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- सत्ता के बोझ से...
नवनीत शुक्ला
प्रदेश में चल रही भाजपा की राजनीति और सत्ता हासिल करे को लेकर विचारधाराओं को भोंगली बनाकर सुरक्षित रखने से यह तय हो गया है कि सत्ता के बोझ से भाजपा अब चरमराने लगी है। जो भाजपा मौलिक विचारधारा और पंचनिष्ठा के सिद्धांत के लिए अपनी पहचान रखती थी अब कांग्रेसयुक्त भाजपा जो कांग्रेस मुक्त का आव्हान कर रही थी सत्ता संतुलन में अपने चरित्र को खो चुकी है। सबसे ज्यादा आसन्नसंकट उन तमाम भाजपा के स्थापित नेताओं के सामने खड़ा हो गया है जिन्होंने पार्टी की विचारधारा में अपना जीवन समर्पित कर दिया था।
अब सवाल यह उठ रहा है कि सत्ता के सहारे बनकर आए वे तमाम नेता और कार्यकर्ता क्या भाजपा के सिद्धांतों को आत्मसात कर पाएंगे। क्योंकि वे सत्ता के ही लालच में साथ खड़े हुए है, विचारधारा के लिए नहीं। जिस भाजपा ने अपने इतिहास में स्वर्ण अक्षरों से यह लिख रखा है कि उसके शिखर नेताओं ने सत्ता के लालच को ठोकर मारते हुए अपनी 13 दिन पुरानी सरकार को अपने सिद्धांतों के लिए छोड़ दिया। परंतु अब नई भाजपा में सत्ता को लेकर सिद्धांतों को दरकिनार कर समझौतों के माध्यम से अन्य दलों की ऐसी भीड़ तेजी से आ रही है जिसका भाजपा की मौलिक विचारधारा से कोई लेना-देना नहीं है।
सोशल मीडिया पर जमकर भाजपा का उपहास उड़ा रहे लोग लिख रहे है जो माइक लगाकर पूरे देश में आवाज लगवा रहे थे चौकीदार चोर है वे मंत्री हो गए और जो लिख रहे थे हां मैं चौकीदार हूं वे दरबान की जगह बैठकर जागते रहो की सीटी बजा रहे है। यह भी दिखाई दे रहा है कि भाजपा कांग्रेस की संस्कृति वाली व्यक्तिवादी राजनीति की ओर खुद ही बढ़ रही है। आज की भाजपा और कांग्रेस के चरित्र में कोई विशेष फर्क नहीं है। सत्ता संघर्ष के लिए दोनों की विचारधारा एक जैसी हो गई है। वहीं दूसरे दलों में भ्रष्टाचार के आकंठ में डूबे वे तमाम नेता जिनका चेहरा दिखाकर भाजपा चुनावी मैदान में उतरी थी उनके भाजपा में आते ही सारे तीरथ बार-बार भाजपा सागर एक बार यानि भाजपा में प्रवेश करते ही गंगा की तरह पवित्र हो गए। अब भ्रष्टाचार के आरोप से वे मुक्त है। भाजपा का पिछला नारा था माफ करो महाराज, अब नया नारा है सब छोड़ो साथ चलो महाराज। भाजपा की नई नीतियों में सत्ता सर्वोपरि हो गई है और संघ भी अब सत्ता के साथ भोगी हो गया है।
बूढ़ी विधवा कर रही है श्रृंगार...
किसी जमाने में संघ से भाजपा में आए संगठन मंत्रियों की स्थिति परिवार में बूढ़ी विधवा जैसी रहती थी। यानि हर काम की सलाह उसी से ली जाती थी, पर चेहरा कही सामने नहीं होता था। शुभ काम होते थे करने वालों को जानकारी नहीं रहती थी। नए कलेवर में अब संघ से भाजपा में आए संगठन मंत्री बूढ़ी विधवा की जगह तीन मोबाइल रखने वाली सुविधाओं से युक्त लिपिस्टिक, लाली के साथ मंचों पर नेताओं के साथ विराजित होने के साथ ही राजनीति भी कर रही है। साथ ही सत्ता का सुख भोगने के लिए भी अब उधार होती जा रही है।
टाइगर अभी जिंदा है...
कल कांग्रेस से भाजपा में आए ज्योतिरादित्य सिंधिया ने दावा किया कि टाइगर अभी जिंदा है। इस मामले में भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि पार्टी में जो टाइगर होने का दावा कर रहे थे वे भी 100 दिन में अपनी इच्छा के अनुसार मंत्रिमंडल नहीं बना पाए। यह भाजपा है। पता नहीं लगता कब टाइगर के नाखून कोई चुरा ले गया और दांत तो आते ही निकाल लिए जाते है। जो दिख रहे है वे केवल खींस निपोरने के लिए ही काम आते है। भाजपा में कई टाइगर भरे पड़े है।
एक बारिश और लगेगी...
पार्टी के कई बुजुर्ग नेता जो इन दिनों उम्रदराज होने के बाद खुद को राजनीति में जिंदा रखने के लिए मैदान में दिखाई दे रहे है वे भी केवल समय का इंतजार कर रहे है। मान लिया जाए कि यदि उन्हें राज्यपाल पद पर जगह नहीं मिली तो 6 महीने के अंदर जो लोग अभी घर में बैठकर नाराजगी व्यक्त कर रहे है वे मैदान में भाजपा के दिग्गजों को ठोकते हुए दिखेंगे। क्योंकि अब भाजपा की दिशा और दशा दोनों ही भ्रमित हो चुकी है।
और अंत में...
दादा दयालु के मंत्री नहीं बनाए जाने के पीछे आईबी द्वारा भेजी गई एक रिपोर्ट भी है जिसमें उनके कुछ रिश्तों पर ऐतराज दर्ज कराया गया था। इसका एक हिस्सा विस्तार के पूर्व भोपाल में भी छप चुका था। हालांकि उन्हें मंत्री नहीं बनाए जाने के पीछे पार्टी के अंदर कैलाश विजयवर्गीय को लेकर चल रही खींचतान भी मुख्य कारण है।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार है और उनके निजी विचार है. यह लेख उनका गुस्ताखी माफ़ हो के नाम से पब्लिस होता है