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गिरीश मालवीय
आपने गिनी पिग्स का नाम तो सुना होगा। यह चूहों की परिवार की प्रजाति होती है इन्हें प्रयोगशालाओं में दवाओं, घातक रसायनों के प्रयोग के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इस समय कोरोना से संक्रमित मरीजों की हालत गिनी पिग्स जैसी हो चुकी है। हर कंपनी चाहती है कि इस अवसर का फायदा उठाकर अपनी दवाओं का परीक्षण कर सके। प्रधानमंत्री मोदी का करीबी समझा जाने वाला एक धूर्त व्यापारी और पतंजलि कंपनी का मालिक रामदेव भी अवसर का लाभ उठा रहा है।
इंदौर के कलेक्टर मनीष सिंह ने कल रामदेव की एक आयुर्वेदिक दवा को कोरोना मरीजों पर परीक्षण करने की अनुमति दी है। कलेक्टर बड़ी बेशर्मी से कह रहा है कि पतंजलि रिसर्च फाऊंडेशन के प्रस्ताव को अनुमति देते हुए एक एमबीबीएस डॉक्टर और एक आयुर्वेदिक डॉक्टर की निगरानी में परीक्षण की अनुमति दी गई है। दिलचस्प बात यह है कि बुधवार को बाबा रामदेव अनुमति के लिए कलेक्टर को चिट्ठी लिखते हैं और 48 घंटे के भीतर अनुमति मिल जाती है।
कलेक्टर कौन होता है अनुमति देने वाला?
भारत का क्लीनिकल ट्रायल नियम कहता है कि इसकी अनुमति स्वास्थ्य मंत्रालय के अधीन ड्रग कंट्रोलर ऑफ इंडिया देगा। ड्रग कंट्रोलर ऑफ इंडिया की एथिक्स कमेटी पूरे परीक्षण की निगरानी रखेगी और गिनी पिग बने मरीज की मौत या शारीरिक नुकसान होने पर उसे मुआवजा दिया जाएगा। लेकिन इंदौर में अगर रामदेव की दवा खाकर मरीज की मौत हो जाती है तो प्रशासन उसे कोरोना से मौत मानकर मुर्दे को सीधे जला देगा।
रामदेव का यह काम हत्या के बराबर है। इंदौर कलेक्टर मनीष सिंह इसमें सहभागी है। दोनों के खिलाफ केस दर्ज होना चाहिए। मेरे राजस्थान के मित्रों के लिए सूचना- रामदेव का ऐसा ही परीक्षण जयपुर में भी हो रहा है। कोई यह पता लगाए कि वहां कितने मरीजों की रामदेव की दवा खाकर मौत हो चुकी है। मीडियाकर्मियों से निवेदन है कि इस भंडाफोड़ पर तुरंत संज्ञान लेकर इस तरह का हर क्लीनिकल ट्रायल रोकें।
कोरोना किसी को भी हो सकता है। कृपया गिनी पिग मत बनिए।