इंदौर

मुख्यमंत्रीजी तय कर दें भूखे मरना है या कोरोना से...

Shiv Kumar Mishra
24 July 2020 8:28 AM GMT
मुख्यमंत्रीजी तय कर दें भूखे मरना है या कोरोना से...
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नवनीत शुक्ला

देश में कोरोना महामारी से लड़ने में चार माह से अधिक समय चला गया, पर हांसिल कुछ नहीं हो रहा है। 18 दिन की महाभारत के बाद 21 दिन में इस युद्ध को जीतने का दावा करने के बाद ताली और थाली तक बज गई, परन्तु अब पूरा देश महामारी की दौड़ में दूसरी पायदान पर पहुंचने के लिए तैयार हो गया है। इधर मध्यप्रदेश में आम नागरिक ने कोरोना की प्रभू सत्ता को स्वीकार करते हुए अपने अस्तित्व को बचाने का संघर्ष शुरू कर दिया है। आम आदमी हो या ठेले वाला, सब्जी वाला, गरीब सभी केवल खुद को और परिवार को जिंदा रखने के लिए अपनी जान जोखिम में डाल रहे हैं। देश में हो या प्रदेश में कोरोना का वास्तविक द्वंद राजनेताओं से चल रहा है। राजनेता ही उसे चुनौती दे रहे हैं। अब प्रदेश में जिस तरीके से सड़क पर काम करने वाले गरीबों चाहे वे सब्जी वाले हो या ठेले वाले जो कोरोना महामारी फैलाने के लिए दोषी बताए जा रहे हैं।

आश्चर्य की बात यह है कि यह संख्या दहाई में भी नहीं निकल रही है। 120 दिन बाद भी सरकार के पास कोई समग्र योजना नहीं है। देश के तमाम राजनेता हो या राजनीति के नाम पर दुकानें चलाने वाले नेता हो। चीन को कोसने में कोई कमी नहीं रखते हैं, परन्तु उन्हें यह समझ में नहीं आ रहा कि 50 लाख से अधिक की आबादी का चीन का वुहान शहर 77 दिन में कोरोना से बाहर आ गया। इस पर ज्ञान लेने की कोशिश ना अधिकारियों ने की और ना राजनेताओं ने। आश्चर्य की बात यह भी है कि प्रधानमंत्री के आपदा को अवसर बनाने के आव्हान का सबसे ज्यादा लाभ अस्पतालों ने और अधिकारियों ने जमकर उठाया। लाखों के बिल कोरोना का भय दिखाकर भी वसूले गए। अभी तक इन्दौर में आंकड़ों में जो जानकारी सामने आई है उसके अनुसार 6565 कोरोना मरीजों में सब्जी बेचकर या ठेले लगाकर कोरोना महामारी फैलाने वाले लोगों की संख्या 30 भी नहीं निकली है। इससे ज्यादा तो उपचुनाव के लिए जनता को लुभाने में लगे राजनेताओं को कोरोना फैला है। समझ नहीं आ रहा कि ये लोग कहां पर ठेले लगा रहे थे।

दुर्भाग्य यह भी है कि इस शहर में राजनीतिक इच्छा शक्ति इस कदर नपुंसक हो गई है कि मुट्ठीभर राजनेता प्रशासन की गोद में बैठ गए हैं। अभी तक केवल लॉकडाउन और दुकानें खुलवाने की राजनीति ही कर रहे हैं। एक भी नेता के पास कोई ऐसा विजन नहीं है जो यह बता सके कि शहर को अगले 50 दिनों में भी इस महामारी से मुक्त करवा लिया जाएगा। सत्ता की आदि हो चुकी कांग्रेस की हालत तो और भी बदत्तर हो गई है। कुछ लोग थाली बजाकर राजनीति कर रहे हैं तो कांग्रेसी ताली बजाने वालों से भी गईगुजरी हालत में पहुंच गए हैं। सभी को एक ही इंतजार है, वैक्सीन आएगी तभी निजात मिलेगी। यानि प्रदेश हो या शहर पूरी तरह रामभरोसे हो गया है, पर राम के द्वार भी नहीं जा सकते हैं, क्योंकि उनके द्वार पर भी कोरोना महामारी भक्तों का इंतजार कर रही है।

पूरे शहर में सड़कों पर प्रशासनिक अत्याचार दिख रहा है, परन्तु राजनीति भी ढोल-ढमाके और धूमधाम से हो रही है। सरकार और विपक्ष अब उप चुनाव में पूरी तरह व्यस्त हो गए हैं। ऐसे में कार्यक्रम के आयोजन पर होटल सील हो रही है, परन्तु आयोजकों पर कोई कार्रवाई नहीं दिखाई दे रही है। इससे बड़ी दुर्भाग्य की बात और क्या हो सकती है कि भूख से मर रहे एक परिवार को चलाने वाली एक महिला ने प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखकर आग्रह किया है कि उसे किडनी बेचने की इजाजत दे दी जाए, ताकि वह परिवार को पाल सके। मुख्यमंत्रीजी आपके सपनों के शहर में कोरोना से तो लड़ाई जीत ही लेंगे, परन्तु भूख से बिना कारोबार कई लोगों के शव रास्तों पर निश्चित रूप से दिखाई देंगे...तो तय कर दीजिए कि गरीब आदमी को भूख से मरना है या कोरोना से, ताकि वह जितने दिन जीवित रहे कम से कम अपने परिवार को भूखा मरता हुआ तो नहीं देंखे।

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