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- 'अबू सलेम नहीं बन पाता...
'अबू सलेम नहीं बन पाता डॉन अगर...' राकेश मारिया ने किताब में खोले राज
"क्या भयंकर भूल थी जो मेरे से हुई. मेरा मानना था कि झूठ बोलने में माहिर इस औरत से सहानुभूति या दया दिखाने की जगह मैंने शुरू में ही उसे तमाचा जड़ा होता तो बॉम्बे अंडरवर्ल्ड की कहानी कुछ अलग ही होती." मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर राकेश मारिया ने हाल ही में रिलीज़ हुई अपनी किताब 'लेट मी से इट नाओ' में इस वाकये को याद करते हुए लिखा है कि समझने में हुई ये गलती उन्हें बहुत भारी पड़ी. इतनी भारी कि बरसों तक उन्हें इस पर पछताना पड़ा.
ये कहानी उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले के एक युवक से भी जुड़ती है, जो मारिया को चकमा देकर भागने में कामयाब रहा था. ये युवक और कोई नहीं आगे चलकर अंडरवर्ल्ड के कुख्यात सरगनाओं में से एक बना. उसका नाम था अबू सलेम. मारिया लिखते हैं कि वो कैसे हैरान रह गए थे, जब बॉलीवुड एक्टर संजय दत्त का नाम अवैध हथियारों को लेकर पहली बार सामने आया.
उन्होंने यह भी लिखा है कि ये जानना और भी परेशान करने वाला था कि हथियार संजय दत्त के घर लाए गए और दत्त ने उनमें से कुछ खुद अपने पास भी रख लिए. इसी सिलसिले में जांच के दौरान जेबुनिस्सा काजी का नाम भी सामने आया. वो बांद्रा में माउंट मैरी के पास रहती थी. ये वही जगह थी, जहां हथियार संजय दत्त के घर से लाकर रखे गए.
मारिया ने लिखा है कि स्वाभाविक तौर पर जेबुन्निसा को पूछताछ के लिए बुलाया गया. पुलिस स्टेशन के अंदर जेबुन्निसा ने बिना रुके लगातार रोना शुरू कर दिया. वो साथ ही तीन बेटियों के साथ अपनी जिंदगी की परेशानियों का हवाला देने लगी. इसके अलावा हथियारों की कोई जानकारी नहीं होने और खुद के मासूम होने की बात भी बार-बार कहने लगी. उसने ये सब नाटक इतनी कुशलता से किया कि उन्हें भी भरोसा हो गया और उसे यूं ही जाने दिया.
मंजूर ने दी जेबुन्निसा के बारे में जानकारी
मारिया ने अपनी किताब में लिखा है कि अब मंजूर अहमद की बारी थी. उसी की कार दूसरी ट्रिप के लिए इस्तेमाल की गई थी. मंजूर ने ही जेबुन्निसा के बारे में मारिया को जानकारी दी थी. जेबुन्निसा को छोड़ने के बाद मारिया ने मंजूर अहमद से दोबारा पूछताछ की. मंजूर ने बताया कि जेबुन्निसा इतनी मासूम नहीं है और वो उससे बहुत कुछ जानती है. मारिया को तभी पता चल गया था कि जेबुन्निसा ने अपने झूठे आंसुओं से उन्हें चकमा दे दिया. ऐसे में मारिया को गुस्सा आना स्वाभाविक था और उन्होंने जेबुन्निसा को दोबारा बुलाया.
मारिया ने किताब में लिखा है, "जेबुन्निसा दोबारा मेरे सामने आई तो मैं गुस्से में उठा और उसे झन्नाटेदार तमाचा जड़ देता अगर उसने तत्काल माफी के लिए गिड़गिड़ाना शुरू नहीं कर दिया होता और ये न कबूल किया होता कि अबू सलेम ने हथियार उसके घर पर छोड़े थे. उसने मुझे उसका अंधेरी का पता भी बताया."
सलेम दिल्ली से नेपाल के रास्ते भागा दुबई
लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी. जेबुन्निसा पहले ही अबू सलेम को फोन पर बता चुकी थी कि पुलिस उसके घर पर आई थी. जाहिर है अबू सलेम ने तत्काल मुंबई छोड़ दी और वह दिल्ली पहुंच गया. वहां से नेपाल होते हुए वो दुबई पहुंचा. सलेम का तब निकल जाना और फिर दुबई में अंडरवर्ल्ड से गठजोड़ ने उसे खतरनाक डॉन बना दिया. ऐसा डॉन जिसके नाम से बॉलीवुड की हस्तियां भी कांपने लगीं.
उसने बॉलीवुड के लोगों से रंगदारी वसूलना शुरू कर दिया. मुंबई के बिल्डर्स और कुछ कारोबारियों को भी उसने नहीं छोड़ा. 90 के दशक के मध्य से 2002 तक सलेम आतंक का दूसरा नाम बना रहा. उसकी जुर्म की ये सल्तनत 2002 में लिस्बन, पुर्तगाल में गिरफ्तार होने से पहले लगातार चलती रही. मारिया ने अपनी किताब में समय के ऐसे ही उतार-चढ़ावों का जिक्र किया है.