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आखिर क्यों मुजफ्फरपुर कराह रहा है जबकि गोरखपुर एकदम शांत, योगी से क्यों नहीं सीखे नीतीश कुमार?
मुजफ्फरपुर में इन्सेफेलाइटिस से हालात खराब हो चुके हैं, लेकिन इन्सेफेलाइटिस का केंद्र बिंदु कहा जाने वाला गोरखपुर फिलहाल इससे अछूता दिख रहा है. अभी तक पूर्वी उत्तर प्रदेश से इस जानलेवा बीमारी की कोई बड़ी घटना सामने नहीं आई है. क्या ये कहना सही होगा कि हर साल सैकड़ों मौतों की कब्रगाह बनने वाला बीआरडी मेडिकल कॉलेज इस जंग को जीत रहा है. आइए जानते हैं क्या है सच्चाई...
गोरखपुर का बाबा राघव दास मेडिकल कॉलेज जो कि बीआरडी कॉलेज अस्पताल के नाम से मशहूर है पिछले दो दशकों में मासूमों के कब्रगाह के लिए जाना जाता रहा है, लेकिन अब हालात बदल गए हैं, इन्सेफेलाइटिस के मरीज कम हो गए हैं, आज की तारीख में बीआरडी अस्पताल के ICU में एक भी इन्सेफेलाइटिस का मरीज नहीं है जबकि वार्ड में भी सिर्फ गिनती के पुराने केस मिले.
आखिर क्यों मुजफ्फरपुर कराह रहा है जबकि गोरखपुर एकदम शांत...
कभी बीआरडी मेडिकल कॉलेज में एक एक बेड पर कई-कई बच्चे जानलेवा इन्सेफेलाइटिस से जूझते दिखाई देते थे, एक ही बेड पर एक साथ 3-3 बच्चों के दम तोड़ने का गवाह रहा है. अब हालात बदल चुके हैं बीआरडी मेडिकल कॉलेज के इन्सेफेलाइटिस वार्ड में हालात बेहतर नजर आते हैं, हर बेड पर एक ही मरीज बच्चा दिखाई देता है, हां मां जरूर दिखती है, साफ सफाई ऐसी की बड़े प्राइवेट अस्पताल को आईना दिखा दे. बीआरडी कॉलेज में सुविधाएं इतनी बढ़ाई गई हैं कि अब कई बेड खाली है क्योंकि मरीजों से ज्यादा सुविधाएं हैं.
बालरोग विभाग के इन्सेफेलाइटिस वार्ड में बेड 268 से बढ़ा कर 428 कर दिए गए हैं. नर्सों की संख्या भी दो गुनी हो गई है. छह शिक्षक और 63 नॉन पीजी रेजीडेंट के नए पद सृजित हुए है. प्रदेश सरकार ने इन्सेफेलाइटिस वार्ड में 37 बेड का हाई डिपेंडेंसी यूनिट शुरू किया है.
दरअसल यह इन्सेफेलाइटिस के खिलाफ जंग जीतने जैसा है. 2017 में बीआरडी मेडिकल कॉलेज में ऑक्सीजन कांड के बाद से इन्सेफेलाइटिस के खिलाफ पूरे पूर्वांचल में निर्णायक लड़ाई लड़ी जा रही है जो गांव में सफाई, बीमारी के बारे में लक्षण पहचान की जागरूकता, स्वच्छ पीने के पानी से लेकर घर-घर शौचालय और मच्छरदानी के प्रयोग को लेकर है. मरीज कम हुए हैं इसकी सबसे बड़ी वजह जागरूकता है, पूरे पूर्वांचल में जापानी बुखार के खिलाफ लगभग 90 फीसदी टीकाकरण पूरा हो चुका है, लोगों को साफ सफाई की जानकारी है.
बीआरडी अस्पताल में 15 जून तक मरीजों की भरमार हो जाती थी और बरसात की शुरुआत के साथ ही इन्सेफेलाइटिस या जापानी बुखार अपने चरम पर होता था, लेकिन इस साल अबतक गोरखपुर मंडल के सिर्फ 24 मरीज पंहुचे हैं जिसमें से 6 बच्चों की मौत हुई है जबकि पिछले साल अबतक 40 मरीज और 16 मौतें हो चुकी थीं. पिछले दो सालों से लगातार घट रहे मरीजो की संख्या को देखते हुए इस पूरे साल में अस्पताल प्रशासन 200 से 250 मरीजों का आंकड़ा देख रहा है जो पिछले दो दशक का सबसे न्यूनतम हो सकता है.
जिन परिवारों ने अपने बच्चों को इस बीमारी से खोया है वो भी मानते हैं कि हालात काफी सुधर चुके हैं. पूर्वांचल में मासूमों को शिकार बनाने वाली इन्सेफेलाइटिस चार दशक से कहर बरपा रही थी. 1978 से 2017 तक 50 हजार से ज्यादा मासूमों की जान जा चुकी थी. बीते दो साल में साफ-सफाई पर जोर और इलाज के संसाधन बढ़ाकर बीमारी पर काफी हद तक काबू पा लिया गया है.
इन्सेफेलाइटिस की कैसे हुई शुरुआत-
पूर्वांचल में पहली बार 1978 में इस बीमारी के प्रकोप का पता चला. उस साल 274 बच्चे बीआरडी मेडकल कॉलेज में भर्ती हुए थे जिसमें से 58 की मौत हो गई थी. 1978 से अबतक इस बीमारी से अकेले बीआरडी मेडिकल कॉलेज में 40 हजार से ज्यादा मरीज भर्ती हो चुके हैं. जिनमें से तकरीबन 8 हजार से ज्यादा बच्चों की मौत हो चुकी है. 2004 तक पीड़ित मरीजों की संख्या सालाना एक हजार से कम रही. साल 2005 में इस बीमारी का सबसे भयानक कहर पूर्वांचल ने झेला. उस साल बीआरडी में साढ़े तीन हजार से ज्यादा मरीज भर्ती हुए इनमें 937 की मौत हो गई.
आखिर कैसे लड़ी जा रही है इन्सेफेलिटिस से जंग-
इतनी मौतें हुईं तो इसकी गूंज गोरखपुर से दिल्ली तक सुनाई दी. इसके बाद भी हर साल इन्सेलेफेलाइटिस करीब 500 जिंदगियां निगलती रही, लेकिन कोई ठोस पहल नहीं हुई. पिछले दो सालों में कई स्तरों पर गंभीर प्रयास हुए, इलाज के संसाधन बढ़ाए. लगातार जागरूकता अभियान चलाए जा रहे हैं, साफ-सफाई के साथ शुद्ध पानी के इंतजाम से बीमारी पर काफी हद तक काबू पा लिया गया है. कई गांव में लोग हैंडपंप का पानी छोड़कर पानी के जार खरीदकर पीने लगे हैं.
दस्तक अभियान का असर
साल 2017 में उत्तर प्रदेश सरकार ने इन्सेफेलाइटिस हटाने के उद्देश्य से दस्तक अभियान शुरू किया था, जिसका असर भी दिखा. दस्तक के तहत गांव के प्रधान और गांव की आशा कार्यकत्री की जवाबदेही होती है कि हर बीमार बच्चे को वो प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र ले जाए. हर आशा कार्यकर्ता को 300 रुपए का रिवॉर्ड मिलता है अगर वो अपने इलाके के किसी मरीज को ढूंढकर अस्पताल पहुंचा देती है. बीते दो सालों में बीमारी के प्रकोप में काफी कमी आई है. इस अभियान के जरिए बुखार पीड़ित बच्चों का फौरन इलाज कराने के लिए अभिभावकों को जागरूक किया गया.
गांव की आशा, आंगनबाड़ी कार्यकत्री , प्राथमिक शिक्षक, एएनएम और ग्राम प्रधान के साथ ही सरकारी और निजी अस्पतालों के डॉक्टर को ट्रेनिंग दी गई. गांव में इलाज के लिए सीएचसी में तीन-तीन बेड के मिनी आईसीयू बनाए गए. जिला अस्पताल में पीडियाट्रिक आईसीयू में पांच बेड बढ़ाए गए. सभी में आधुनिक वेंटिलेटर लगाए गए.
योगी सरकार ने सिर्फ बीआरडी को ही मजबूत नहीं किया है बल्कि आसपास के सभी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों को अत्याधुनिक बना दिया है. ऐसे में बीआरडी में पंहुचने की जरूरत कम हो गई है ,लोगों की इन्सेफेलाइटिस का इलाज PHC पर ही मिल जाता है और सिर्फ गंभीर मरीज ही BRD रेफर किए जाते हैं.
बीआरडी में भर्ती मरीज और मौतों की संख्या
वर्ष भर्ती मौत
1978 274 58
1979 109 26
1980 280 66
2005 3532 937
2006 1940 431
2007 2423 516
2012 2517 527
2013 2110 619
2014 2208 616
2017 2247 511
2018 1047 166
2019 55 13
(नोट : आंकड़े बीआरडी मेडिकल कॉलेज के बाल रोग विभाग के हैं)
ये जिले हैं प्रभावित
गोरखपुर, कुशीनगर, महराजगंज, देवरिया, बस्ती, संतकबीर नगर, सिद्धार्थनगर, गोंडा, आजमगढ़, बलरामपुर, मऊ, बलिया, गाजीपुर, श्रावस्ती, फैजाबाद, अंबेडकरनगर, शाहजहांपुर बिहार और नेपाल.