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आदर्श तिवारी
समकालीन राजनीति में बहुत नेता ऐसे हैं जो अपने कार्यों से चर्चा में रहते हैं, कुछ नेता ऐसे भी हैं जो अपने बयानों से चर्चा में रहते हैं लेकिन अमित शाह एक ऐसा नाम है जो अपने दृढ़ इरादों और अनूठे कार्यों से चर्चा में रहते हैं. बतौर भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष उनके कुशल रणनीति और संगठनात्मक कौशल को देश ने देखा. उन्होंने भाजपा को देश ही नहीं अपितु विश्व की सबसे बड़ी पार्टी बनाया. उन राज्यों में कमल निशाना और भाजपा की विचारधारा को पहुँचाया जो राजनीतिक पंडितों के साथ भाजपा कार्यकताओं के लिए भी कल्पनातीत था. उनकी कार्यशैली इस बात का परिचायक है कि शाह के शब्दकोष में असाधारण और असंभव जैसे शब्द शायद है ही नहीं. वैसे तो शाह के जीवन में कई बड़े उतार-चढ़ाव देखने को मिलते हैं किन्तु शाह हर उतार-चढ़ाव का सामना करते हुए देश की राजनीति में खुद को मजबूती से स्थापित किया है. समकालीन परिदृश्य में यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि नरेंद्र मोदी के बाद शाह सबसे लोकप्रिय व प्रभावशाली नेता हैं. गृह मंत्री के तौर पर शाह ने कम समय में ऐतिहासिक कार्य किया है. चाहें देश की आंतरिक सुरक्षा का मामला हो अथवा राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा विषय, शाह ने बड़ी गंभीरता और संवेदनशीलता के साथ जटिल से जटिल मसलों के समाधान की दिशा में कारगर कदम उठाया है. गृह मंत्री के तौर पर उनके कार्यकाल के दो प्रमुख आयाम देखने को मिले हैं. पहला, देश में शांति और स्थिरता और वर्षों से उपेक्षित मुद्दों को प्राथमिकता के साथ हल करना. इन दो मुद्दे के आधार पर यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी की शाह इन दोनों आयामों में सफल हुए हैं.
वामपंथी उग्रवाद पर प्रभावी कदम- वामपंथी उग्रवाद देश के आंतरिक सुरक्षा के लिहाज से बेहद अहम् माना जाता है. देश की तमाम सरकारों ने इस चुनौती से निपटने का भरसक प्रयास किया किन्तु अमित शाह के गृह मंत्री बनने के उपरांत इस दिशा में योजनाबद्ध तरीके से सुरक्षाबलों ने विशेष ऑपरेशन चलाना शुरू किया, जिसका परिणाम आज हमारे सामने हैं. आंकड़े इस बात की तस्दीक करते हैं कि वामपंथी उग्रवाद में भारी कमी देखी गई है. 2018 के मुकाबले 2022 में वामपंथी उग्रवाद से जुड़ी हिंसक घटनाओं में 39% की भारी कमी आई है. घटनाओं में आई कमी के साथ सुरक्षा बलों के बलिदानों की संख्या में भी 26% की कमी दर्ज की गई हैं. अमित शाह आंतरिक सुरक्षा के विभिन्न पहलुओं की बारीकियों को समझते हैं और अपयश अथवा बिना किसी लाग लपेट के उग्रवाद को हमेशा के लिए खत्म करने की ओर तेज़ी से निर्णय ले रहे हैं.
पूर्वोत्तर में शांति और सीमा विवादों का निराकरण
पूर्वोत्तर देश का ऐसा क्षेत्र रहा है जहाँ हमेशा से अशांति रही है. सरकारें इस बात को नियत मान ली थीं कि वहाँ शांति ला पाना असंभव है, लेकिन नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में शाह ने सुनियोजित तरीके से पूर्वोत्तर में शांति लाने के लिए कदम बढ़ाए. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में जहाँ पूर्वोत्तर विकास की मुख्यधारा से जुड़ा, केंद्र सरकार तमाम परियोजनाओं के जरिये उत्तर-पूर्व को विकास की कड़ी में सहभागी बनाया, वहीँ शाह गृह मंत्री बनने के तुरंत बाद इस क्षेत्र में शान्ति बहाल करने के मिशन में लग गए. यह सर्वविदित सत्य है कि बिना शांति के विकास की संभावना खत्म हो जाती है. इस दिशा में केंद्र सरकार में अभूतपूर्व कार्य किया है. एक के बाद एक समझौते ने यह बता दिया की अगर दृढ़ इच्छाशक्ति हो और नीयत साफ़ हो तो कुछ भी असंभव नहीं है. बोडो समझौता, ब्रू-रियांग समझौता, कार्बी आंगलोंग समझौता. इसमें प्रमुख हैं. इसी तरह अंतरराज्यीय सीमा विवाद को भी सुलझाने में शाह ने अपनी प्रतिबद्धता दिखाई जिसके तहत असम-मेघालय राज्यों के बीच सीमा समझौता हुआ.
अमित शाह की कार्य शैली सबसे अलग है वो सदैव लीक से हटकर कार्य करने के लिए जाने जाते हैं, पार्टी अथवा सरकार से मिले दायित्व पर शत प्रतिशत कैसे खरा उतरना है यह उनका लक्ष्य होता है. वह असधारण लक्ष्य को आसानी से हासिल करने वाले खिलाड़ी हैं. किसी भी विषय को समझने के लिए उसकी गहराई में जाना और उसके सभी पहलुओं को स्वयं देखना-समझना ये शाह के व्यक्तित्व का अहम पहलू है. जब वो संगठन में थे तो उन्होंने बूथ स्तर के कार्यकर्ताओं से संवाद करके जमीनी जानकारी लेते थे, संगठन के सभी पक्षों को समझते थे. आज भी शाह इसी शैली से चलते हैं. वह कभी बीएसएफ जवानों के साथ तो सभी सीआईएसएफ जवानों के साथ ना केवल डिनर अथवा लंच करते हैं बल्कि उनके कैंप में ही रात्रि विश्राम भी करते हैं. इस विश्राम के पीछे का उद्देश्य बड़ा होता है. शाह स्वयं कहते हैं कि 'मैं यहां आना और आप सभी से मिलना चाहता था. आपके अनुभव, परेशानियां और देश को सुरक्षित रखने के जज्बे को समझना चाहता था. इसलिए मैं यहां आ गया.' गृह मंत्री को अपने बीच पाकर जवानों के ना केवल हौसले बढ़ता है बल्कि उनका आत्मविश्वास दोगुना हो जाता है.
सहकारिता क्षेत्र में युगानुकूल परिवर्तन
जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सहकारिता मंत्रालय का गठन किया तो इसका जिम्मा अमित शाह को सौंपा. आज शाह इस क्षेत्र में युगानुकूल परिवर्तन लाने के लिए तमाम तरह के सार्थक प्रयास कर रहे हैं. सहकार से समृद्धि का मंत्र आज सभी प्रदेशों में गूंज रहा है. शाह दक्षिण से लेकर पूर्वोत्तर तक सहकारिता की भावना को नए कलेवर के साथ पहुँचाने सफल दिखाई दे रहे हैं. सहकारिता मंत्रालय कांफ्रेस, सम्मेलनों का आयोजन राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर तो कर ही रहा है इसके साथ ही सहकारिता मंत्रालय सहकारिता क्षेत्र का एक राष्ट्रीय डेटाबेस बनाने जा रहा है. सहकारिता क्षेत्र आज की ज़रूरतों के अनुकूल अपने आप को सशक्त करके एक बार फिर सबका विश्वास अर्जित करे शाह इस लक्ष्य को लेकर आगे बढ़ रहे हैं. सहकारी आंदोलनों को अधिक सशक्त बनाने के लिए नई सहकारिता नीति बनाई जा रही है. शाह ने राष्ट्रीय सहकारिता नीति दस्तावेज का प्रारूप तैयार करने के लिए एक राष्ट्रीय समिति का भी गठन कर दिया है. उपरोक्त बातें यह बताती हैं कि शाह कठिन परिश्रम और नवाचारों से पीछे नहीं हटते. शुरू से ही देखें तो अमित शाह के समक्ष जो भी चुनौतियाँ आईं शाह उससे दो-दो हाथ किए. अपने हर दायित्व में उन्होंने नया कीर्तिमान गढ़ा है. भाजपा के महासचिव बनें तो बतौर प्रभारी उत्तर प्रदेश में भाजपा को ऐतिहासिक सफलता दिलाई. भाजपा के अध्यक्ष के तौर पर उन्होंने भाजपा को उत्कर्ष तक पहुँचाया, जिससे उन्हें लोग चाणक्य की संज्ञा दी. गृह मंत्री बनते ही अनुच्छेद 370 हटाकर इतिहास रच दिया. अमित शाह के जीवन के तमाम ऐसे पहलु हैं जिससे यह साबित होता है कि शाह कर्तव्यपरायण और परिश्रम की पराकाष्ठा करने वाले व्यक्ति हैं. शाह की एक खूबी यह भी है कि वह राजनीति में कभी व्यक्तिगत टिप्पणी नहीं करते हैं. वैचारिक खोखलेपन के दौर में शाह विचारधारा की बगैर राजनीति को निष्प्राण मानते हैं इसी कारण नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता के बाद देश की जनता उन्हें एक लोकप्रिय और मजबूत नेतृत्वकर्ता के रूप में देखती है.