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महाराष्ट्र में शरद पवार ने बागी विधायकों के होश कैसे लगाए ठिकाने?
शिवसेना चीफ उद्धव ठाकरे भले ही सीएम बनने जा रहे हों, लेकिन यह कहना गलत नहीं होगा कि तीनों दलों के गठबंधन को सत्ता के शीर्ष पर पहुंचाने में महाराष्ट्र के राजनीति के पितामह एनसीपी प्रमुख शरद पवार सबसे बड़े चेहरा बनकर उभरे हैं। तीन महीने से भी कम वक्त पहले, एक अनिश्चित राजनीतिक भविष्य की ओर से शरद पवार और उनकी पार्टी बढ़ रही थी। आम धारणा तो यही थी कि बीजेपी और शिवसेना महाराष्ट्र की सत्ता में वापस लौटेगी। हालांकि, पवार ने अपनी पार्टी की ओर से सामने आकर मोर्चा संभाला और दमदार प्रचार अभियान की शुरुआत की। वहीं, उनकी राजनीतिक सहयोगी कांग्रेस के हावभाव ऐसे थे कि मानो उन्होंने चुनावी जंग शुरू होने से पहले ही हार मान ली हो।
सतारा में बारिश में भीगते हुए चुनाव प्रचार करते 79 साल के शरद पवार की तस्वीर इस विधानसभा चुनाव की निर्णायक छवि बनकर उभरी है। एनसीपी भले ही सीटों की दौड़ में तीसरे नंबर पर रही हो, लेकिन पार्टी ने 2014 में मिले 41 सीटों के आंकड़े को बेहतर करते हुए इस बार 54 सीटों पर जीत दर्ज की। महाराष्ट्र के कई कांग्रेसी नेताओं ने भी माना कि पवार के उत्साहपूर्ण चुनावी अभियान से उन्हें कई सीटों पर मदद मिली।
हालांकि, पवार की असली परीक्षा नतीजे घोषित होने के बाद शुरू हुई। बीजेपी और शिवसेना के बीच टकराव बढ़ा और पवार ने उन एनसीपी और कांग्रेसी नेताओं की सुनी जो चाहते थे कि वह बदलते राजनीतिक घटनाक्रम में आगे बढ़कर पहल करें। उन्होंने अपने दांव अच्छे चले, शिवसेना को एनडीए से अलग होने के लिए राजी किया और कांग्रेस को एक उलट विचारधारा वाली पार्टी के साथ गठबंधन के लिए सहमत किया।
तीनों पार्टियां आपस में बातचीत कर रही थीं, लेकिन अटकलबाजी उस वक्त शुरू हो गई जब पवार ने पीएम नरेंद्र मोदी से मुलाकात की। कहा गया कि दोनों के बीच किसानों के मुद्दे पर बातचीत हुई है। हालांकि, पवार शिवसेना और कांग्रेस के साथ बने रहे। अजित पवार की बगावत के बाद दमदार सियासी जवाब दिया और वापस से गठबंधन को सत्ता में लाए। उन्होंने बीजेपी को उसी के राजनीतिक दांव-पेंचों से शिकस्त दी।
23 नवंबर को जब अजित पवार ने बीजेपी से हाथ मिलाकर सभी को चौंका दिया, पवार तुरंत एक्शन में आए और उन्हें निजी तौर पर अपनी पार्टी के विधायकों से संपर्क करना शुरू किया। उन्होंने सबसे पहले उन चार विधायकों को साधा, जो अजीत पवार के साथ राजभवन गए थे। उन्हें मनाया और उनकी मीडिया के सामने परेड कराई। मैसेज साफ था- अजित के उठाए कदम में उनकी सहमति नहीं थी और यह पार्टी लाइन के खिलाफ लिया गया फैसला था।
पवार के इस ऐक्शन से सेना और कांग्रेस को यह भरोसा मिला कि अजित की बगावत के पीछे उनका हाथ नहीं है। शरद पवार ने अपने उन विधायकों को कड़ी चेतावनी भी जारी की जो उनके भतीजे के साथ जाने के बारे में सोच रहे थे। उन्होंने साफ मेसेज दिया कि ऐसा कोई कदम दल-बदल कानून के तहत आएगा।
इसके बाद, शरद ने अजित के नजदीकी माने जाने वाले सीनियर पार्टी नेताओं को काम पर लगाया। इन नेताओं को उन विधायकों से संपर्क करने की जिम्मेदारी दी गई जो उनके भतीजे के साथ राजभवन गए थे। शरद पवार ने अपनी पार्टी के बाहर के संपर्कों का भी इस्तेमाल किया। उनका यह कदम काम आया। अजित की बगावत के 12 घंटे के अंदर तस्वीर बदल गई और 54 में से 42 विधायक उनके साथ दोबारा खड़े हो गए। बाकी छह से भी संपर्क किया गया। दिन खत्म होने तक अजीत के पाले में सिर्फ 5 विधायक ही बचे थे।
विधायकों की वापसी से उत्साहित शरद पवार ने अजित से संपर्क किया। इसके लिए उनके नजदीकी माने जाने वाले सांसद सुनील टटकरे, पूर्व मंत्री हसन मुशरिफ और पूर्व विधानसभा स्पीकर दिलीप पाटिल का इस्तेमाल किया गया। इन नेताओं के जिए अजित पवार को बगावती रुख छोड़ने के लिए राजी किया गया। परिवार के सदस्यों ने भी इसमें भूमिका निभाई। अजीत पवार अभी भी अपना रुख बदलने को तैयार नहीं थे। वहीं, शरद पवार को इस बात का आभास हो गया था कि बीजेपी अजित पवार के विधायक दल के नेता होने का फायदा फ्लोर टेस्ट में उठा सकती है। शरद पवार ने आनन फानन में मीटिंग बुलाई और अपने 42 विधायकों से उस प्रस्ताव पर हस्ताक्षर कराया, जिसके तहत अजीत पवार को विधायक दल के नेता के पद से हटा दिया गया और पार्टी के राज्य प्रमुख जयंत पाटिल को यह जिम्मेदारी सौंपी गई।
इसके बाद, सेना, एनसीपी और कांग्रेस तुरंत फ्लोर टेस्ट कराए जाने की मांग लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंचे। जब कोर्ट से तत्काल राहत नहीं मिली तो पार्टियों ने सोमवार को विधायकों की परेड कराई और दावा किया कि उनके पक्ष में कुल 162 विधायक हैं। इस शक्ति प्रदर्शन के दौरान सबकी नजरें शरद पवार पर ही थीं। बीजेपी आलाकमान से मोर्चा लेते शरद पवार की एक तरह से राष्ट्रीय राजनीति में वापसी हो चुकी थी।