मुम्बई

मुंबई में परमबीर का परमतीर

Shiv Kumar Mishra
22 March 2021 11:37 AM GMT
मुंबई में परमबीर का परमतीर
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पता नहीं, इस राजनीति का शुद्धिकरण कौन करेगा, कैसे करेगा और कब करेगा ?

डॉ. वैदिक

चार दिन पहले तक मुंबई के जो पुलिस कमिश्नर रहे, ऐसे परमबीर सिंह ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री को जो चिट्ठी भेजी है, उसने हिंदुस्तान की राजनीति को नंगा करके रख दिया है। उस चिट्ठी में उन्होंने लिखा है कि महाराष्ट्र के गृहमंत्री अनिल देशमुख ने पुलिस के सहायक सब-इंस्पेक्टर को आदेश दिया था कि वह उन्हें कम से कम 100 करोड़ रु. हर महिने लोगों से उगाकर दे।

इस सब-इंस्पेक्टर का नाम है— सचिन वाझे। वाझे को अभी इसलिए गिरफ्तार किया गया है कि उसे उद्योगपति मुकेश अंबानी के घर के बाहर बारुद से भरी कार खड़ी करने के लिए जिम्मेदार पाया गया है। इतना ही नहीं, उस कार के मालिक मनसुख हीरेन की हत्या में भी उसका हाथ होने का संदेह है। वाझे को कई वर्ष पहले भी संगीन अपराधों में लिप्त पाया गया था। गृहमंत्री देशमुख ने वाझे को पैसा बटोरने की तरकीब भी बताई थी।

उन्होंने उससे कहा था कि मुंबई में 1750 रेस्तरां और शराबवाले हैं। यदि एक-एक से दो-दो तीन-तीन लाख रु. भी वसूले तो 40-50 करोड़ रु. तो ऐसे ही हथियाए जा सकते हैं। यह बात वाझे ने परमबीर को उसी दिन बता दी थी। परमबीर ने अपनी इस जानकारी के प्रमाण भी दिए हैं। वाझे था तो मामूली इंस्पेक्टर के पद पर लेकिन उसकी सीधी पहुंच गृहमंत्री और मुख्यमंत्री तक थी। वाझे जब राष्ट्रीय जांच एजेंसी के फंदे में फंस गया तब भी मुख्यमंत्री ठाकरे उसको बचाते रहे और परमबीर सिंह का तबादला कर दिया। परमबीर सिंह अपने नाम के मुताबिक वाकई परमबीर साबित हुए, उन्होंने सरकारी पद पर रहते हुए भी मुख्यमंत्री को ऐसा खत लिख दिया, जो महाराष्ट्र की संयुक्त सरकार के लिए परमतीर (अग्निबाण) सिद्ध हो सकता है।

अब उस पत्र की प्रमाणिकता पर ही संदेह व्यक्त किया जा रहा है लेकिन गृहमंत्री उस पर मानहानि का मुकदमा चलाएंगे, यही सिद्ध करता है कि पत्र में कुछ न कुछ दम जरुर है। यह पत्र महाराष्ट्र की ही नहीं, हमारे देश की राजनीति की भी असलियत को उजागर कर देता है। देश में कोई पार्टी और नेता ऐसा नहीं है, जो यह दावा कर सके कि उसका दामन साफ है। राजनीति आज काजल की कोठरी बन चुकी है। साम, दाम, दंड, भेद के बिना वह चल ही नहीं सकती।

भर्तृहरि ने हजार साल पहले ठीक ही कहा था कि राजनीति 'नित्यव्यया, नित्यधनागमा' है। यह रहस्य मुझे अब से 60-65 साल पहले ही पता लग गया था, जब मैं इंदौर में धड़ल्ले से चुनाव-प्रचार किया करता था। दिल्ली में अपने कुछ परम मित्र प्रधानमंत्रियों और कई मुख्यमंत्रियों ने इस तथ्य पर अपनी मुहर भी लगाई और अपनी मजबूरी भी बताई। राजनीति चलाने के लिए यदि आप कभी भिखारी, कभी डाकू, कभी सेवक और कभी मालिक की भूमिका नहीं निभा सकते तो आप उससे दूर ही रहें तो बेहतर है। राजनीति में यदि आप सफल होना चाहते हैं तो आपको बेशर्म, खुशामदी, नौटंकीबाज, घोर स्वार्थी और लफ्फाज होना बेहद जरुरी है। पता नहीं, इस राजनीति का शुद्धिकरण कौन करेगा, कैसे करेगा और कब करेगा ?

Shiv Kumar Mishra

Shiv Kumar Mishra

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