। समयोपरांत राज प्रमुख का पद राज्यपाल के रूप में परिवर्तित हो गया। 1957 में नेहरू जी की ही पहल पर राजमाता विजया राजे सिंधिया कांग्रेस की सदस्य बनी और गुना से हिंदू महासभा के विष्णु पंत घनश्याम देशपांडे को हराकर लोकसभा सांसद बनीं।
1962 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने जनसंघ के माणिक चंद बाजपेयी को हराया। 1967 के चुनाव में उनका लोकसभा और विधान सभा चुनावों में ग्वालियर और चम्बल संभाग के टिकट अपनी मर्जी से देने की जिद पर तत्कालीन मध्य प्रदेश के चाणक्य कहे जाने वाले मुख्य मंत्री पंडित द्वारिका प्रसाद मिश्र से मतभेद हो गया और वह कांग्रेस से अलग हो गयीं। इस चुनाव में भी वह कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गौतम शर्मा को हराकर संसद पहुंचीं। यहीं से उनकी जनसंघ की यात्रा की शुरूआत हुयी जो जीवन के अंत पर ही खत्म हुयी।
1967 के विधान सभा चुनावों में राज्य में राजमाता के अधिकांश उम्मीदवार चुनाव जीते लेकिन सरकार मिश्र की ही बनी। बीच सत्र में 36 विधायकों के समर्थन से राजमाता ने गोविंद नारायण सिंह के पालाबदल कराकर मिश्र सरकार गिरा दी और राज्य में गोविंद नारायण सिंह के नेतृत्व मे संविद सरकार बनवायी। लेकिन यह सरकार केवल 18 महीने ही चली और पुनः गोविंद नारायण सिंह कांग्रेस में वापस लौट गये।
अगर पिछले परिदृश्य पर दृष्टिपात करें तो ज्योतिरादित्य सिंधिया के पिता कद्दावर कांग्रेस नेता माधवराव सिंधिया ने भी 1993 में कांग्रेस छोड़कर मध्य प्रदेश विकास कांग्रेस बनायी थी और फिर कांग्रेस का दामन थामा था। इसलिए ज्योतिरादित्य ने भी कुछ नया नहीं किया है। वैसे इतना तय है कि देर सवेर वह राज्य के मुख्यमंत्री तो बनते ही। कांग्रेस ने तो उन्हें अपने काल में वह चाहे सूचना प्रौद्योगिकी, वाणिज्य, उद्योग और बिजली जैसे अहम मंत्रालयों का दायित्व सौंपा। वह सोनिया गांधी और राहुल गांधी तक के अति विश्वास पात्र थे। वह पार्टी के शीर्षस्थ नेता थे। केवल राज्य सभा और कैबिनेट मंत्री के लोभ में कांग्रेस छोड़ना समझ से परे है। उन्होंने भाजपा में शामिल होने पर प्रेस कान्फ्रेंस में कमलनाथ सरकार पर जो आरोप लगाये हैं। वह विश्वसनीय तो नहीं हैं। मंदसौर गोलीकाण्ड शिवराज सरकार के काल का है और वह उसी शिविराज की पार्टी भाजपा में चले गये जो गोलीकाण्ड की जिम्मेदार थी।
जनसेवा तो वह कांग्रेस में रह कर भी कर रहे थे। अब जनसेवा का स्तर बढ़ेगा या मंत्री पद की लालसा ने भाजपा में जाने को मजबूर किया। यदि सौदेबाज़ी नहीं थी तो भाजपा में शामिल होते ही राज्यसभा उम्मीदवारी की घोषणा क्या साबित करती है। विसंगति तो यह देखने को मिलती है कि जिन नरेंद्र मोदी और अमित शाह को सिंधिया जी कोसते नहीं थकते थे, आज उनकी तारीफ के पुल बांधने थक नहीं रहे थे। आज उनके ही हाथों में देश सुरक्षित दिखाई दे रहा था।
आज नड्ढा के नेतृत्व में काम करना सौभाग्य का प्रतीक था। वैसे उनकी भारतीय जनता पार्टी में घर वापसी को लेकर सिंधिया परिवार बेहद उत्साहित प्रफुल्लित है। उनकी बुआ यशोधरा राजे ने उनके कदम का स्वागत करते हुए कहा है कि यह बहुत पहले हो जाना चाहिए था। अब भाजपा नेता उन्हें महाराज कहते नहीं थक रहे। बहरहाल अब मध्य प्रदेश से बेरोजगारी, बेकारी, भ्रष्टाचार खत्म हो जायेगा, किसानों की समस्याओं का समूल नाश हो जाएगा, उन्हें मुआवजा तुरंत मिल जायेगा और श्रीमंत ज्योतिरादित्य सिंधिया अपनी जनसेवा की ट्रेन भारतीय जनता पार्टी के झंडे तले बुलेट ट्रेन की गति से चलाने में समर्थ होंगे। हमारी शुभकामनाएं उनके साथ हैं।