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BIG Breaking : चुनाव आयोग का बड़ा फैसला, 'शिवसेना' नाम और 'धनुष-बाण' का निशान किया फ्रीज
SHIVSENA : चुनाव आयोग ने टीम ठाकरे और टीम शिंदे की तरफ से दाखिल किए गए जवाब के बाद शनिवार को एक बड़ा फैसला लेते हुए शिवसेना के चुनाव चिन्ह को फ्रीज कर दिया है. इसका मतलब ये हुआ कि अब दोनों ही गुट इस चिन्ह का इस्तेमाल फिलहाल नहीं कर पाएंगे. साथ ही आयोग ने शिवसेना के नाम के इस्तेमाल पर भी रोक लगा दी है. यानी दोनों ही गुट महाराष्ट्र में आगामी चुनाव में शिवसेना पार्टी के नाम का भी प्रयोग नहीं कर पाएंगे.
शिवसेना के चिन्ह को लेकर टीम उद्धव और टीम शिंदे के बीच बीते कई महीनों से आपसी खींचतान चल रही थी. उद्धव ठाकरे जहां इसे अपने पिता की पार्टी बताकर इसपर अपना दावा कर रहे थे वहीं सीएम शिंद का कहना था कि लोकतंत्र में पार्टी उसी की होती है जिसके पास बहुमत होता है. और फिलहाल बहुमत का आंकड़ा हमारे पास है. लेकिन अब चुनाव आयोग के इस ऐलान के बाद दोनों ही पक्ष पार्टी के नाम और चिन्ह के इस्तेमाल से वंचित कर दिए गए हैं.
बता दें कि कुछ दिन पहले चुनाव आयोग ने टीम ठाकरे और टीम शिंदे से शिवसेना के चुनाव चिन्ह पर उनके अधिकार के दावे को लेकर एक जवाब दाखिल करने कहा था. उद्धव ठाकरे ने शिवसेना पार्टी पर अपने अधिकार का दावा करते हुए शुक्रवार को चुनाव आयोग में जवाब दाखिल किया था. इस जवाब में उद्धव ठाकरे ने कहा था कि महाराष्ट्र के मौजूदा सीएम एकनाथ शिंदे शिवसेना के अन्य बागी विधायकों के साथ मिलकर पहले ही अपनी स्वेच्छा से पार्टी छोड़ चुके हैं. ऐसे में वो पार्टी के चिन्ह को लेकर अपने अधिकार की बात नहीं कर सकते. सूत्रों से मिल रही जानकारी के अनुसार उद्धव गुट ने 5 लाख से ज्यादा पार्टी पदाधिकारियों और सदस्यों के समर्थन वाला एक हलफनामा भी दाखिल किया है. ठागरे गुट के वकील का कहना था कि अभी तक 2.5 मिल चुके हैं जबकि अन्य 3 लाख हलफनामों को मुंबई में सेना भवन में तैयार किया जा रहा है. इन सभी को अगले सप्ताह तक दर्ज किए जाने की योजना है.
महाराष्ट्र में आमने-सामने हैं उद्धव और सीएम शिंदे
एकनाथ शिंदे ने ठाकरे गुट से अलग होने के बाद बागी विधायकों की मदद से भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के साथ मिलकर सरकार बना ली थी. इस सरकार में एकनाथ शिंदे को सीएम और देवेंद्र फडणवीस को डिप्टी सीएम बनाया गया था. महाराष्ट्र में सत्ता परिवर्तन के बाद भी राजनीतिक गतिरोध खत्म नहीं हुआ था. शिंदे गुट खुद को असली शिवसेना बताता है और पार्टी सिंबल धनुष-तीर पर अपना दावा कर रहा है. कैसे होता है फैसला, पार्टी किसके पास जाएगी?
पार्टी का असली मालिक कौन होगा?
इसका फैसला मुख्य रूप से तीन चीजों पर होता है. पहला- चुने हुए प्रतिनिधि किस गुट के पास ज्यादा हैं? दूसरा- ऑफिस के पदाधिकारी किस ओर हैं? और तीसरा- संपत्तियां किस तरफ हैं? लेकिन, किस धड़े को पार्टी माना जाएगा? इसका फैसला चुने हुए प्रतिनिधियों के बहुमत के आधार पर होता है. मसलन, जिस धड़े के पास ज्यादा चुने हुए सांसद-विधायक होंगे, उसे पार्टी माना जाएगा. इसे इस उदाहरण से समझ सकते हैं. 2017 में समाजवादी पार्टी में टूट पड़ गई थी. तब अखिलेश यादव ने मुलायम सिंह यादव को हटा दिया था और खुद अध्यक्ष बन गए थे. बाद में शिवपाल यादव भी इस जंग में कूद गए थे. मामला चुनाव आयोग के पास पहुंचा था. चूंकि, ज्यादातर चुने हुए प्रतिनिधि अखिलेश यादव के साथ थे, इसलिए आयोग ने चुनाव चिन्ह उन्हें ही सौंपा. बाद में शिवपाल यादव ने अलग पार्टी बना ली थी.