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एमपी इलेक्शन में इस बार कई IAS और IPS अफसर आएंगे चुनावी मैदान में, जानिए कैसा होगा मुकाबला
जितेंद्र चौरसिया
प्रदेश में चुनाव से ठीक पहले सियासी पिच पर अफसरशाही का नया बैच दस्तक दे रहा है। आइएएस अफसर राजीव शर्मा का इस्तीफा मंजूर हो चुका है, जबकि राज्य प्रशासनिक सेवा की निशा बांगरे का इस्तीफा स्वीकृति के लिए अटका हुआ है। राजीव ने फिलहाल राजनीति में नहीं आने की बात कही है, जबकि निशा सियासी समर में कूदने की भरपूर जद्दोजहद कर रही हैं। आइएएस सेवा से सेवानिवृत्त हुए कुछ अफसर दो महीने पहले भाजपा ज्वाइन कर चुके हैं, जबकि कुछ सेवानिवृत्त आइएएस और कतार में हैं। ऐसे में सियासत पर अफसरशाही का असर साफ दिखता है। ये और बात है कि सियासी पिच पर बैटिंग में कोई चौके-छक्के लगाता है तो कोई रनआउट हो जाता है। फिर भी हर बार चुनाव में अफसरशाही का उतरना लगातार जारी है।
ज्यादा सफल नहीं
यूं तो हर बार चुनाव में कई अफसर चुनाव में उतरते हैं, लेकिन ज्यादा अफसर सफल नहीं हो पाते हैं। एक-दो बार के चुनाव या फिर टिकट की जुगाड़ में ही रह जाते हैं। अब तक ब्यूरोक्रेसी का सबसे बड़ा सफल उदाहरण अजीत जोगी हैं, जो छत्तीसगढ़ के सीएम बने थे। बाकी चुनावी मशक्कत में अनेक खो भी गए। 2018 में आइएएस शशि कर्णावत बर्खास्त होने के बाद कांग्रेस में शामिल हुईं, लेकिन सियासी परिदृश्य पर गुमनाम ही रहीं। राजा भैय्या प्रजापति एक बार करैरा से चुनाव हार चुके हैं।
इसलिए दिलचस्पी
राजनेताओं के साथ रहने के दौरान अफसर विधायक-मंत्रियों का जलवा देखते हैं। क्षेत्र विशेष में काम करते हैं तो जनता उनसे जुड़ती है। लोग तवज्जो देते हैं। इससे भी उन्हें लगता है कि राजनीति में सफल हो सकते हैं। कुछ मामलों में राजनेताओं, पार्टी से अच्छे संबंध हो जाते हैं। इसलिए राजनीति में हाथ आजमाते हैं।
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