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- तो चंबल के डाकुओं की...
तो चंबल के डाकुओं की तरह मुंबई में फैला ड्रग्स का रायता, उस पर लूट रहे है चैनल वाहवाही!
एक समय था जब उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश और राजस्थान के चंबल संभाग डाकुओं की शरण स्थली के मशहूर माना जाता था. उस समय तीनों राज्यों की पुलिस डाकुओं का कुछ न बिगाड़ने की खीज गाँव वालों पर उतारती थी. उधर डाकू भी गाँव वालों पर अपना गाहे बगाहे गुस्सा उतार देते थे. ठीक उसी तरह सुशांत सिंह राजपूत आत्म हत्या केस बना है जिसमें होना कुछ था लेकिन हो कुछ और हो रहा है.
चंबल में जब डकैत समस्या थी और पुलिस डाकुओं को नहीं पकड़ पाती थी तो दो चार ग्रामीणों को पकड़ लेती थी. और अपने मन में खुश होती थी. उन पर आरोप होता था कि इन्होंने डाकुओं को खाना खिलाया है. कभी कभी तो जंगल में पशु चराने गए चरवाहों को पकड़ लेती थी कि इनसे रास्ता पूछा तो इन्होंने बताया. और कभी महिलाओं पर भी मुकदमा बन जाता था कि डाकुओं ने चिलम सुलगाने के लिए इनसे आग मांगी थी.
ऐसा ही कुछ आज मुंबई में हो रहा है. ड्रग माफिया तो आराम से बैठा है, और यूजर्स को समन किया जा रहा है. पेडलर्स को बड़ा अपराधी बताया जा रहा है. फर्क बस इतना है कि उस समय पुलिस की इन खानापूरी वाली कार्रवाइयों के खिलाफ खूब लिखा जाता था. आज टीवी चैनल उनकी वाह वाहियां कर रहे हैं. जिस तरह सुशांत सिंह राजपूत केस में उनकी आत्म हत्या का केस सीबीआई जाँच करने की बात कही गई. चूँकि केस में ख़ास दम नहीं दिख रहा है तो केस का रुख अब ड्रग्स की और मुड गया है. लेकिन सीबीआई अभी भी अपने और से पूरा प्रयास कर रही है.