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- पुरुषार्थ की 'सरकार'...
पुरुषार्थ की 'सरकार' या सत्ता के लिए झूठी 'लार', इन्दौर से चला ऑपरेशन लोटस राजस्थान में हुआ पंचर!
नवनीत शुक्ला
राजस्थान में सरकार बनाने और गिराने को लेकर पिछले एक माह से चल रहे नाटक के नाटकीय अंत ने दोनों ही दलों को कई सबक सिखा दिए हैं। राजस्थान के भाजपा नेताओं ने उसमें वसुंधरा राजे भी शामिल है, जिन्होंने दिल्ली बैठे आकाओं को यह समझा दिया कि बेसाखी और घुटनों के बल बनी सरकारें ना तो कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाती है और ना ही पार्टी का सम्मान, ऐसे कार्यों से बढ़ता है। राजस्थान में पुरुषार्थ की सरकार ही आम लोगों का भला कर सकती है। सत्ता की लालच में लार टपकाकर या झूठी लार लेकर बनाई गई सरकारें सत्ता में बैठे लोगों का ही भला कर सकती है। वहीं कांग्रेस के लिए भी यह सबक है कि सत्ता में बैठे नेताओं के रिश्ते विपक्ष से भी पूरी तरह सम्मान के होने चाहिए और हर विधायक तक पुराने नेताओं की सीधी पकड़ बनी रहना चाहिए। मध्यप्रदेश में कमलनाथ सरकार के डूबने के पीछे बड़ा कारण यह भी रहा है।
राजस्थान में जब सरकार गिराने को लेकर भाजपा द्वारा बीज बोए जा रहे थे उस दौरान मध्यप्रदेश की सियासत में लम्बे समय तक संगठन की राजनीति करने वाले महेश जोशी इसके तारन हार बने। इन दिनों वे राजस्थान के कुशलगढ़ में खेतीबाड़ी और सियासत में दिलचस्पी ले रहे हैं। कुशलगढ़ की सीट जेडीयू को समझौते के तहत दी गई थी। यह सीट यहां से प्रमिला ने जीती थी जो महेश जोशी को अपने पिता की तरह मानती थी। सचिन पायलट के करीबी लोगों ने सबसे पहले जब विद्रोह के लिए उनसे सम्पर्क किया तो उन्होंने सारा मामला महेश जोशी के सामने रखा। महेश जोशी ने ही सबसे पहले अशोक गहलोत को अपने विधायकों की बाढ़े बंदी करने को कहा और एक माह पहले ही यह तैयारी की जा चुकी थी। इसीलिए सचिन पायलट को विधायक पूरी तरह नहीं मिल पाए। (शेष पृष्ठ 2 पर)
कमलनाथ संगठन क्षमता रखने वाले महेश जोशी का उपयोग करते तो शायद.....
महेश जोशी के ही इशारे पर सचिन पायलट खेमे में तीन मंत्रियों का ऑफर भी दिया गया था, जिसे लेकर सचिन पायलट खेमे के विधायक विचलित हो रहे थे। समय रहते सचिन पायलट को वापस लौटना पड़ा। वहीं दूसरी ओर भाजपा के राजस्थान के नेता ने दो टूक दिल्ली बैठे आकाओ को संदेश दे दिया था कि भाजपा में लंगड़ी सरकारें बनाने से कार्यकर्ताओं का भला नहीं होगा। जो लोग भाजपा में आ रहे हैं वे भाजपा के कार्यकर्ताओं का ही नुकसान करेंगे। साथ ही घुटनों के बल या बैसाखी के बल बनी सरकारें भला नहीं कर पाती है। मध्यप्रदेश इसका उदाहरण है। यह भी संदेश वसुंधरा राजे ने दिल्ली को दे दिया कि फैसले स्थानीय इकाई के सम्मान को लेकर किए जाएं। मध्यप्रदेश में जिस तरीके से सरकार बनाई गई और समझौते किए गए उससे भाजपा को कोई लाभ नहीं हुआ, बल्कि भाजपा के ही कार्यकर्ताओं का बड़ा नुकसान पहली नजर में ही 30 विधानसभाओं में देखने को मिलेगा। इस पूरे नाटक में भाजपा में चल रही अर्न्तकलह को भी सामने लाकर रख दिया। कांग्रेस की राजस्थान में विधायकों तक बनी पकड़ ने सरकार को गिरने से बचा लिया।
मध्यप्रदेश में भी कमलनाथ को इस पूरे नाटक से सबक सिखना चाहिए। संगठन के नेताओं के अलावा पार्टी के विधायकों, कार्यकर्ताओं से निरंतर सम्पर्क रखना चाहिए। कुछ पुराने उदाहरण इसके सबक हैं कि अर्जुन सिंह के कार्यकाल में सुन्दरलाल पटवा के सम्मान में कोई कमी नहीं रही है। पटवा ने भी अर्जुनसिंह से रिश्ते निभाने में कमी नहीं रखी तो दूसरी ओर दिग्विजयसिंह ने विपक्ष में विक्रम वर्मा से लेकर कई विधायकों तक सीधे संबंध रखे थे। यही अशोक गहलोत ने भी राजस्थान में किया कि सरकार बदलने के बाद भी उन्होंने वसुंधरा राजे को दी जा रही सुविधाओं में कोई कमी नहीं रखी। कभी-कभी सरकारें ताकत की वजह रिश्तों से भी बचती है। इसके कई उदाहरण देखे जा सकते हैं। अभी तो राजस्थान में देख ही लिया है। संभवत: भाजपा भी इसके बाद यह सबक ले ले कि भविष्य में वह अपने कार्यकर्ताओं के साथ ही मैदान में उतरेगी, ना कि झूठी लार के भरोसे अपने कार्यकर्ता के सम्मान को पैरों के नीचे रौंदेगी। उदाहरण है हर तालाब को सूखे का सामना जरूर करना चाहिए, इससे तालाब की गंदगी समय के साथ निकल जाती है और स्वच्छ पानी फिर तालाब में जब आता है तो वह नया संदेश भी देता है।
लालवानी ने भिया को बता दिया कि शहर के हम नए सिकंदर....
इन दिनों भाजपा के गलियारे में यह बात सांसद के समर्थकों द्वारा जोर-शोर से बताई जा रही है कि भोपाल हो या दिल्ली, चंद महीनों में ही उन्होंने अपनी ताकत अच्छी-खासी बढ़ा ली है। इसका प्रमाण भी वे यह बता रहे हैं कि कोरोना महामारी के दौरान शहर को खुलवाने को लेकर अंत में वे ही फैसले हुए, जो सांसदजी ने रखे थे। इसका मतलब भोपाल से भी प्रशासन को संकेत है कि सांसद महोदय का पूरा ध्यान रखा जाए। इसका एक और प्रमाण राखी के एक दिन पहले आए इतवार को लेकर दिया जा रहा है कि इंदौर के कद्दावर नेता की शहर खुलवाने की अपील को मुख्यमंत्री और मंत्री घोलकर पी गए, परंतु सांसद महोदय ने पांच मिनट बात कर मिठाई की, राखी, पूजन-पाठ की दुकानों को खुलवाने की अनुमति दिलवा दी। आपको याद होगा भिया ने यह भी कहा था कि जब बंगाल में दीदी बाजार खुलवा सकती है तो शिवराज क्यों नहीं। परंतु जूं तक नहीं रेंगी। कुल मिलाकर सार यह बताया जा रहा है कि अब शहर के नए सिकंदर हम होने जा रहे हैं।