पुणे

आरएसएस के गढ़ नागपुर में विधान परिषद की सीट 55 साल बाद क्यों हार गई भाजपा?

Shiv Kumar Mishra
8 Dec 2020 9:35 AM IST
आरएसएस के गढ़ नागपुर में विधान परिषद की सीट 55 साल बाद क्यों हार गई भाजपा?
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हमने एमवीए की तीनों पार्टियों की मिली-जुली शक्ति का गलत आकलन किया.

बीते 4 दिसंबर को महाराष्ट्र की सत्ताधारी महाराष्ट्र विकास अघाड़ी (एमवीए) को बड़ी कामयाबी मिली जब उसने नवंबर 2019 में सत्तासीन होने के बाद से अपना पहला चुनाव जीता. शिवसेना, नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) और कांग्रेस के गठबंधन ने राज्य विधान परिषद के चुनावों में छह में से चार सीटें जीतने में कामयाबी हासिल की. विपक्षी भाजपा को सिर्फ एक सीट मिली जबकि एक निर्दलीय के खाते में गई जिसे एनसीपी का नजदीक बताया जाता है.

तीन स्नातक सीटों- नागपुर, औरंगाबाद और पुणे; दो शिक्षक सीटों (सरकारी और प्राइवेट शिक्षक इसमें अपने उम्मीदवार के लिए मतदान करते हैं)-अमरावती और पुणे; और एक एक स्थानीय निकाय नंदुरबार के लिए विधान परिषद चुनाव 1 दिसंबर को हुआ.

नागपुर में मौजूदा मेयर और भाजपा के संदीप जोशी को कांग्रेस के अभिजीत वंजारी ने हरा दिया. अमरावती में निर्दलीय किरण सरनायक ने शिवसेना के श्रीकांत देशपांडे को हरा दिया (सरनाइक एनसीपी नेता और राज्य के गृह मंत्री अनिल देशमुख के रिश्तेदार हैं). एनसीपी के सतीश चौहान ने भाजपा के शिरीश बोरालकर को हराकर औरंगाबाद में फतह हासिल की है. एनसीपी के अरुण लाड ने पुणे स्नातक सीट पर कब्जा किया. उन्होंने भाजपा के संग्राम देशमुख को हराया. कांग्रेस ने पुणे शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र में जीत हासिल कर खाता खोला. पार्टी प्रत्याशी जयंत असगांवकर ने जीत हासिल की. नंदुरबार में भाजपा के अमरीश पटेल ने आसानी से जीत हासिल की.

फड़नवीस को झटका

भाजपा ने नागपुर की सीट 55 साल बाद हारी है जो कि जनसंघ के दिनों से उसके पास थी और नागपुर आरएसएस का गढ़ भी है. इस सीट पर पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस के पिता दिवंगत गंगाधरराव फड़नवीस और उनके बाद केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी भी कई बार काबिज रह चुके हैं. इस बार भी फड़नवीस ने संदीप जोशी के लिए जोरदार प्रचार किया था. लेकिन इससे पार्टी को मदद न मिल सकी. जोशी की पराजय का मुख्य कारण भाजपा की अंदरूनी गुटबाजी है. पार्टी कार्यकर्ताओं ने गडकरी के करीबी और मौजूदा एमएलसी अनिल सोले को टिकट न दिए जाने के बाद चुनाव में दिलचस्पी नहीं दिखाई. गडकरी और फड़नवीस धड़े का खामियाजा भाजपा को भोगना पड़ा और उसे सबसे अपमानजनक हार का सामना करना पड़ा.

इसी तरह, पुणे स्नातक सीट पर हार भी भाजपा के लिए झटका है क्योंकि इस सीट पर वह तीन दशक से ज्यादा वक्त से काबिज रही है (सिवाय 2002 के जब जनता दल के शरद पाटिल ने जीत हासिल की थी). इससे पहले केंद्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर और बाद में चंद्रकांत पाटिल ने यहां से जीत हासिल की जो अभी महाराष्ट्र भाजपा के अध्यक्ष हैं. फड़नवीस कहते हैं, "चुनाव नतीजे हमारी उम्मीदों के मुताबिक नहीं रहे. हमने एमवीए की तीनों पार्टियों की मिली-जुली शक्ति का गलत आकलन किया."

एमवीए का हौसला बढ़ा

चुनाव में जीत से एमवीए का आत्मविश्वास इसलिए बढ़ा है क्योंकि उसने राज्य में दिखा दिया है कि वह भाजपा को रोकने में सक्षम है. एनसीपी और कांग्रेस दोनों ने दोनों को दो-दो सीटें मिलीं लेकिन शिवसेना ने हार का मुंह देखा. हालांकि उसे कोई शिकायत नहीं है. शिवसेना नेता नीलम गोर्हे का कहना है, "यह हमारे संयुक्त मोर्चे की जीत है और इससे हमारा गठबंधन और मजबूत होगा." एनसीपी नेता शरद पवार ने भी यह ऐलान करने में देर नहीं की कि मतदाताओं ने भाजपा को खारिज कर दिया है.

इस जीत के बाद एमवीए ने 34 सदस्यों के साथ विधान परिषद में बहुमत हासिल कर लिया है. अगर अघाड़ी सरकार राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी से विधान परिषद के लिए अपनी सिफारिश के सभी 12 नामांकन मंजूर कराने में कामयाब हो जाती है तो 78 सदस्यीय उच्च सदन में इसका स्पष्ट बहुमत हो जाएगा.


Shiv Kumar Mishra

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