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यूसुफ़ अंसारी
लखनऊ में एप्पल कंपनी के एरिया मैनेजर विवेक तिवारी की हत्या देशभर में चर्चा का विषय बनी हुई है. चर्चा हो भी क्यों न. आखिर हत्या हुई है विवेक की. विवेक यानी ज़मीर, अंतरात्मा. यह सिर्फ एक शख्स की हत्या नहीं है. यह हत्या है पुलिस प्रशासन और सरकार के विवेक की. गोली भले ही विवेक के सिर में लगी हो, कलंक पुलिस की वर्दी पर लगा है. सरकार के माथे पर लगा है
हत्या के बाद से ही यूपी पुलिस पूरे मामले की लीपापोती करने में जुटी हुई है. पुलिस इसे ही इसे दुर्घटना का मामला बनाने में जुटी है. पुलिस अधिकारी अपने दोनों कांस्टेबल को बचाने में जुटे हैं. योगी सरकार अपनी साख़ बचाने में जुटी है. विवेक तिवारी के परिवार को मुआवजा देकर चुप करने की कोशिश हो रही है. हालांकि विवेक तिवारी की पत्नी कल्पना तिवारी ने इस बात से इंकार किया है कि प्रशासन की तरफ से किसी तरह का दबाव है. कल्पना तिवारी कुछ भी कहें. दबाव दिखाई नहीं देता, इसे महसूस किया जाता है. इस मामले में दबाव साफ तौर पर महसूस किया जा रहा है.
हत्या वाले दिन विवेक तिवारी के परिवार वालों ने ऐलान किया था कि जब तक मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ उनसे मिलने नहीं आएंगे और उऩ्हें मुआवज़े के रूप में एक करोड़ रुपए नहीं मिलेगें तब तक विवेक का अंतिम संस्कार नहीं किया जाएगें. शाम होते-होते परिवार में प्रशासन का तरफ दिए गए 25 लाख के मुआवज़े पर ही संतोष कर लिया और विवेक का अंतिम संसकार कर दिया. मुख्यमंत्री की जगह उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने परिवार से मिलकर खानापूर्ती की. परिवार को भरोसा दिया है कि दोषियों को बख़्शा नहीं जाएगा. लखनऊ से ख़बर है कि प्रशासन ने परिवार पर दबाव डलवाकर अंतिम संस्कार करवाया है.
प्रशासन का कहना है कि दुर्घटनावश हुई मौत के मामले में 25 लाख रूपए से ज़्यादा मुआवज़ा देने की नीति नहीं है. मतलब साफ है, पुलिस और प्रशासन इसे हत्या नहीं बल्कि दुर्घटना की वजह से हुई मौत का मामला मानकर चल रही है. इस पूरे घटना की एक मात्र चश्मदीद गवाह सना खान लापता हैं. वो कहां है, किसी को पता नहीं. ख़बर आई है कि पुलिस ने उसे नजरबंद किया हुआ है. उसे कुछ भी बोलने भी नहीं बोलने की हिदायत दी गई है. पुलिस ने सना खान की दी तहरीर पर ही रिपोर्ट दर्ज की है. रिपोर्ट में किसी पुलिस वाले का नाम नहीं है. रिपोर्ट में गोली चलने का ज़िक्र तो है लेकिन यह नहीं बताया गया है कि गोली किसने चलाई.
सना खान की दी हुई तहरीर को ही पुलिस अपने लोगों को बचाने का आधार बना सकती है. तहरीर बहुत लचर है. एप्पल जैसे कंपनी में काम करने वाली लड़की क्या जाने पुलिस में तहरीर कैसे दी जाती है. उसने लिखा है कि हमारी कार एक रास्ते पर जा रही थी सामने जो पुलिस वाले दिखाई दिए और हमने उनसे बचकर निकलने की कोशिश की. तभी ऐसा लगा जैसे गोली चली है. उसके बाद कार जाकर डिवाइडर से टकरा गई. विवेक के सिर से खून बह रहा था. हमने मदद लेने की कोशिश की. थोड़ी देर बाद पुलिस आई जिसने हमें अस्पताल पहुंचाया. यह एफआईआर ही मुल्ज़िमों को बचाने का मज़बूत आधार बन सकती है.
विवेक तिवारी की पत्नी कल्पना तिवारी ने पांच सवाल उठाए हैं. उन्होंने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को चिट्ठी लिख कर पूछा है अगर मेरे पति ने पुलिस के रोके जाने पर गाड़ी नहीं रोकी तो क्या पुलिस को गोली मारने का अधिकार मिल जाता है ? अगर मेरे पति गाड़ी में किसी लड़की के साथ आपत्तिजनक स्थिति में भी थे तो क्या पुलिस को उन्हें गोली मारने का अधिकार मिल जाता है. उन्होंने पूछा है कि पति के गुजरने के बाद मेरे परिवार का भरण पोषण कैसे होगा और मेरे बच्चों की शिक्षा और अन्य खर्च कैसे पूरे होंगे..? इस तरह के सवाल उठाकर उन्होंने कहीं ना कहीं यह इच्छा जताई है कि मुख्यमंत्री को उनसे मिलने उनके घर आन चाहिए.
मुख्यमंत्री जो अभी तक उनके घर नहीं गए लेकिन उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव देव मौर्य ने जाकर उनसे मुलाकात की है. केशव प्रसाद मौर्य मुलाकात की और दोषियों को सजा दिलाने का भरोसा भी दिलाया है. बृजेश पाठक भी मिले हैं. यूपी कांग्रेस के अध्यक्ष राज बब्बर, आम आदमी पार्टी के सासंद संजय सिंह भी उनके घर जाकर मिले हैं. इन्होंने योगी सरकार की एनकाउंटर नीति पर गंभीर सवाल उठाए हैं. सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव भी इस मामले को लेकर योगी सरकार के खिलाफ आक्रामक हैं. इस घटना को लोकर हर पार्टी पूरी तरह से अपने हिसाब से राजनीतिक रंग देने में जुट गई है.
इस पूरे मामले को दलित बनाम सवर्ण और हिंदू-मुसलमान का रंग देने की भई कोशिशें शुरू हो गई हैं. आरोपी पुलिस वाले प्रशांत चौधरी और संदीप कुमार दलित परिवारों से हैं. इनका कहना है विवेक ने उऩके ऊपर गाड़ी चढ़ाने की कोशिश की और इसी में गोली चल गई. सना और पुलिसवालों के बयाने में फर्क है. यह जांच का विषय है. खबर यह भी आ रही है कि पुलिस वाले की सादी वर्दी में थे. जींस और टीशर्ट में निजी मोटर साइकिल पर सवार थे. ऐसे कोई किसी किसी गाड़ी को रोकने की कोशिश करेगा तो कोई अपनी गाड़ी भला क्यों रोकेगा. सवाल यह है कि जिस जगह विवेक की गोड़ी रोकने का कोशिश की गई क्या वहां पुलिस ने नाकाबंदी की हुई थी? कोई बैरिकैडिंग की हुई थी?
एसे ही तमाम सवालों से घिर गया है विवेक तिवारी हत्याकांड. यहा भी कहा जा रहा है कि आरोपी पुलिसवालों की भर्ती 2016 में हुई है. दो साल की नौकरी में ही इन दोनों के पास पिस्टल कैसे आई..? यह एक गंभीर सवाल है. बड़ी शर्म की बात बात है कि इस मामले को जातीय और सांप्रदायिक रंग दिया जा रहा है. कुछ लोग यह कह रहे हैं कि वह विवेक तिवारी मुस्लिम लड़की के साथ थी इस लिए मारे गए. कुछ लोग कह रहे हैं दलित पुलिस वालों ने ब्राह्मण को मार दिया. ऐसी बेतुकी बातें अपराध की गंभीरता को कम कर रहीं हैं. भला किसी पुलिस वाले को यह कैसे पता हो सकता है कि गाड़ी में बैठा व्यक्ति दलित है या सवर्ण. उसके जा रही लड़की हिंदू है मुस्लिम. इस तरह के सवाल उठाने वाले सिर्फ अपनी दुकाने चला रहे रहे हैं. ऐसा करके ये लोग समाज में दरार पैदा कर रहे हैं. ऐसी बेतुकी बातें करने वाले समाज और देश दोनों के दुश्मन हैं. यह सीधे-सीधे आपराधिक घटना है. ऐसी घटनाओं को सिर्फ मानवीय आधार पर सोचा जाना चाहिए. आपराधिक घटनाओं को जातीय और सांप्रदायिक रंग देना समाज और देश के लिए खतरनाक है.
उत्तर प्रदेश सरकार को इस मामले की सीबीआई जांच करानी चाहिए. सीबीआई जांच से ही इस घटना की सच्चाई सामने आ सकती है. यूपी पुलिस इस मामले की लीपीपोती में जुटी है. उससे निष्पक्ष जांच की उम्मीद नहीं की जा सकती. विवेक तिवारी की पत्नी ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को लिखी चिट्ठी में सीबीआई से जांच कराने की मांग की है. उत्तर प्रदेश सरकार को उनकी मांग मानते हुए इस मामले को फौरन सीबीआई के सुपुर्द कर देना चाहिए. महज़ पच्चीस लाख रुपए मुआवज़ा और सरकारी नौकरी पुलिस वाले की गोली से हुई किसी नागरिक की हत्य़ा की क़ीमत नहीं हो सकती. अगर पीड़ित परिवार को इंसाफ नहीं मिलता तो मुआवज़े की कोई अहमियत नहीं है. विवेक तिवारी की हत्या के लिए कहीं न कहीं योगी सरकरा की एनकाउंटर नीति भी ज़िम्मेदार है. सुप्रीम कोर्ट भी इस पर ऐतराज जता चुका है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि एनकाउंटर किसी भी राज्य सरकार की नीति नहीं हो सकती. इसकी वजह से पुलिस को किसी पर भी गोली चलाने का अधिकार मिला हुआ है. यूपी पुलिस धड़ल्ले से इस अधिकार का दुरुपयोग कर रही है. हाल ही में दो मुस्लिम नौजवानों के फर्जी एनकाउंटर का मामला सामने आया है.
योगी सरकार के दौरा प्रदेश मे हुए सभा एनकाउंटर सवालों के घेरे में हैं. प्रदेश के पूर्व पर्मुख सचिव एसपी सिंह ने बाकायदा फेसबुक पर पोस्ट लिख कर आरोप लगाया है कि यूपी पुलिस ने आठ लाख रुपए लेकर किसी का भी एनकाउंटर कर सकती है. ऐसे आरोप योगी सरकरा की साख पर बट्टा हैं. विवेक पुलिस का गोली से सिर्फ विवेक तिवारी नहीं मरा बल्कि इस घटना ने प्रदेश की पुलिस का बेहद खौफनाक चेहरे को बेनक़ाब किया है. इससे पता चलता है कि योगी सरकार का विवेक कहीं खो गया है या फिर सो गया है. सवाल यह है क्या विवेक तिवारी की हत्या योगी सरकार के खोए हुए या सोए हुए विवेक को जगा पाएगी?