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'महाराष्ट्र भूषण' पुरस्कार की तो शुरुआत ही विवादित थी, इस बार 13 मौतें हुई है
कुछ दिनों पहले महाराष्ट्र सरकार ने नवी मुंबई में 'महाराष्ट्र भूषण' पुरस्कार का आयोजन किया, दत्तात्रेय नारायण उर्फ अप्पासाहेब धर्माधिकारी को महाराष्ट्र भूषण पुरस्कार दिया गया। इस समारोह में लाखों लोग शामिल हुए और 13 लोगो की मृत्यु लू लग जानें से हुई इस बात पर महाराष्ट्र में बड़ा विवाद छिड़ा हुआ है।
लेकिन बहुत से लोग नही जानते होंगे कि इस पुरस्कार की शुरुआत भी बड़ी विवादित रही है।
1996 में महाराष्ट्र में शिवसेना-भाजपा गठबंधन के सत्ता में आने के बाद उनकी सरकार ने 'महाराष्ट्र भूषण' पुरस्कार देने की शुरूआत की थी।
महाराष्ट्र में शिवसेना-बीजेपी की सरकार में मनोहर जोशी मुख्यमंत्री थे। अब वे ठहरे बाल ठाकरे के परम चेले .....तो सरकार में कुछ लोग पहले महाराष्ट्र भूषण' पुरस्कार के लिए बालासाहेब ठाकरे का नाम लेकर सामने आए।
लेकिन ठाकरे ने ये पुरुस्कार लेने से मना कर दिया और मनोहर जोशी को अपने गुरू के समान साहित्यकार पी एल देशपांडे को महाराष्ट्र भूषण' पुरस्कार देने को कहा .....
दरअसल बालासाहेब ठाकरे दादर के ओरिएंट हाई स्कूल में छात्र थे और उसी स्कूल में पी एल देशपांडे 1945 में एक शिक्षक के रूप में शामिल हुए। इस स्कूल में पी. एल की पत्नी सुनीताबाई देशपांडे भी शिक्षिका के रूप में कार्यरत थीं।
जब महाराष्ट्र सरकार ने देशपांडे को महाराष्ट्र भूषण के पहले पुरस्कार से सम्मानित करने का फैसला किया, तो सामाजिक, साहित्यिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में सभी ने उनका गर्मजोशी से स्वागत किया।
प्रथम महाराष्ट्र भूषण पुरस्कार समारोह प्रभादेवी के रवींद्र नाट्य मंदिर में आयोजित किया गया था। पु. एल देशपांडे बीमार होने के बावजूद वे किसी तरह समारोह में शामिल हुए। पुरस्कार ग्रहण करने के बाद सुनीताबाई ने पुल की ओर से अपना संदेश पढ़कर सुनाया।
और यही से एक बड़े विवाद की शुरूआत हुई
अपने भाषण में पी एल देशपांडे ने उस समय महाराष्ट्र के भयावह माहौल और आम लोगों की दुर्दशा पर दुख व्यक्त किया उन्होने महाराष्ट्र की नव निर्वाचित सरकार की ईट से ईट बजा दी उन्होने कहा कि ...'शिवसेना-बीजेपी गठबंधन ने छत्रपति शिवाजी के सिद्धांतों के आधार पर एक शिवशाही को लागू करने का वादा किया था। लेकिन शिवशाही के बजाय उन्होंने ठोकशाही का प्रशासन शुरू कर दिया है।'
ठोक शाही शब्द ठाकरे को बेहद नागवार गुजरा खैर पुरस्कार समारोह में तो किसी ने कुछ नहीं कहा लेकिन समारोह के अगले दिन सायन में एक पुल के उद्घाटन के अवसर पर बालासाहेब ठाकरे उपस्थित थे। वहा ठाकरे का भाषण पूर्व निर्धारित नही था लेकिन अचानक से बालासाहेब ठाकरे ने माइक को अपने नियंत्रण में ले लिया और कहा, .....यदि उन्हे गठबंधन सरकार के खिलाफ बोलना है तो पुरूस्कार ही क्यों लिया? ये लेखक (पी.एल. सहित) क्या जानते हैं? समाज की क्या उपयोगिता है?
महाराष्ट्र में पीएल देशपांडे को उनके प्रथम नाम पु. ल से जाना जाता है..…... बाल ठाकरे ने कहा कि "इस टूटे पुल से प्रवचन कौन सुनेगा?"...पुराने पुलों को तोड़ दिया जाना चाहिए और नए पुलों का निर्माण किया जाना चाहिए...ठाकरे ने क्रोध में बोलते हुए कहा कि उन्होने 'जक मारली' जो उन्हें (पी. एल.) को सम्मानित किया।
पर बाल ठाकरे पी एल देशपांडे की लोकप्रियता का अंदाजा लगाने में चूक गए दरअसल अपनी साहित्य, संस्कृति, कला, खेल, संगीत आदि को लेकर जैसी संवेदनशीलता महाराष्ट्र के लोगों में है, वैसी बहुत कम राज्यों में पाई जाती है पु. एल देशपांडे के बारे में अभद्र टिप्पणी करने के लिए शिवसेना प्रमुख बालासाहेब ठाकरे को समाज के सभी वर्गों से इतनी कड़ी आलोचना मिली कि उनके होश फाख्ता हो गए
देश भर में यह पूछा जाने लगा कि क्या सरकार बाल ठाकरे की जागीर है? सरकारी पुरस्कार का पैसा क्या ठाकरे की जेब से आता है? क्या पु.ल. जैसे साहित्यकार को पुरस्कृत करने का मतलब यह है कि सरकार उनसे आजीवन अपना गुणगान कराना चाहती है?
अपमानजनक बयानों के विरोध में, उस समय के सभी साहित्य प्रेमियों ने यह भी मांग की थी कि देशपांडे यह पुरस्कार महाराष्ट्र सरकार को लौटा दें।
इस विवाद में आम लोगों ने भी साहित्यकारों का साथ दिया और यह देख कर ठाकरे सकते में आ गए।
बाद में ठाकरे ने माफी मांगी तो ऐसे कि लोगों से अपील की, 'पु.ल. को छोड़ दो, वह महान है। मैं उसकी बहुत इज्जत करता हूं। उसके बारे में कोई कुछ न बोलो।'कुछ समय बाद ठाकरे। खुद चलकर पी एल देशपांडे के पुणे स्थित आवास पर भी गए। और एक सार्वजनिक साक्षात्कार में कहा कि खराब स्वास्थ्य के कारण मैं अक्सर रात में अपनी आंखों से नहीं देख पाता हूं। उस समय मैं वही करता हूं। टेप रिकॉर्डर पर। एल देशपांडे की आलू चाल, व्यक्ति और वल्ली, वायवर्ची वरात आदि के कैसेट चलती है। और इसे सुनता हूं
और इस तरह से इस विवाद का पटाक्षेप हुआ
ये होती है रीढ़ की हड्डी जो पु ल देशापांडे जैसे साहित्यकारों के पास थी लेकिन आज के बड़े कलाकारों साहित्यकारो के पास नही है।
पी एल देशपांडे की बायोपिक फिल्म भाई - व्यक्ति या वल्ली?' जिसे महेश मांजरेकर ने निर्देशित किया है उसमे भी इसे किस्से को दिखाया गया है जरूर देखिएगा दो भाग में है।