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केवल क़ानून पर या सरकार पर आश्रित समाज स्वतंत्र नहीं होता, और हिन्दुओं के राष्ट्रीयकरण पर जश्न मत मनाइये

केवल क़ानून पर या सरकार पर आश्रित समाज स्वतंत्र नहीं होता, और हिन्दुओं के राष्ट्रीयकरण पर जश्न  मत मनाइये
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आज एक पोस्ट पर मैंने कमेन्ट किया कि परिवार के निर्णयों में सरकार को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए. उस पोस्ट का सार यह था कि वृद्धों की देखभाल न करने पर बच्चों को संपत्ति से बेदखल करने या सजा का प्रावधान सरकार ने किया है. मेरा मत है कि सरकार का कार्य केवल और केवल शासन और प्रशासन चलाना एवं विदेशों के साथ नीति कैसी रहे वह निर्धारित करना है. परिवार, त्यौहार, और रीति रिवाज में हस्तक्षेप करना सरकार का काम नहीं है. न ही शिक्षा प्रदान करना सरकार का काम है, शिक्षा हर समुदाय के अनुसार होनी चाहिए. पहले उस समाज, समुदाय की मूल बातें और उसके बाद और कोई शिक्षा.

विवाह करना, संपत्ति पर अधिकार, मंदिरों पर अधिकार, मंदिरों के प्रवेश पर अधिकार, हमारा त्यौहार मनाने का अधिकार, और पति पत्नी के मध्य कैसे सम्बन्ध रहें इसका निर्णय केवल और केवल परिवार और समाज की बात है, सरकार और न्यायालय का इसमें कोई भी हाथ नहीं है. अभी एक खबर पर लोग बहुत क्रोधित हो रहे थे कि न्यायालय ने यह निर्णय दिया है कि लड़की के धर्म बदलने पर भी पिता की संपत्ति में उसे अधिकार मिलेगा.

जब आप आज सरकार के इस दखल का स्वागत कर रहे हैं कि यदि वृद्ध पिता के साथ दुर्व्यवहार किया तो बेटे को संपत्ति से बेदखल कर दिया जाएगा या फिर सजा दी जाएगी, तो उस निर्णय का विरोध कैसे कर सकते हैं? हिन्दू समाज पर दहेज़ अधिनियम लागू करने वाली सरकार आज तक मुस्लिम समुदाय पर दहेज़ अधिनियम क्यों नहीं लागू कर पाई है? क्यों उस समुदाय को यह कहने का साहस कर पाई है कि वह बेटों के समान ही संपत्ति में अधिकार दें बेटियों को? क्यों आज तक नकाब या बुर्का प्रतिबंधित नहीं कर पाई है? क्योंकि उन्हें धार्मिक स्वतंत्रता दे दी गयी है और आपको यह छोटे मोटे कानूनों द्वारा बाँध लिया गया है.

आपको एक झुनझुना पकड़ा दिया गया है कि दहेज़ विरोधी क़ानून में आप यहाँ पर आइये? क्यों नहीं सामाजिक रूप से कदम उठाए गए. सरकार ने केवल हिन्दुओं के परिवारों में ही घुसकर क्यों यह कह दिया कि आप यह नहीं कर सकते, वह नहीं कर सकते? जबकि हलाला और तीन तलाक जैसी समस्याएं वहां भी हैं.

आज हमारे मंदिरों का निर्णय सरकार करती है कि कौन प्रवेश करे,या फिर न्यायालय निर्णय करती है कि कौन प्रवेश करे, हमें इतना भी अधिकार नहीं है कि हम सदियों से चली आ रही अपनी परम्पराओं का पालन कर पाएं. इसका कारण है सरकार पर अत्यधिक निर्भरता.

जिस दिन आपने अपने परिवार में यह हस्तक्षेप स्वीकार किया था कि एक विवाह भी सरकार की मर्जी से करेंगे, हम एक विवाह करेंगे, हम बिना पैसे के विवाह करेंगे! (दहेज़ की बात नहीं कर रही हूँ मैं) आदि आदि, तो वह मंदिर पर भी निर्णय लेंगे, आप रोक पाएंगे? नहीं! वह यह तय करेंगे कि जन्माष्टमी पर हमारी मटकी की ऊंचाई क्या हो और वही यह तय करेंगे कि हम अपनी दीपावली पर पटाखे चलाएं या नहीं!

जो समाज अपने परिवार और धर्म में सरकार का अतिशय हस्तक्षेप स्वीकार करता है वह समुदाय के रूप में मरने लगता है क्योंकि आपका राष्ट्रीयकरण कर दिया गया है. हिन्दुओं का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया है, तभी सरकार जब हमारे परिवार को तोड़ने वाला एक कदम उठाती है तो हम ताली बजाते हैं. हम अपने समाज की कुरीति को सामाजिक जागरण से नहीं, आपसी बातचीत से नहीं बल्कि अपने कंधे से जिम्मेदारी झाड़ते हुए सरकार पर थोप देते हैं, और फिर रोते हैं. क्यों भाई?

जैसे आप मन्दिरों को फ्री करने वाला अभियान चला रहे हैं, वैसे ही एक अभियान चलाइये, कि हमारे परिवार को मुक्त किया जाए! हाँ, जहाँ क़ानून व्यवस्था की बात है वहां पर सरकार की बात आए. जैसे चोरी, क़त्ल, आदि. मगर मेरा विवाह कैसे होगा, मेरे बच्चों का विवाह कैसे होगा, कितने लोग आएँगे और खाना क्या होगा? मेरे बच्चों की शिक्षा में मेरी धार्मिक शिक्षाएं भी हों, यह तय करना केवल और केवल मेरा अधिकार हो.

आपको यह समझना होगा, माँग उठाइये कि हमारे त्यौहार और परिवार से सरकार और न्यायालय दूर रहे! यदि दूसरे समुदाय को अपने धर्म के नाम पर खून के नाले बहाने का अधिकार है, जिससे न जाने कितने दिनों तक पानी लाल रहता है, तो हमें कम से कम निश्चित समय के लिए पटाखे चलाने का अधिकार मिले. हमारे त्यौहार और परिवार मुक्त हों सरकार से, हमारे मन्दिर मुक्त हो सरकार से, यह मांग उठाइये, न कि सरकार द्वारा किसी ऐसे कदम का और स्वागत कीजिए, जो आपके धर्म और समुदाय पर एक और प्रहार करे.

स्वतंत्र होने की माँग कीजिये, परिवार को स्वतंत्र कराइये.

हमारे आदर्श परमशिव हैं,शिव की परिवार व्यवस्था हमारा आदर्श है, अर्द्धनारीश्वर हमारा आदर्श है. इस पर ध्यान दीजिये न कि हिन्दुओं के राष्ट्रीयकरण पर जश्न मनाइये

जब आपके अनुसार शिक्षा होगी तो आपका बच्चा वर्णाश्रम को जानेगा अर्थात ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और सन्यास. जब आपका बच्चा आपके धर्म के अनुसार शिक्षा पाएगा तो वृद्ध पिता और पुत्र के मध्य टकराव जैसी बातें आपके जीवन का हिस्सा नहीं बनेंगी

संघर्ष मूल पर कीजिये, किसी भी पार्टी द्वारा किसी लुभावने नारे पर फ़िदा मत हो जाइये, नहीं तो आप हमेशा ही दोयम दर्जे के नागरिक रहेंगे

ॐ नम: परमशिवाय

डॉ राजाराम त्रिपाठी

डॉ राजाराम त्रिपाठी

National Convenor:AIFA Alliance of Indian Farmers Associations & Founder MDHP

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