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जम्मू-कश्मीर में 'अनुच्छेद 370' का विकल्प बन सकता है 'अनुच्छेद 371'
क्या मोदी सरकार जम्मू-कश्मीर को अब संविधान के अनुच्छेद 371 के तहत विशेष राज्य का दर्जा देने पर विचार कर रही है। दिल्ली के सत्ता के गलियारों में इस सवाल पर खूब माथा पच्ची हो रही है। ये सवाल इस लिए भी उठ रहा है क्योंकि गुरुवार को प्रधानमंत्री ने जम्मू-कश्मीर केल नेताओं के साथ हुई बैठक में 'दिलों' और 'दिल्ली' की दूरी कम करने का भरोसा दिलाया है। उनका इशारा जम्मू-कश्मीर खासकर कश्मीर घाटी के लोगों का दिल जीतने की तरफ़ था।
राजनीतिक प्रेषकों औकस जम्मू-कश्मीर के राजानीतिक हलात पर पैनी नज़र रखने वाले विशेषज्ञों का मामना को है कि घाटी के लोगों के ज़ख्मों पर मरहम लगान करे लिए मोदी सरकार लचीला रुख अपनाते हुए जम्मू-कश्मीर को संविधान के अनुच्छेद 371 के तहत विशेष राज्य को दर्जा दे सकती है। सियासी हलको में चर्चा है कि गृह मंत्रालय गोपनीय तरीक़े से इस पर काम कर रहा है। ठीक उसी तरह जैसे अनुच्छेद 370 हटाने पर काम किया गया था। यह क़दम राज्य में होने वाले आगामी विधानसभा चुनावों से पहले उठाया जा सकता है। चुनाव से पहले फिलहाल विधानसभा और लोकसभा सीटों के परिसीमन का काम चल रहा है।
दरअसल गुरुवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ जम्मू-कश्मीर के नेताओं की बैठक के बाद राज्य में राजनीतिक हालात फिर सामान्य होने की उम्मीद बंधी है। बताया जा रहा है कि प्रधानमंत्री आवास पर साढ़े तीन घंटे की इस मैराथन बैठक में जम्मू-कश्मीर के राज्य का दर्जा और अनुच्छेद 370 की बहाली की मांग उठी। जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने और पूर्ण राज्य का दर्जा ख़त्म किए जाने के एक साल 10 महीने बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्य की 8 पार्टियों के 14 नेताओं से इस बैठक को कश्मीर में हालात सामान्य होने क दिशा में मील का पत्थर माना जा रहा है।
बैठक के बाद महबूबा मुफ्ती और उमर अब्दुल्ला समेत कश्मीर के नेता पूर्ण राज्य का दर्जा लौटाने के साथ ही आर्टिकल-370 की बहाली पर अड़े दिखे। राजनीतिक प्रेषकों का मानना है मोदी सरकार और राज्य के राजनीतिक दलों के बीत जमी बर्फ़ पिघलाने और घाटी में विश्वास बहाली के लिए अनुच्छेद-371 एक महत्वपूर्ण ज़रिया बन सकता है। इससे बीच का रास्ता निकाला जा सकता है। अभी ये महज़ एक विचार है। लेकिन आगे चलकर ये मूर्त रूप ले सकता है। हालांकि अभी केंद्र सरकार की तरफ़ से इसका ठोस संकेत नहीं दिया गया है। लेकिन एक विचार को ठहरे हुए तालाब में पत्थर की तरह मार कर लहरों का जायज़ा लिया जा रहा है।
हालांकि भाजपा से जुड़े कुछ नेता दावा कर रहे हैं कि गृह मंत्रालय ने इसका ब्लूप्रिंट तैयार कर लिया हैय़। सही समय पर एसका ऐलान किया जाएगा। सूत्रों के मुताबिक, गतिरोध के इस दोराहे में बीच का रास्ता भी तलाश लिया गया है। यह फॉर्मूला अनुच्छेद-370 की वापसी के बजाय जम्मू-कश्मीर के कुछ हिस्सों में अनुच्छेद-371 के विशेष प्रावधान लागू करने का हो सकता है। इन इलाक़ो की पहचान का काम भी जारी है।
11 राज्यों में लागू है अनुच्छेद-371
अनुच्छेद-371 हिमाचल, गुजरात, उत्तराखंड समेत देश के 11 राज्यों में पहले से ही लागू है। कहीं पूरे राज्य में तो कहीं राज्यो के कुछ ख़ास हिस्सों में इसके तहत विशेषाधिकार मिले हुए हैं। राज्यों की विशेषताओं और कुछ ख़ास क्षेत्रों की विशेष सासंकृतिक पहचान को बनाए रखने लिए विशेष प्रावधावन किए गए हैं। इसी तर्ज़ पर जम्मू-कश्मीर में भी विशेष प्रावधान लागू किए जा सकते हैं। इसके लिए मोदी सरकार राज्य के राजनीतिक दलों के साथ अन्य सामाजिक और सांस्कृतिक संगठनो से चर्ता कर सकती है। चुनाव आयोग के सूत्रों के अनुसार राज्य के परिसीमन का काम 31 अगस्त तक पूरा हो जाएगा। तब तक अनुच्छेद-370 के फॉर्मूले पर सहमति बनाने की कोशिश जारी है।
क्या है अनुच्छेद-371
Ø आर्टिकल-371 अभी देश के 11 राज्यों के विशिष्ट क्षेत्रों में लागू है। इसके तहत राज्य की स्थिति के हिसाब से सभी जगह अलग-अलग प्रावधान हैं।
Ø हिमाचल में इस कानून के तहत कोई भी ग़ैर-हिमाचली खेती की ज़मीन नहीं ख़रीद सकता।
Ø मिज़ोरम में कोई गैर-मिजो आदिवासी जमीन नहीं खरीद सकता, मगर सरकार उद्योगों के लिए जमीन का अधिग्रहण कर सकती है। स्थानीय आबादी को शिक्षा और नौकरियों में विशेष अधिकार मिलते हैं।
Ø इस कानून के तहत मूल आबादी की परंपराओं से विरोधाभास होने पर केंद्रीय कानूनों का प्रभाव सीमित हो सकता है।
Ø जम्मू-कश्मीर के कुछ विशिष्ट इलाकों में ऐसे प्रावधान लागू किए जा सकते हैं, जिससे आर्टिकल-370 बहाली की क्षेत्रीय दलों की मांग कमजोर पड़ जाएगी।