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कहीं आदिवासियों से छलावा तो नहीं है जनजातीय महासम्मेलन?
जनजातीय जननायक बिरसा मुंडा की जयंती पर लंबे समय बाद मध्यप्रदेश की धरती पर 15 नवंबर को वृहद स्तर पर जनजातीय महासम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है। मध्यप्रदेश सरकार इस दिन को जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मना रही है। राजधानी के जंबूरी मैदान पर होने वाले इस महासम्मेलन की तैयारियां जोरों पर है। यह महासम्मेलन इसलिए भी बहुत महत्वपूर्ण माना जा रहा है कि इस सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद जनजातीय लोगों से अपने मन की बात कहने भोपाल पहुंच रहे हैं। सम्मेलन के लिए भीड़ जुटाने की जिम्मेदारी सरकार से लेकर भाजपा पार्टी के नेताओं को सौंप दी गई है और लगभग 01 लाख जनजातीय लोगों के इस महासम्मेलन में शामिल होने की संभावना है।
राजनीतिक विशेषज्ञों की मानें तो मध्यप्रदेश सरकार के लिए यह महासम्मेलन एक तरह से आगामी विधानसभा चुनावों की तैयारियों का बिगुल है। भाजपा नेतृत्व ने साफ कर दिया है कि इस बार उसका पूरा फोकस जनजातीय क्षेत्रों में निवासरत लोगों पर है। यानि सरकार की नियत सिर्फ वोट बैंक की राजनीति पर है क्योंकि इतने साल तक इसी भाजपा सरकार ने इन्हीं जनजातीय लोगों को उपेक्षित किया है और अब वोट के लिए इन्हें मनाने की कोशिश इस महासम्मेलन के माध्यम से की जा रही है।
इतने सालों बाद आदिवासियों की क्यों याद आई
एक जागरूक नागरिक होने के नाते मेरे मन में एक प्रश्न उठता है कि आखिरकार केंद्र की मोदी सरकार हो या फिर राज्य की शिवराज सरकार। इतने सालों तक इन सत्ताधारी नेताओं को जनजातीय लोगों की याद क्यों नहीं आई? पिछले छह-आठ महीने से दोनों ही सरकारें जरूरत से ज्यादा खुद को जनजातीय लोगों का हितैषी सबित करने में जुटी हुई हैं।
महासम्मेलन की जनजातीय क्षेत्रों से दूरी क्यों
यदि जनजातीय लोगों के विकास और उनकी सुरक्षा की इतनी ही चिंता है तो फिर सरकार ने जनजातीय महासम्मेलन जनजातीय क्षेत्रों में जाकर करने के बजाय राजधानी को क्यों चुना। यह सम्मेलन तब और सफल माना जाता जब इस सम्मेलन का आयोजन किसी जनजातीय क्षेत्र में जाकर किया जाता। मंच से खड़े होकर जनजातीय लोगों के हित में योजनाओं की घोषणा करना सिर्फ एक मात्र उद्देश्य शिवराज सरकार का नहीं होना चाहिए। बल्कि उनके क्षेत्रों में जाकर उनसे बात करके करीब से उनकी आवश्यकताओं और जरूरतों को सुनते-समझते और उन्हीं के बीच में इस महासम्मेलन का आयोजन करते तो निश्चित तौर पर यह महासम्मेलन सार्थक साबित होता।
क्या कोरोना का संकट खत्म हो गया
मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार ने जनजातीय महासम्मलेन के लिए प्रदेश के आदिवासी समुदाय वाले इलाकों से लगभग 01 लाख लोगों को आमंत्रित किया है। इसके लिए आदिवासी नेताओं को भी जिम्मेदारी दी गई है। साथ ही लोगों के आने-जाने के लिए 01 हजार से अधिक बसों को अधिग्रहण करने की बात सामने आई है। यह सम्मेलन ऐसे समय में हो रहा है जब राज्य में कोरोना का संकट अब तक समाप्त नहीं हुआ है। ऐसे में इतनी बड़ी संख्या में अलग-अलग इलाकों से लोगों को राजधानी में बुलाना निश्चित ही कोरोना संक्रमण को आमंत्रण देने जैसा है।
कौन हैं जननायक बिरसा मुंडा
क्रांतिकारी चिंतन से जनजातीय समाज को नई दिशा देने वाले क्रांतिकारी बिरसा मुण्डा का जन्म 15 नवम्बर 1875 को रांची जिले के उलिहातु गांव में हुआ था। उन्हें मालूम चला कि गरीब वनवासियों को स्कूल शिक्षा के नाम पर ईसाई धर्म के प्रभाव में लाया जा रहा है। उन्होंने अपने धर्म के संकट को महसूस किया। बिरसा ने वनवासी अस्मिता और संस्कृति बचाने के लिए उनगुलान क्रांति शुरू की। जिसमें उनके साथ 05 हजार से अधिक जनजाति वीरों ने तीर-कमान उठा लिये और अपने धर्म की रक्षा के लिए कदम आगे बढ़ाए।