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- क्या भाजपा में बचा...
क्या भाजपा में बचा उनका सम्मान, जो कहते थे हम दोगले नहीं...
नवनीत शुक्ला
यह किस्सा उन दिनों का है, जब कांग्रेस के विधानसभा अध्यक्ष रहे और कद्दावर नेता यज्ञदत्त शर्मा ने अपनी पार्टी कांग्रेस छोड़कर भाजपा में प्रवेश कर लिया था। वे भाजपा की बैठकों में भी आया-जाया करते थे, तब भाजपा का कार्यालय बक्षी गली राजवाड़ा पर दूसरी मंजिल पर हुआ करता था। एक बैठक में भाजपा के कद्दावर नेता और उन दिनों में सुंदरलाल पटवा गुट से अपने विरोध के चलते पार्टी में ही संघर्ष कर रहे प्रकाश सोनकर से उनका सामना हुआ। वे प्यारेलाल खंडेलवाल के साथ पूरी ताकत से बने हुए थे। दोनों नेताओं का आमना-सामना यहां संगठन को लेकर हो रही बैठक में हुआ। इस बैठक में अपनी शैली में प्रकाश पेलवान ने जब यज्ञदत्त शर्मा को प्रवचन सुनाए और कहा कि मुझसे दूर बैठो, तुम मेरे से बड़े हरिजन हो, अभी तक मैं हरिजन था, तुम सुविधाभोगी कांग्रेसी हमारे पास इसलिए नहीं आए हो कि तुम्हारी निष्ठा भाजपा के सिद्धांतों में है। तुम इसलिए आए हो कि अब तुम्हारी कांग्रेस में हैसियत खत्म हो चुकी है। बीस साल की राजनीति के बाद तुम कांग्रेस के नहीं हुए तो हमारे क्या होगे। उन्होंने कहा मेरी पार्टी मेरे लिए माँ है। आज जहां पर भी हूँ मेरी पार्टी के कारण ही हूँ। इसके बाद यज्ञदत्त शर्मा भाजपा कार्यालय से उठकर चले गए। यह कथा आज भी उस बैठक में मौजूद पंद्रह लोगों के सामने की है, जो केवल इस मामले में सांस रोक कर बैठे थे।
एक और किस्सा भी प्रकाश सोनकर का ही है, जब वे तात्कालीन कलेक्टर अजीत जोगी से मिलने उनके कार्यालय गए तो उनके कमरे में प्रवेश के बाद भी जोगी ने ध्यान नहीं दिया और फोन पर बात करते रहे। इसके बाद प्रकाश सोनकर ने सामने रखी टेबल पर एक लात मारी तो टेलीफोन और कुर्सी दूर गिरे। इसके बाद प्रकाश सोनकर ने कहा एक नौकर को यह तो अच्छी तरह समझना चाहिए कि वह मालिक से कैसे बात करे। इसके बाद घबराए अजीत जोगी उनके पीछे कार्यालय से उतरकर नीचे तक समझाते रहे, तब सोनकर ने कहा मैं जानता हूं तुम चुनाव में मुझे हरवा भी दोगे। इसके बाद अजीत जोगी ने तुलसी सिलावट की जीत के लिए सांवेर में पंच-सरपंच सम्मेलन का आयोजन किया और पचास सरपंचों को सौ-सौ फर्जी वोट डालने को तैयार किया। यह चुनाव प्रकाश सोनकर हार गए।
परिवार पूछ रहे हंै क्या दिया पार्टी ने हमें जरूरत थी तब कहां थे....
इसके बाद जोगी भी कांग्रेस से राज्यसभा सदस्य बन गए। राजनीति में कब, किसने पीठ पर छुरा मारा, यह ज्यादा दिन छिपता नहीं है। जो कल विरोधी थे, वह आज दोस्त हो जाते हैं। तब वे प्रकाश सोनकर परिवार में भाई की शादी में शामिल होने के लिए निमंत्रण पर इलाहाबाद आए। यहां पर जोगी ने प्रकाश सोनकर को सार्वजनिक रूप से कहा कि प्रकाश भाई, जो तुलसी अपने परिवार का नहीं हुआ, वह मेरा भी नहीं हुआ, जबकि मैं बताता हूं वह कैसे चुनाव जीता तो प्रकाश सोनकर ने कहा- मुझे मालूम है, आपने सरपंचों से फर्जी वोट डलवाए थे।
परन्तु आज भी क्या यही स्थिति भाजपा में नहीं हो रही है कि भाजपा के कद्दावर नेता ऐसे नेताओं के लिए पीछे धकेले जा रहे हैं, जिन्होंने बीस से पच्चीस साल कांग्रेस में राजनीति की और सारी सुविधाएं भोगीं। विचारधारा को लेकर वे अभी भी अपनी दूरी पूरी तरह बनाए हुए हैं। अब व्यक्तिवादी राजनीति का सहारा लेकर भाजपा में आगे का भविष्य तय कर रहे हैं। रमेश मेंदोला हों या महेंद्र हार्डिया, ये वो नेता हैं, जो भाजपा के प्रति अपनी निष्ठा इस कदर झेल रहे हैं कि उनके स्वभाव के विपरीत बेइज्जती होने के बाद भी पार्टी की विचारधारा और सिंहासन से बंधे होने के कारण चुप हैं। एक बात और राजस्थान के कांग्रेसी नाटक से साफ हो गई कि फोन टेपिंग में भाजपा के साथ सचिन पायलट के बीच हो रहे प्रति विधायक बीस करोड़ के लेन-देन ने यह बात तो सिद्ध कर दी है कि मध्यप्रदेश के विधायकों को भी अच्छी-खासी रकम पार्टी छोड़ने के लिए मिल चुकी है। आज जितने भी भाजपा के नेता तुलसी पेलवान को जिताने के लिए खड़ाऊ लेकर यहां घूम रहे हैं, 1980 के बाद हुए एक भी चुनाव में इनमें से एक भी नेता प्रकाश सोनकर को जिताने के लिए कभी नहीं गया, चाहे कैलाश विजयवर्गीय हों, मधु वर्मा हों, गोपी नेमा हों... और भी कई नेता जो इन दिनों पेलवान को जिताने में मरे-मरे जा रहे हैं, इन्होंने कभी बीस सालों में सांवेर का रुख नहीं किया था। इंदौर में ही भाजपा के सौ ऐसे कार्यकर्ताओं के नाम हम बता रहे हैं, जो बीस से अधिक बार भाजपा आंदोलनों के कारण जेल में कई महीने बिताकर आए। आज भी अपने टूटे स्कूटरों पर पार्टी के निर्देश पर गिरफ्तारी देने पहुंच जाते हैं। दुर्भाग्य यह है कि ये वे लोग हैं, जिनकी पूरी उम्र भाजपा की राजनीति करने में और कुछ अच्छे दिन आने की संभावना में गुजर गई। अब उम्रदराज होने पर वे न तो परिवार के हो पा रहे हैं, क्योंकि परिवार के लोग पूछते हैं कि जब हमें जरूरत थी, तब कहां थे। तब पार्टी के लिए जी-जान से जुटे हुए थे। हमारी ओर बीमारी में भी कभी ध्यान नहीं दिया। अब ऐसे लोग ना परिवार के हो पाए और ना अब पार्टी के हो पा रहे हैं।
इसकी बानगी कुछ ऐसी है कि जगमोहन वर्मा (बत्तीस केस) आज भी पार्टी में सक्रिय हैं। शंकरसिंह चौहान, उमेश शर्मा सहित डॉ. लक्ष्मण वर्मा, अशोक भंडारी, मनोहरसिंह मेहता, बंशीधर चोरसिया, घनश्याम जोशी, घनश्याम व्यास, जगदीश थनवार, महू के डॉ. प्रकाश आर्य, रमण वैष्णव, देवराजसिंह परिहार, अनिल पंवार सहित सैकड़ों यह वे नाम हैं, जो घर और पार्टी में आज अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे हैं। इससे यह भी समझ लेना चाहिए कि पार्टी में अब जिस प्रकार की राजनीति शुरू हो गई है उसमें नए कार्यकर्ताओं को भी जो अपना पूरा समय पार्टी के लिए समर्पित कर रहे हैं उनका भविष्य क्या यही होने वाला है।