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पुणे में शिव सैनिकों ने एक विधायक के आफिस पर तोड़फोड़ किए जाने पर शिव सेना प्रवक्ता संजय राउत ने यह कहकर पल्ला झाड़ लिया कि यह जनता का आक्रोश है और इसमें वे कुछ नहीं कर सकते। संजय राऊत के इस बयान पर भाजपा आग बबूला हो गई और महाराष्ट्र में कानून व्यवस्था की स्थिति के लिए शिवसेना सरकार को दोषी ठहराकर भीड़ पर कानूनी कार्रवाई ना करने का आरोप लगा रही है।
ये पहली बार है जब भाजपा जो देश में भीड़ तंत्र को विकसित करने में अहम भूमिका निभाती रही है ने भीड़ द्वारा की गई घटना की आलोचना की। क्या भाजपा द्वारा भीड़ द्वारा की गई ऐसी घटना पर क्रोधित होना हास्यास्पद नहीं है। भीड़ तंत्र भारत में कहां से जन्मा और इसे पैदा किसने किया अगर इसका अध्ययन किया जाए तो यह प्रणाली के ईजाद करने वाले भाजपा और उसके समर्थक संगठन के लोग रहे हैं। भाजपा को शिवसेना से जैसे को षतैसा जवाब इसलिए मिल पा रहा है क्योंकि दोनों की राजनीति का आधार एक ही रहा है बल्कि शिवसेना उसमें भाजपा से दो हाथ आगे रही है।
भाजपा ने अब तक हिंदुत्व पर अपना एकाधिकार रखते हुए अन्य राज्यों में विपक्षी पार्टियों को तो परास्त किया है लेकिन शिवसेना पर यह फार्मूला कारगर साबित नहीं हो पाया। संघ मुख्यालय भी महाराष्ट्र में होने के बावजूद भी महाराष्ट्र के हिंदुत्व पर भाजपा का एकाधिकार नहीं हो पाया और उसे शिवसेना के बाद दूसरे नंबर पर हिंदुत्ववादी माना जाता है। हालांकि उद्धव ठाकरे ने इस बार शिवसेना और खुद को अपने परंपरागत एजेंडा से अलग रखते हुए एक धर्मनिरपेक्ष सरकार के रूप में कार्य किया है। भाजपा ने इसी मौके को गनीमत मानते हुए उद्धव ठाकरे पर अपनी विचारधारा से हटने का आरोप लगा दिया और बगावत कराई। शिवसेना के बागी एकनाथ शिंदे भी यही बात दोहरा रहे हैं कि शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे अपने परंपरागत हिंदुत्ववादी एजेंडा से पीछे हट गए हैं।
भाजपा और शिवसेना एक मुद्दत तक इकट्ठा होकर राजनीति करते रहे हैं लेकिन इस बार अलग ही नहीं हुए बल्कि एक दूसरे पर हमलावर भी रहे। इसका आधार वही है कि शुद्ध हिंदुत्ववादी कौन? जब शिव सैनिक झुंड बनाकर मुसलमानो के खिलाफ हमले करते थे तब भाजपा को वो सब पसंद आता था। देश में भीडतंत्र का सबसे पहला प्रदर्शन बाबरी मस्जिद का विध्वंस था जिसे भाजपा ने अपना आदर्श आंदोलन बताया था। इसके बाद देश में भीड़ द्वारा अलग अलग जगहों पर मॉब लिंचिंग की घटनाओं को भी भाजपा और उसके समर्थक पसंद करते रहे हैं तो अब जब मामला उलट पड़ रहा है तो कैसे कानून व्यवस्था याद आ रही है।
भारत एक संवैधानिक व्यवस्था में चलने वाला देश है लेकिन एक विशेष विचारधारा के लोगों ने वर्ग विशेष को निशाना बनाने के लिए और उन्हें आतंकित करने के लिए कानून व्यवस्था को ताक पर रखकर भीड़ का सहारा लेने का रिवाज चलाया जो अब हर जगह चलन में आ गया। शिव सैनिक तो पहले ही से भीड़तंत्र के माहिर समझे जाते हैं। शिवसेना ने ऐलान किया है कि बागी विधायकों के घरों और कार्यालयों पर ऐसे ही तोड़फोड़ की जाएगी। अब देखना यह है कि भाजपा जिसने ये दर्द देश को दिया है इसकी क्या दवा ढूंढ पाते हैं।