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अन्ना ने खुद को मिलिट्री का रिटायर्ड कर्मी और गाँधी का अनुयायी बताकर लोंगो को भावुक कर देश बरबाद कर दिया!

Shiv Kumar Mishra
16 Sept 2020 9:26 PM IST
अन्ना ने खुद को मिलिट्री का रिटायर्ड कर्मी और गाँधी का अनुयायी बताकर लोंगो को भावुक कर देश बरबाद कर दिया!
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प्रायोजकों ने एक सम्मानजनक तरीका निकाल नौटंकी मंडली को 14 दिन फ्री कर दिया।

सुनील कुमार मिश्र

आज प्रशांत भूषण जी के देश को यह बताने के कोई मायने नही है कि अन्ना का आंदोलन राजनैतिक था। उसको उन्ही शक्तियों का समर्थन प्राप्त था, जिन्होने देश की आजादी की लड़ाई में अंग्रेजी हुकूमत का ना सिर्फ साथ दिया था बल्कि स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के खिलाफ चलने वाले मुकदमों में वो लोग ब्रितानी हुकूमत की तरफ से सरकारी गवाह रहे थे। देश का आम जनमानस आज अच्छे से इस बात को समझ चुका है और अन्ना की हकीकत सबके सामने है।

जब आंदोलन चल रहा था👉उस वक्त भी लोग इस हकीकत से वाकिफ़ थे। लेकिन इस आंदोलन से पहले नई तकनीक वाट्सएप यूनिवर्सिटी के सहारे लोगों तक इतना मवाद फैला दिया गया था कि लोग इस हकीकत से रु-बरु ही नही होना चाह रहे थे। मैने उस वक्त लिखा था कि यह एक तेरह दिन तक अनशन प्रवीण नौटंकी का खेला है। इसमे तेरह दिन तक बिना अन्न के रहने वाले प्रवीण लोग़ है जिनको भूखे रहने की ट्रेनिंग दी गई है। इनका एक नेता है और वह खुद को मिलिट्री का रिटायर्ड कर्मी और गाँधी का अनुयायी बताकर लोंगो को भावुक कर देता है। अगर सरकार 15 दिन तक चुप रह जाती तो सारा खेल सामने होता, क्योंकि अनुबंध सिर्फ़ 13 दिन तक भूखा रखने का था और अगर मालिकान इससे ज्यादा खीचते तो नौटंकी कर्मी रामलीला मैदान छोड़ चाट का ठेला तलाश रहे होते।

लेकिन उससे पहले हो प्रायोजकों ने सरकार को संसद का सत्र बुला कर अन्ना से आन्दोलन खत्म करने की अपील की और सरकार इस बात को मानने को तैयार हुई। प्रायोजकों ने एक सम्मानजनक तरीका निकाल नौटंकी मंडली को 14 दिन फ्री कर दिया।

इस नौटंकी मे नौटंकी मंडली चंदा भी वसूल ले गई, पर देश का कितना नुकसान हुआ यह बताने की आवश्यकता नही है। एक सच्चे और ईमानदार इंसान की काबिलियत पर लोगों ने शक किया👉 उस पाप को देश भोग रहा है। गाँधी के वेश और उनकी नीतियों के नाम पर लोगों को ठगा गया। स्पष्ट है की जिस संगठन ने अन्ना के साथ अनुबंध किया उनके पास खुद का कोई चेहरा नही था। जिसके नाम या विचार से वो देश की जनता को प्रभावित कर पाते, इसलिए यह आंदोलन जिस नाथूराम ने गाँधी को गोली मारी उसी विचार से गाँधी के मृत शरीर को खड़ा करके कलंकित करने का प्रयास था।

प्रायोजक सफल रहे, लेकिन गाँधी अभी हारा नही है और ना मरा है। क्योकि नाथूराम भी नही जानता था कि वो गाँधी को कभी मार नही सकता। गाँधी तो प्रेम, आपसी सद्भाव, सत्य और अहिंसा की अविरल बहने वाली गंगा की तरह शाश्वत विचारधारा है। गाँधी की विचारधारा आज विश्व में मानवता की धरोहर हो चुकी है। जिस तरह छद्मवेश में तुम गाँधी का सहारा लेकर आये थे वही गाँधी सूक्ष्म रुप मे तुम्हारी सब करतूतों का पर्दाफाश करके फिर इस देश मे काबिज होगा। जैसे आज एक आदमी बोलने को मजबूर हुआ वैसे धीरे-धीरे सब बोलेंंगे।

#जै_हिन्द

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