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मन मुताबिक़ परिणाम का एक्जिट पोल देखकर भी बीजेपी खेमें में इतना सन्नाटा क्यों?
यह सब सटोरियों का मायाजाल है! इतने मनोनुकूल एग्जिट-पोल के बाद भी बीजेपी के ख़ेमे में सन्नाटा क्यों पसरा हुआ है और भक्त ख़ामोश क्यों हैं? अब तक तो उन्हें दुनिया सिर पर उठा लेनी चाहिये थी।
आज इकोनॉमिक टाइम्स ने विश्लेषण करके बताया है कि भारत में अब तक हुये एग्जिट-पोल में से 90 प्रतिशत ग़लत निकले हैं । 2004 का शाइनिंग चुनाव, 2015 का बिहार चुनाव, 2017 का यूपी चुनाव और भी बहुत से चुनाव के एग्जिट-पोल के नतीज़े ग़लत निकले । बाहर के देशों में भी इसे 50 प्रतिशत ही सही पाया गया है । कल ही ऑस्ट्रेलिया में एग्जिट-पोल का जनाज़ा निकला है ।
इस देश में लगभग 90 करोड़ मतदाता हैं । एग्जिट-पोल में जैसा कि दावा किया गया है सिर्फ़ 7 से 14 लाख मतदाताओं से बातचीत का नतीज़ा है । अगर आप सोचते हैं कि भारतीय मतदाता वोट डालकर बाहर आते समय किसी बेरोज़गार सर्वेयर को सही बात बतायेगा कि उसने किसको वोट डाला है तो आप भारतीय मानस को नहीं जानते ।
1971 का चुनाव था । राजस्थान की झुंझुनूं सीट से उद्योगपति के के बिरला स्वतंत्र-पार्टी से लोकसभा का चुनाव लड़ रहे थे । झुंझुनूं जाटों का इलाक़ा है । के के बाबू ने इससे पूर्व अपने एक रिश्तेदार राधाकृष्ण को चुनाव लड़वाकर देखा था । राधाकृष्ण चुनाव जीत गये थे । इसके बाद ही के के बिरला ने चुनाव लड़ने की हिम्मत की । अपार पैसा ख़र्च करने के बाद भी यह चुनाव के के बिरला कांग्रेस के शिवनाथ सिंह से हार गये थे ।
मतगणना चल रही थी । के के बिरला 80 हज़ार वोटों से पीछे चल रहे थे । उन दिनों चुनाव-परिणाम जानने के लिये लोग रेडियो से चिपके रहते थे । शाम को 7 बजे के प्रादेशिक समाचारों में ख़बर आई कि के के बिरला झुंझुनूं से 80 हज़ार वोटों से आगे चल रहे हैं । यह समाचार सरासर झूठ था । यह समाचार वाचक या समाचार सम्पादक या बिरला के किसी दलाल की कारस्तानी थी, यह अभी तक रहस्य है । इस ख़बर के बाद सट्टा-बाज़ार का रुख बदल गया । के के बिरला की हार के भाव बढ़ गये ।
कभी के के बिरला के ख़ास रहे एक व्यक्ति ने अपने किसी ख़ास आदमी को बताया था कि के के बिरला ने सट्टे में बहुत सा पैसा अपनी हार पर लगा दिया । नतीज़ा यह कि जितना पैसा के के बाबू ने अपने चुनाव पर ख़र्च किया था उससे कहीं अधिक सट्टे में कमा लिये । के के बिरला चुनाव हार सकते थे लेकिन पैसा नहीं ।
कल के एग्जिट-पोल देखकर यह बात याद आई । मुझे लगता है यह सब सट्टा-बाज़ार का खेल है। और यह भी लगता है कि आज कल में सट्टा-बाज़ार में बीजेपी की हार पर बहुत पैसा लगाया जायेगा। बीजेपी ने 2014 की तरह इस बार भी चुनावों में अपार धन ख़र्च किया है और गुजरात का तथाकथित चाणक्य हार बर्दाश्त कर सकता है लेकिन धंधे में घाटा बर्दाश्त नहीं कर सकता। सटोरियों के शासन में घाटा तो देश को सहना है!
वरिष्ठ पत्रकार और साहित्यकार कृष्ण कल्पित की एफबी वॉल से