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- कितने विधायकों की...
कितने विधायकों की कुर्बानी के बाद हुई महाराष्ट्र में बाप बेटा की हर इच्छा पूरी!
महाराष्ट्र की सत्ता पर काबिज उद्धव ठाकरे की कैबिनेट में उनके बेटे आदित्य ठाकरे की भी सोमवार को एंट्री हो गई है. मंत्रिमंडल विस्तार में आदित्य ठाकरे को शामिल किए जाने से कई शिवसेना नेताओं को मंत्री पद की कुर्बानी देनी पड़ी है तो कई नेताओं को मंत्री पद से नवाजा गया है. इतना ही नहीं विरासत में मिली सियासत से आए नेताओं का उद्धव कैबिनेट में बोलबाला है, जिसके चलते कई वरिष्ठ नेताओं को मंत्री बनने से महरूम होना पड़ा है.
राज्यसभा सदस्य और उद्धव ठाकरे के सिपहसालार माने जाने वाले संजय राउत विधानसभा चुनाव के बाद शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस का गठबंधन बनाने की मुख्य कड़ी रहे हैं. ऐसे में संजय राउत के भाई सुनील राउत मंत्री पद के प्रबल दावेदार माने जा रहे थे. सुनील राउत मुंबई के विक्रोली से विधायक हैं. सोमवार को महाराष्ट्र विकास अघाड़ी सरकार के मंत्रिमंडल विस्तार में उन्हें जगह नहीं मिल सकी. इसी के चलते माना जा रहा है कि संजय राउत शपथ ग्रहण समारोह में शामिल नहीं हुए.
सुनील राउत का ऐसे कटा पत्ता
सूत्रों की मानें तो आदित्य ठाकरे को मंत्री बनाने की वजह से ही सुनील राउत को मंत्री पद की कुर्बानी देनी पड़ी है. दरअसल दोनों मुंबई से विधायक हैं, ऐसे में वर्ली से जीते आदित्य ठाकरे का सियासी कद सुनील राउत पर भारी पड़ा और संजय राउत के भाई का आखिरी दौर में मंत्री बनने की फेहरिस्त से नाम कट गया. शिवसेना आदित्य को मंत्री बनाकर उन्हें मुंबई का किंग बनाना चाहती है.
आदित्य ठाकरे को कैबिनेट में जगह दिए जाने के कारण शिवसेना को दो अतरिक्त मंत्री बनाना पड़ा है. आदित्य ठाकरे के चलते ही एमएलसी अनिल परब और विधायक उदय सामंत को मंत्री बनाया गया है. सूत्रों की मानें तो अनिल परब को इसीलिए कैबिनेट में जगह मिली है ताकि वो आदित्य ठाकरे को मंत्रालय के कानूनी पहलुओं पर मदद करेंगे. अनिल परब पेशे से वकील हैं और शिवसेना के लीगल मामलों को देखते हैं. विधान परिषद से मंत्री बनने वाले शिवसेना के एकलौते नेता हैं.
महाराष्ट्र हाउसिंग एंड एरिया डेवलपमेंट अथॉरिटी (MHADA) के अध्यक्ष उदय सामंत को मंत्री बनाया गया है जबकि कोंकण क्षेत्र में सामंत के खिलाफ काफी विरोध था. इसके बावजूद उन्हें कैबिनेट में जगह मिली है, इसके पीछे वजह यह है कि एनसीपी छोड़कर शिवसेना का दामन थामने वाले सचिन अहीर को उद्धव ठाकरे ने महाराष्ट्र हाउसिंग एंड एरिया डेवलपमेंट अथॉरिटी का अध्यक्ष बनाने का वादा किया था. जिसे पूरा करने के लिए उदय सामंत को मंत्री बनाया गया तो अब महाराष्ट्र हाउसिंग एंड एरिया डेवलपमेंट अथॉरिटी की कमान सचिन अहिर को सौंपी जाएगी.
सचिन अहीर को मिलेगा इनाम
दरअसल सचिन अहीर ने विधानसभा चुनाव से ऐन पहली शिवेसना में शामिल हुए थे. वह वर्ली सीट से ही विधायक चुने जाते रहे हैं, लेकिन इस बार वर्ली से आदित्य ठाकरे विधायक बने हैं. एनसीपी से शिवसेना में आकर आदित्य के विधायक बनने की राह को वर्ली से आसान कर दिया था. इसी का अब उन्हें पुरस्कार दिया जा रहा है.
वहीं, उदय सामंत के उद्धव मंत्रिमंडल में एंट्री के चलते दीपक वसंत केसरकर को भी इस बार कैबिनेट में जगह नहीं मिल सकी है. केसरकर इससे पहले सरकार में राज्यमंत्री रहे चुके हैं. इतना ही नहीं उन्होंने कोंकण क्षेत्र में नारायण राणे की पार्टी छोड़ने के बाद शिवसेना के एजेंडे को आगे बढ़ाने में अहम भूमिका अदा की है. उन्होंने सिंधुदुर्ग जिले में पार्टी के जनाधार को मजबूत भी किया, लेकिन इस बार समीकरण ऐसे बने कि कोंकण से उदय सामंत को मंत्री बनाया गया है. इस कारण वसंत केसकर को जगह नहीं मिल सकी.
दरअसल शिवसेना ने शुरू से आदित्य ठाकरे को सीएम बनाना चाहती थी. इसी रणनीति के तहत पहली बार ठाकरे परिवार से आदित्य के रूप में कोई सदस्य चुनाव मैदान में उतरा. विधानसभा चुनाव के बाद सरकार बनाने की प्रक्रिया पर बातचीत के दौरान कांग्रेस और एनसीपी के समक्ष शिवसेना ने शुरू में आदित्य ठाकरे को सीएम बनाने का प्रस्ताव रखा था. तब आदित्य की प्रशासनिक अनुभवहीनता का हवाला देते हुए दोनों दलों ने उद्धव के नाम पर सहमति दी थी. हालांकि अब शिवसेना ने आदित्य को जिम्मेदारी देकर उनका सियासी कद बढ़ाने का सिलसिला शुरू किया है.
BMC चुनाव में होगी आदित्य ठाकरे की परीक्षा
शिवसेना आदित्य को सरकार और प्रशासन चलाने का अनुभव देना चाहती है. इसीलिए कई नेताओं को कुर्बानी भी देनी पड़ी है. ऐसे में मुंबई से शिवसेना के आदित्य ठाकरे एकलौते विधायक हैं, जिन्हें मंत्रिमंडल में जगह मिली है. इस तरह से आदित्य की असल परीक्षा 2022 में बीएमसी चुनाव पर है.
इस चुनाव में आदित्य पार्टी की ओर से अहम भूमिका निभाएंगे. शिवसेना के रणनीतिकारों का मानना है कि इस चुनाव में सफलता के बाद आदित्य का सियासी कद बढ़ेगा. इसमें अगर आदित्य बीएमसी चुनाव में कामयाब होते हैं तो उद्धव ठाकरे अपनी सियासी विरासत उन्हें सौंप सकते हैं और सहयोगी दल भी उस समय राजी हो सकते हैं.