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राफेल पर बढ़ी रार, तेज़ हुए विपक्ष के हमले, संकट में मोदी सरकार
राफेल विमान डील मोदी सरकार के लिए जा का जंजाल बनती जा रही है. फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद ने यह कह कर मोदी सरकार की मुश्किलें बढ़ा दी है कि रिलायंस का नाम उन्हें भारत सरकार की तरफ से ही सुझाया गया था. इस बयान के बाद कांग्रेस सहित तमाम विपक्षी दलों ने रक्षामंत्री निर्मला सीतारमण के इस्तीफे का दबाव बढ़ा दिया है. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री पर देश को धोखा देने का आरोप लगाया है.
ओलांद के दावे के बाद से कांग्रेस पार्टी ने भाजपा की केंद्र सरकार के खिलाफ और आक्रामक तरीके से हमला बोल दिया है. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने राफेल के बहाने मोदी सरकार और अंबानी पर सीधा हमला बोला है. शनिवार को इसी मामले पर यूथ कांग्रेस ने पीएम आवास का घर रक्षामंत्री के इस्तीफे की मांग की. राहुल ने राफेल विमान सौदे में 'ऑफसेट साझेदार' के संदर्भ में फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद के कथित बयान को लेकर शनिवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर फिर तीखा हमला बोला और आरोप लगाया कि मोदी और उद्योगपति अनिल अंबानी ने भारतीय रक्षा बलों पर 130,000 करोड़ रुपये की 'सर्जिकल स्ट्राइक' की है।
राहुल गांधी ने ट्वीट करके कहा, 'प्रधानमंत्री और अनिल अंबानी ने मिलकर भारतीय रक्षा बलों पर 130,000 करोड़ रुपये की सर्जिकल स्ट्राइक की है।' उन्होंने आरोप लगाया, 'मोदी जी आपने हमारे शहीदों के लहू का अपमान किया है। आपको शर्म आनी चाहिए। आपने भारत की आत्मा से विश्वासघात किया है।' राहुल ने ओलांद के बयान को लेकर शुक्रवार को भी प्रधानमंत्री पर निशाना साधा था। उन्होंने कहा था, 'प्रधानमंत्री ने बंद कमरे में राफेल सौदे को लेकर बातचीत की और इसे बदलवाया। फ्रांस्वा ओलांद का धन्यवाद कि अब हमें पता चला कि उन्होंने (मोदी) दिवालिया अनिल अंबानी को अरबों डॉलर का सौदा दिलवाया। प्रधानमंत्री ने भारत के साथ विश्वासघात किया है। उन्होंने हमारे सैनिकों के लहू का अपमान किया है।'
फ्रांसीसी मीडिया के मुताबिक ओलांद ने कथित तौर पर कहा है कि भारत सरकार ने 58,000 करोड़ रुपए के राफेल विमान सौदे में फ्रांस की विमान बनाने वाली कंपनी दसाल्ट एविएशन के ऑफसेट साझेदार के तौर पर अनिल अंबानी की रिलायंस डिफेंस का नाम प्रस्तावित किया था और ऐसे में फ्रांस के पास कोई विकल्प नहीं था।
शुक्रवार शाम को आए ओलांद के बयान के बाद मोदी सरकार राफेल मुद्दे पर एकदम से बचाव की मुद्रा में आ गई. सत्ता के गलियारों और बीजेपी खेमे में सन्नाटा छा गया. ओलांद के बयान ने कांग्रेस का मज़बूती दी. कांग्रेस ने रक्षामंत्री के इस्तीफे की मांग तेज़ कर दी. शनिवार सुबह मोदी सरकार ने अपने पत्ते खोले. रक्षा मंत्रालय का बयान आया. मचे घमासान के बीच फ्रांसीसी विमानन कंपनी दसॉ ने मोदी सरकार के बचाव में सामने आई. उसने राफेल सौदे पर रिलायंस समूह और मोदी सरकार के रुख की पुष्टि की है. कंपनी ने कहा है कि उसने खुद ही इस सौदे के लिए भारत की कंपनी रिलांयस को चुना है. कंपनी ने बाकायदा बयान जारी करके कहा है रिलायंस समूह को रक्षा प्रक्रिया 2016 नियमों के मुताबिक चुना गया है.
दसॉ एविएशन ने कहा है कि राफेल सौदा भारत और फ्रांस सरकार के बीच एक अनुबंध था, लेकिन यह एक अलग तरह का अनुबंध था. इसमें दसॉ एविएशन को खरीद मूल्य के 50 फीसदी निवेश भारत में बनाने के लिए प्रतिबद्ध था. इसमें मेक इन इंडिया की नीति के अनुसार दसॉ एविएशन ने भारतीय कंपनी रिलायंस समूह के साथ साझेदारी करने का फैसला किया. यह दसॉ एविएशन की पसंद थी. इस साझेदारी ने फरवरी 2017 में दसॉ रिलायंस एयरोस्पेस लिमिटेड (डीआरएएल) संयुक्त उद्यम के निर्माण की शुरुआत की.
फ्रांसीसी विमानन कंपनी ने बताया कि दसॉ और रिलायंस ने फाल्कन और राफेल विमान के निर्माण के लिए नागपुर में एक प्लांट स्थापित किया है. नागपुर साइट को हवाई अड्डे के रनवे तक सीधे पहुंच के साथ जमीन की पर्याप्त उपलब्धता की वहज से चुना गया था. राफेल सौदे के तहत ऑफसेट कंट्रैक्ट के हिस्से के रूप में रिलायंस कंपनी के अलावा अन्य कंपनियों के साथ भी करार पर दस्तखत किए गए थे. लेकिन बयान मं यह नहीं बताया गया है कि रिलायंस के अलावा और किन कंपनियों के साथ करार पर बात हुई थी.
दरअस असल पूरा विवाद फ्रेंच न्यूज़ वेबसाइट मीडियापार्ट में शुक्रवार को छपे लेख के बाद आया. फ्रेंच भाषा में छपे इस लेख में फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद के हवाले से कहा गया है कि अनिल अंबानी की कंपनी रिलायंस के साथ करार करने में फ्रांस सरकार की कोई भूमिका नहीं थी. राफेल डील के लिए भारत सरकार ने अनिल अंबानी की रिलायंस कंपनी का नाम प्रस्तावित किया था. लिहाजा दसॉ एविएशन कंपनी के पास कोई और विकल्प नहीं था.
इसके अलावा कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने इस लेख को रीट्वीट करते हुए ओलांद से राफेल डील की कीमत बताने का आग्रह किया है. उन्होंने ओलांद से कहा, 'आप यह भी बताएं कि राफेल की साल 2012 में 590 करोड़ रुपये की कीमत साल 2015 में 1690 करोड़ कैसे हो गई? करीब-करीब 1100 करोड़ की बढ़ोत्तरी हुई. मैं जानता हूं कि यूरो की वजह से यह कैलकुलेशन की दिक्कत न है.'