राष्ट्रीय

व्यावहारिक नहीं है मोदी को भागवत की नसीहत, संसद नहीं बना सकती राम मंदिर के लिए क़ानून

Yusuf Ansari
18 Oct 2018 7:00 PM IST
व्यावहारिक नहीं है मोदी को भागवत की नसीहत, संसद नहीं बना सकती राम मंदिर के लिए क़ानून
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संघ प्रमुख मोहन भागवत ने भले ही मोदी सरकार को राम मंदिर के लिए संसद में कानून बनाने की नसीहत दी हो लेकिन यह सच्चाई वो भी जानते हैं कि यह मांग व्यावहारिक नहीं है. ज़ाहिर है चुनावी मौसम में भागवत के रामधुन छेड़ने का कुछ और ही मक़सद है.

यूसुफ़ अंसारी

संघ प्रमुख मोहन भागवत ने केंद्र की मोदी सरकार को अयोध्या में राम मंदिर बनाने के लिए संसद में कानून बनाने की नसीहत दी है. विजय दशमी से एक दिन पहले दिए अपने वार्षिक भाषण में भागवत ने कहा कि राजनीति की वजह से अयोध्या में राममंदिर का मामला काफी लंबा खिंच गया. लिहाज़ा केंद्र सरकार इस मामले पर जल्द ही संसद में कानून बनाए. उन्होंने यह भी कहा कि अगर केंद्र के साथ देश के ज्यादातर राज्यों में बीजेपी की सरकार बनने के बाद भी अयोध्या में राम मंदिर नहीं बनेगा तो कब बनेगा.

पांच राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनावों के मद्दे नजर मोहन भागवत का यह बयान काफी महत्वपूर्ण है. राम मंदिर का राग छेड़ कर भागवत उत्तर भारत के तीन राज्यों राजस्थान, मध्य प्रेदश और छत्तीसगढ़ के चुनावों में ध्रुवीकरण के सहारे बीजेपी को फायदा पहुंचाने की कोशिश की है. छह महीने बाद देश में लोकसभा चुनाव हैं. संघ परिवार की कोशिश है कि राम मंदिर का मुद्दा छेड़ कर पहले पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में से तीन राज्यों में बीजेपी की सत्ता बचाई जाए और फिर लोकसभा चुनावों में ध्रुवीकरण करके केंद्र की सत्ता में भी बीजेपी को वापिस लाया जाए. इसी मक़सद से दशहरा से एक दिन पहले भागवत ने मंदिर राग छेड़कर इस पर देशभर में चर्चा की शुरुआत कर दी है.

यूपी में बीजेपी की पूर्ण बहुमत की सरकार बनने का बाद से ही हिंदू संगठन अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को लेकर काफी उत्साहित हैं. लगभग सालभर से यह प्रचार किया जा रहा है कि अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की शुरुआत इस साल छह दिसंबर से पहले हो जाएगी. कुछ महीनों पहले दिल्ली में हुई विश्व हिंदू परिषद की बैठक में भी यह सवाल उठा था कि केंद्र और लगभग बीस राज्यों में बीजेपी की सरकार बनने के बावजूद अगर अयोध्या में राम मंदिर नहीं बनेगा तो फिर कब बनेगा. बीजेपी अपने कार्यकर्ताओं को उत्साहित करने के लिए लागातार प्रचार कर रही है कि राम मंदिर का सपना अब जल्द ही साकार होने वाला है. मंदिर निर्माण के रास्ते की सभी बाधाएं समाप्त हो चुकी हैं.

राम मंदिर आंदोलन से जुड़े लोग लगातार कहते रहे हैं कि अयोध्या में मंदिर निर्माण आस्था का सवाल है इस पर फैसला करने में कोई अदालत सक्षम नहीं हैं. मंदिर निर्माण संतो के सुझावों और निर्देशों के अनुसार होगा. यहां यह सवाल उठता है कि क्या देश में संतों को कोई विशेषाधिकार हासिल हैं ? क्या संविधान मे ऐसा कोई प्रावधान है कि संत समाज संविधान या सुप्रीम कोर्ट के फैसलों या निर्देशों से इतर जाकर कोई फैसला कर सकता है ? संतो का यह फैसला मनना देश की बाध्याता हो सकती है? देश का संविधान न तो किसी धार्मिक समुदाय के धर्मगुरुओं को अपनी इच्छाओं और अपेक्षाओं के अनुसार ऐसा कोई फैसला करने और उसे देश पर थोंपने का कोई विशेषा तो क्या सामान्य अधिकार भी नहीं देता.

जहां तक अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का सवाल है, तो यह मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है. जबतक सुप्रीम कोर्ट फैसला नहीं करता अयोध्या में विवादित ज़मीन पर कोई निर्माण कार्य नहीं हो सकता. सुप्रीम कोर्ट कई बार 1993 में दिए अपने ही फैसले को कई बार रेखाकिंत कर चुका है. इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अयोध्या में अधिग्रहीत 2.77 एकड़ विवादित ज़मीन पर फैसला होने तक किसी भी तरह का स्थाई या अस्थाई निर्माण नहीं किया जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट इस फैसले के आधार पर अयोध्या में मौजूदा स्थिति में किसी भी तरह के परिवर्तन की इजाज़त देने से इनकार करता रहा है. इसी लिए वहां मौजूद अस्थाई मंदिर का टेंट 6 दिसंबर से अब तक नहीं बदला जा सका है.

सुप्रीम कोर्ट इस मामले में कई बार सख्ती दिखा चुका है. साल 1994 में एक बार दिल्ली का जामा मस्जिद के इमाम ने मुसलमानों का जत्था ले जाकर विवादित ज़मीन पर जुमे की नमाज़ पढ़ाने की कोशिश की थी. तब सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें कड़ी फटकार लगाते हुए रोक दिया था. तब सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अधिग्रहीत ज़मीन पर किसी भी तरह की धार्मिक गतिविधि की इज़ाज़त नहीं दा जाएगी. दूसरी बार 2002 में अटल बिहारी वाजपेयी की तात्कालीन एनडीए सरकार ने विहिप और अन्य हिंदू संगठनों के आगे घुटने टेकते हुए विवादित ज़मीन पर सांकेतिक शिलान्यास कराने की अनुमति देने की कोशिश की थी. तब भी सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को फटकार लगाते हुए अपन इसी फैसले की याद दिलाई थी.

अयोध्या में राम मंदिर निर्माण आस्था का सवाल है. इसमे कोई शक नहीं है. दावा किया जाता है कि देश के सौ करोड़ रामभक्त अयोध्या में ठीक उसी जगह मंदिर बनवाना चाहते जहां कभी बाबरी मस्जिद मौजूद थी. हिंदु समाज की आस्था है कि बाबरी मसज्दि के बीच वाले बड़े गुंबद के नीचे ही भगवान राम की जन्म हुआ था. यह भी माना जाता है कि बाबर के सिपहसालार मीर बाकी ने साल 1528 में यहां मौजूद राम मंदिर को तोड़कर बाबरी मस्जिद बनवाई थी. इसी लिए राम मंदिर आंदोलन के दौरान जुटाई गई भीड़ ने 6 दिसंबर 1992 को मस्जिद गिरा दी थी. हिंदू संगठनों की उसी जगह मंदिर बनाने की ज़िद है. अगर यह इतना आसान होता तो अबतक यह ज़िद पूरी हो चुकी होती.

सच्चाई यह है कि राम मंदिर आंदोलन से जुड़े तमाम बड़े नेताओं और फैजाबाद के तात्कालीन जिलाधिकारी व पुलिस कप्तान पर अदालत में कई आपराधिक मामले विचाराधीन हैं, सुप्रीम कोर्ट भी इसका जल्द ही निपटारा चाहता है. इसी लिए उसने इस मामले की सुनवाई के तत्परता दिखाई है. सुनवाई टालने से भी मना कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट में यह भी साफ कर दिया है इसमें वो इस मामले पर किसी आस्था, विश्वास, धर्म और मान्यता के आधार पर नहीं, बल्कि देश के भूमि कानून के अनुसार ही सुनवाई करेगा. पिछले दिनो नमाज़ के लिए मस्जिद की ज़रूरत जैसे मुद्दे पर सुनवाई के वक्त भी सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया था कि इसका अयोध्या मामले पर आने वाले फैसले पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा.

अयोध्या में बाबरी मस्जिद गिराए जाने के लगभग महीने भर बाद 7 जनवरी, 1993 को अयोध्या विशिष्ट क्षेत्र भूमि अधिग्रहण अध्यादेश आया था. बाद में इसे संसद से मंज़ूरी दिलाकर बाक़ायदा कानून बना दिया गया था. उसके बाद 24 अक्तूबर, 1994 को संविधान पीठ के पांच सदस्यों ने इस स्थल पर राममंदिर, मस्जिद, पुस्तकालय, वाचनालय, संग्रहालय और तीर्थयात्रियों की सुविधा वाले स्थानों का निर्माण करने को कहा था. संविधान पीठ ने इस अध्यादेश को भी वैध माना था. सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम समुदाय की यह अपील भी ठुकरा दी थी कि मस्जिद के धार्मिक स्थल होने की वजह से उस ज़मीन का अधिग्रहण नहीं हो सकता. विवादित ज़मीन के स्वामित्व का मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है. इसके निपटारे के बगैर उस ज़मीन पर न मंदिर बन सकता है और नही मस्जिद.

अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का रास्ता सुप्रीम कोर्ट से होकर जाता है. अगर सुप्रीम कोर्ट निर्मोही अखाड़े के हक़ में फैसला करता है को वहां राम मंदिर का बनाने का रास्ता साफ है. इसमें किसी तरह की कोई रुकावट नहीं होगी. लगभग सभी मुस्लिम संगठन पहले ही सुप्रीम कोर्ट का फैसला मामने की बात कह चुके हैं. अगर फैसला सुन्नी वक़्फ बोर्ड में हक़ में आता है तो सुन्नी वक़्फ बोर्ड मुकदमे में जीती हुई ज़मीन मंदिर निर्माण के लिए दे सकता है. बोर्ड यह ज़मीन मंदिर के लिए बतौर तोहपा भी दे सकता है फिर वो इसके बदले उतनी ही ज़मीन कहीं और ले सकता है. अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की सर्वमान्य हल यही है. दोनो समुदायों की ज़िद के टकराव से यह मसला हल होने वाला नहीं है.

संघ प्रमुख मोहन भागवत की मांग से पहले से हिंदू संगठन मोदी सरकार से संसद में प्रस्ताव पारित करके मंदिर निर्माण शुरू करने की मांग कर रहे हैं. मोदी सरकार संविधान से बंधी हुई है. संविधान मे ऐसा कोई नुक्ता नहीं हैं कि वो इसके लिए संसद में कानून बनवाने की पहल बई करे. इस रास्ते में सबसे बड़ी रुकावट खुद 1993 में अयोध्या की विवादित ज़मीन के लिए बना कानून ही है. संवैधानिक स्थिति यह है कि एक ही विषय पर संसद दो अलग-अलग व्यवस्थाएं नहीं कर सकती. मंदिर निर्माण के लिए कानून बनाने के लिए 1993 के कानून को खत्म करना होगा. संसद में बना कानून संसद से ही खत्म हो सकता है. इसे अध्यादेश लाकर ख़त्म नहीं किया जा सकता.

लोकसभा चुनाव से पहले संसद का सिर्फ शीतकालीन सत्र बचा है. इस सत्र में पुराना कानून खत्म करके नया कानून बना पाना संभव नहीं है. मोदी सरकार किसी भी विधेयक को अपने दम पर संसद के दोनों सदनों में पास कराने की स्थिति में नहीं है. बीजेपी के सहयोगी दल इसके लिए राज़ी नहीं होंगे. यह बात संघ प्रमुख मोहन भागवत भी अच्छी तरह जानते हैं. इसके बावजूद अगर चुनावी मौसम में उन्होंने रामधुन छेड़ी है तो इसका सिर्फ एक ही मतलब है कि वो रामभक्तों को एक बार फिर पहले पांच राज्यों में और फिर पूरे देश में इस धुन पर नचाना चाहते हैं

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