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एक बार फिर आमरण अनशन पर बैठेंगे अन्ना हजारे

Special Coverage News
9 Dec 2019 4:18 PM GMT
एक बार फिर आमरण अनशन पर बैठेंगे अन्ना हजारे
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Anna Hazare (File Photo)


हैदराबाद में हुये आरोपियों के एनकाउंटर का कई देशवासियों ने स्वागत किया है। इसमें कोई संदेह नहीं है की आज न्यायिक प्रक्रिया में हो रही देरी के कारण देश के आम लोगों में असंतोष है और इस वजह से लोग उद्विग्न होकर इसका समर्थन कर रहै है। यह कानून और न्याय व्यवस्था केलीय चिंता का विषय है, ऐसा मुझे लगता है।

बलात्कार और हत्या के मामले में 14 अगस्त 2005 में गुनहगार को पश्चिम बंगाल में फांसी दि गई। उसके बाद आज तक किसी के भी फांसी की सजा का अमल हो नहीं पाया है। देश मे अभी तक 426 गुन्हेगारांकडून फांसी की सजा सुनाई गई है लेकिन आज तक कई सालों में उसका अमल हो नहीं पाया। ऐसा समझ में आया है। लोगों को व्यवस्था के माध्यम से न्याय मिलाने का रास्ता, कठिनाई और विलंब के कारण अन्याय लगने लगा है। फांसी की सजा सुनाने के बावजूद अगर अमल नहीं हो रहा तो इस विलंब को जिम्मेदार कौन है? इसकी जांच होकर विलंब करने वालों पे कठोर कारवाई होनी चाहिए। पुणे के ज्योतीकुमार चौधरी बलात्कार और हत्या के फांसी मामले में प्रशासन के विलंबता के कारण सर्वोच्च न्यायालय ने आरोपी की फांसी रद्द करने तक बेजिम्मेदार होने का ना तो हमें दुख है ना शर्म है। अगर ऐसा तो आम आदमी चाहेंगे की ऐसा गुनहेगारो के एनकाउंटर ही होना चाहिए।

न्यायिक प्रक्रिया का मैने खुद अनुभव लिया है। महाराष्ट्र में युती सरकार में मंत्री रहे बबनराव घोलप पर मैने 1998 में करप्शन के आरोप लगाये। सबुत देते हुए भी बदले की भावना से उन्होंने मेरे खिलाफ अब्रू नुकसान का केस दायर किया। कोर्ट ने मुझे तीन माह की सजा दी और 15 दिन में मुझे छोड दिया। उसके बाद स्पेशल कोर्ट ने बबनराव घोलप को उनपर लगे आरोप साबित हुवे इसलिये 2014 में सजा सुनाई। ऐसा ही अनुभव सुरेश जैन के बारे में रहा। 2003 में सबुत के साथ भ्रष्टाचार के आरोप मैनै लगाये। उन्होंने मेरे खिलाफ बदले की भावना से कई जगह अब्रू नुकसान का केस दायर किये। कई साल मैं कोर्ट में जाता रहा। आखिर हालही में 14 साल के बाद मैंने लगाये हुये आरोप कोर्ट में साबित हुये और उन्हें सात साल की सजा सुनाई गई । दोनों मामलों जांच प्रक्रीया और कनिष्ठ अदालतों में न्याय पाने केलिये 15 सालो से ज्यादा समय लगा। पता नही ईन मामलों में अब अपील कितने साल चलते रहेंगे ? इससे लोगतंत्र खतरे में आने की संभावना है।

नाबालिक बेटियों के अत्याचार के मामले बढतेही जा रहे है। निर्भया मामले के बाद देश की जनता के आक्रोश के कारण कानुन में बदलाव हुवे लेकिन आज तक तो निर्भया को हम न्याय नहीं दिलवा सके। ऐसे पता चला है की, फास्ट ट्रॅक कोर्ट में 6 लाख से ज्यादा मामले पेंडिंग है। इसमें से कई 7 से 10 पुरानी है। इसमें क्या मतलब है? महिलाओं के लिये बनाई हेल्पलाइन 1091 ठीकसे काम नहीं करती। सरकार सिर्फ पैसा खर्च करके लोगों में बदलाव और कानुनी प्रक्रिया में सुधार नहीं ला सकती, निर्भया फंड का उधारण है। कई राज्यों ने इसका इस्तेमाल तक नहीं किया। इसमें महाराष्ट्र भी है। महिलाओं के प्रति संवेदनशीलता होनी चाहिए, इच्छा शक्ती होनी चाहिए। यह स्पष्ट हो रहा है की संविधान का पालन नहीं हो रहा है।

मुसीबत तो महिलाओं को पोलीस स्टेशन मे केस रजीस्टरड करने के प्राथमिक स्तर से ही शुरू होती है। हैद्राबाद मामले मे भी यह सामने आया है। व्यवस्था की महिलाओं के प्रती संवेदनशीलता समाप्त हो रही है। 1988 से लेकर आज तक पुलिस व्यवस्था सुधार केलीये कई कमिशन नियुक्त किये गये, उन्होंने सरकार को रीपोर्ट भी सौफी। इतना ही नही 2006 में मा. सर्वोच्च न्यायालय ने प्रकाश सिंग विरूध्द भारत सरकार इस केस में भी पुलिस रीफॉरम के बारे सुझाव दिये परंतु दुर्भाग्य से आज तक यह हो नहीं सके। ज्युडिशियल अकौंटबिलीटी बील 2012 से संसद में प्रलंबित है। यह कानून अगर बना होता तो न्यायालयीन प्रक्रीया मे सुधार आया होता। एक तय सिमा में केसेस की जल्द से जल्द सुनवाई खत्म होना आवश्यक है।

जनता को न्याय मिलाने में अगर देरी हो तो वह भी जनता पर एक अन्याय है। न्यायीक प्रक्रीया के बारे में लोगो के मन में अविश्वास या संदेह निर्माण होना लोकतंत्र को खतरा है। सांसदों की जिम्मेदारी बनती है की संसद में सशक्त कानुन बनाये और कानून में उसका प्रभावी अमल केलिये पर्याप्त व्यवस्था का निर्माण करे।

भारतरत्न डॉ. बाबासाहेब आंबेडकरजीने हमारा संविधान बहुत सुंदर और बहुत ही अच्छा संविधान बनाया है। इसलिए भारत जैसे विस्तीर्ण लोकशाहीवादी देश में अलग अलग जाती-पांती, धर्म-वंश होते हुए भी आजादी के 74 साल के बाद भी हमारा देश मिलजुलकर चल रहा है। इसका श्रेय संविधान को है। संविधान के आधार से संसद में कानून बनते है और कानून के आधार से देश चलता है।

दिल्ली के 2013 के निर्भया मामले में फांसी की सजा सुनाई, सात साल बीतने जा रहे है अभी तक कार्यवाही नहीं हुई है। इसलिए देश की जनता हैद्राबाद एनकाउंटर का स्वागत कर रही है। जल्द न्याय नहीं मिल सकता है लेकिन फांसी की सजा होकर सात साल लगना लोगतंत्र के लिए ठीक नहीं लगता है। इस कारण जनता में अराजकता निर्माण होने का खतरा लगता है।

मैंने अपना जीवन समाज और देश के भलाई के लिए समर्पित किया है। जनता को न्याय मिलने के लिए 20 बार अनशन किया है। कुछ प्रश्न छुट गए। निर्भया को न्याय मिले और देश में ऐसी घटना ना घटे इस के लिए 20 दिसंबर से मौन धारण कर रहा हूँ। और सरकारने कदम नहीं बढाये तो अनिश्चितकालीन अनशन कर रहा हूँ। अनशन की तारीख एक सप्ताह पहले बताई जायेगी।

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