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भारत के लाल कैलाश सत्यार्थी के प्रयास से बने अंतरराष्ट्रीय कानून को दुनिया के 187 देशों ने किया स्वीकार
शिव कुमार शर्मा
भारतवासियों के लिए यह समय उत्सव मनाने का है। एक भारतीय के प्रयास से दुनियाभर के बच्चों के चेहरे पर मुस्कान लाने वाले कानून को विश्व के सभी देशों ने स्वीकार कर अपने देश से बाल श्रम को समाप्त करने का संकल्प ले लिया है। बाल श्रम के सबसे बदतर प्रकारों को खत्म करने के लिए बनाए इंटरनेशनल लेबर आर्गेनाइजेशन (आईएलओ) के कन्वेंशन-182 को अब इसके सभी 187 सदस्य देशों ने स्वीकार कर लिया है।
भारत के लिए यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि इस अंतरराष्ट्रीय कानून की मांग भारत की धरती से ही उठी थी। बच्चों को गुलामी और दासता से मुक्ति करने वाला यह अंतरराष्ट्रीय कानून आईएलओ कनवेंशन-182 के रूप में नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित बाल अधिकार कार्यकर्ता कैलाश सत्यार्थी के प्रयास से करीब 22 साल पहले सर्वसम्मति से पारित किया था। तब आईएलओ के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ था कि किसी प्रस्ताव को उसके सभी सदस्य देशों का पूर्ण समर्थन मिला हो।
दक्षिण प्रशांत महासागर में स्थित टोंगा आईएलओ का 187वां और अंतिम सदस्य देश है जिसने इस पर हस्ताक्षार कर आईएलओ कनवेंशन-182 को स्वीकार कर लिया है। टोंगा के हस्ताक्षर के बाद कन्वेंशन-182 आईएलओ के इतिहास में वैश्विक स्तर पर सबसे अधिक समर्थन वाला कन्वेंशन हो गया है। आईएलओ कन्वेंशन-182 बाल दासता और बंधुआ बाल मजदूरी पर पूरी तरह से रोक लगाते हुए बच्चों के बाल सैनिक बनाने और पोर्नोग्राफी आदि में शोषण पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाती है। सत्यार्थी की मेहनत, दूरदर्शिता, लगन और जुनून का ही यह परिणाम है कि सभी देशों ने इस संधि-पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए हैं। सत्यार्थी जी के कारण कन्वेंशन-182 कैसे आईएलओ में पास हुआ? सत्यार्थी जी ने इसके लिए कैसे संघर्ष किया? इसकी एक लंबी कहानी है।
बात करीब दो दशक पुरानी है। अपने दो दशक के संघर्ष में बाल-मजदूरों की दयनीय स्थिति को देखते हुए श्री सत्यार्थी बाल-श्रम के विरुद्ध एक अंतर्राष्ट्रीय कानून बनवाना चाहते थे। अभी तक बाल श्रम के विरुद्ध कोई ऐसा कानून नहीं था जो सभी देशों को मान्य हो। इसके लिए वे सोच-विचार करने लगे। सत्यार्थी जी को पता था कि जून 1998 में आईएलओ के जिनेवा स्थित मुख्यालय में इसका महत्वपूर्ण सालाना अधिवेशन होना प्रस्तावित है। बाल श्रम के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय कानून बनाने के लिए उन्होंने आइएलओ के अधिवेशन पर विश्व-बिरादरी का दवाब डलवाने का निश्चय किया। इसके लिए उन्होंने एक विश्व-यात्रा निकालने की योजना बनाई। उस समय सत्यार्थी जी के पास न तो पैसा था और न ही विश्वव्यापी यात्रा के लिए संसाधन। लेकिन सत्यार्थी जी अपनी धुन के पक्के थे। उनके अंदर हिमालय की तरह धीरज तथा आसमान के समान ऊंचा साहस था। सत्यार्थी जी ने अपनी योजना देश-विदेश में रह रहे अपने साथियों को बताई। उनमें से कई लोगों ने कहा कि सत्यार्थी जी, बिना समुचित संसाधनों के यह विश्व-यात्रा संभव नहीं है। लेकिन सत्यार्थी जी ने हिम्मत नहीं हारी और अपने प्रयास में लगे रहे। किसी शायर ने फ़रमाया भी है जो सत्यार्थी जी पर शत-प्रतिशत चरितार्थ होता है। शेर इस प्रकार है–
अहले-हिम्मत मंज़िले मक़सूद तक आ ही गये,
बंद-ए-तक़दीर किस्मत का गिला करते रहे।
कैलाश सत्यार्थी के अथक प्रयास से आखिरकार 17 जनवरी 1998 को फिलीपीन्स की राजधानी मनीला से बाल श्रम के खिलाफ एक मजबूत अंतरराष्ट्रीय कानून बनाने की मांग को लेकर "ग्लोबल मार्च अंगेस्ट चाइल्ड लेबर" यानी बाल श्रम विरोधी विश्व यात्रा की शुरुआत हो गई। बाल श्रम के मुद्दे पर यह सबसे लंबी और सबसे विशाल व प्रभावकारी जन-जागरुकता यात्रा थी। जो एक इतिहास है।
यह यात्रा 103 देशों से गुजरते हुए और 80 हजार किलोमीटर की दूरी तय कर जिनेवा स्थित संयुक्त राष्ट्र के मुख्यालय पर 6 जून 1998 को समाप्त हुई थी। तकरीबन पांच महीने तक चली इस विश्वव्यापी यात्रा में करीब डेढ़ करोड़ लोगों ने सड़क पर उतर कर मार्च कर अपनी मांग दुनिया के सामने रखी थी। इस यात्रा को दुनियाभर से अपार जनसमर्थन मिला। इस प्रकार संयुक्त राष्ट्र संघ और अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन को कानून बनाने के लिए बाध्य होना पड़ा।
6 जून 1998 को जब कैलाश सत्यार्थी के नेतृत्व में बाल श्रम विरोधी विश्व यात्रा जिनेवा पहुंची तो उस दिन यहां स्थित संयुक्त राष्ट्र संघ (यूएनओ) भवन "पैले दा नेशियान" के मुख्य सभागार में आईएलओ का महत्वपूर्ण सालाना अधिवेशन चल रहा था। जिसमें 150 देशों के श्रम मंत्री, दुनिया की विभिन्न सरकारों के वरिष्ठ अधिकारी, उद्योग जगत और मजदूर संगठनों के प्रतिनिधि सहित करीब 2000 लोग मौजूद थे। जब सत्यार्थी जी व 600 लोग, आइएलओ के मुख्यालय में दाखिल हुए तो सभगार तालियों की गूंज से गड़गड़ाने लगा। सभी प्रतिनिधियों ने सत्यार्थी जी व उनके साथियों का जोरदार स्वागत किया। सत्यार्थी जी के साथ कभी बाल मजदूर रहे साधारण बच्चे, सामाजिक कार्यकर्ता और बाल अधिकार कार्यकर्ता थे।
दो बच्चों और कैलाश सत्यार्थी को आईएलओ के सालाना अधिवेशन को संबोधित करने का मौका दिया। इस मौके पर कैलाश सत्यार्थी ने अपनी मांगे रखीं। जिसमें बाल श्रम के खिलाफ एक अंतरराष्ट्रीय कानून बनाने के साथ-साथ साल में एक दिन उन बच्चों को समर्पित करने की मांग की जो बाल दासता, गुलामी और बाल मजदूरी के शिकार हैं। इस दिन उनके अधिकारों और भविष्य पर चर्चा हो। इस यात्रा के करीब एक साल बाद,17 जून 1999 को आईएलओ ने बाल श्रम और बाल दासता के खिलाफ सर्वसम्मति से कनवेंशन-182 पारित किया। यह श्री कैलाश सत्यार्थी सहित उनके आंदोलन की जीत थी। इसके कुछ दिनों बाद संयुक्त राष्ट्र संघ ने सत्यार्थी जी की दूसरी मांग भी मान ली और 12 जून को विश्व बाल श्रम विरोधी दिवस के रूप में मनाने की घोषणा कर दी।
बच्चों को हिंसा से मुक्त करने वाले इस अंतरराष्ट्रीय संधि पर दुनिया के ज्यादातर देशों ने हस्ताक्षर कर दिए थे। लेकिन कुछ देश इसके लिए तैयार नहीं हो रहे थे। श्री सत्यार्थी और उनके संगठन के लोग इन देशों से लगातार संपर्क कर उन्हें इस पर हस्ताक्षर करने के लिए राजी करने का प्रयास कर रहे थे। अब एक मात्र देश टोंगा रह गया था। 4 अगस्त 2020 को कांगो ने भी कन्वेंशन-182 को स्वीकार कर इस पर हस्ताक्षर कर दिया। इस प्रकार यह पहला अंतर्राष्ट्रीय कन्वेन्शन बन गया जिस पर आइएलओ के सभी 187 सदस्य देशों ने हस्ताक्षर कर दिया है।
अस्सी के दशक में अपनी इंजीनियरिंग का बेहतरीन करियर छोड़ कर सत्यार्थी जी ने बच्चों को बाल मजदूरी से छुडाना शुरु किया। इसके लिए वे सीधी छापा-मार कारर्वाइ करते और बच्चों को दासता और गुलामी से मुक्त कराते। जिनकी वजह से उनकी जान को खतरा पैदा हो गया था। उन पर जान-लेवा हमले भी होने लगे। कई बार वे मौत से बाल-बाल बचे।
बाल श्रम व बाल दुर्व्यापार (ट्रैफिकिंग) को रोकने के लिए सत्यार्थी जी पिछले चार दशकों से लगातार संघर्ष कर रहे हैं। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के सभी 187 सदस्य देशों द्वारा कन्वेन्शन-182 को अंगीकार करना विश्व-इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना है और भारत वासियों के लिए यह गर्व का विषय है। इससे बाल-मजदूरी से ग्रसित देशों में बाल-मजदूरी रोके जाने की एक उम्मीद जगी है और करोडों बच्चों के चेहरे पर मुस्कुराहट की आस।
(लेखक प्रोग्रेसिव डेमोक्रेटिक पार्टी के अध्यक्ष हैं)