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कोरोना की 'तीसरी लहर' के लिए कितना तैयार है यह देश
राजाराम त्रिपाठी
पहली लहर के बाद मिला बहुमूल्य समय चुनाव लड़ने और गरीब किसानों से भिड़ने में ख़र्च कर दिया, और लाखों अनमोल जानें चली गईं ,
चालीस हजार से अधिक ऑक्सीजन जनरेटर हवाई अड्डे पर धूल खाते रहे, इधर लोग एक एक सांस आक्सीजन के लिए तड़प-तड़प कर दम तोड़ते रहे,
एक वेंटिलेटर के लिए बड़ी-बड़ी हस्तियां आपस में लड़ती रहीं, जबकि फ़िरोज़ाबाद मेडिकल कॉलेज में 67 वेंटिलेटर धूल फांकते अपनी किस्मत को रोते रहे,
तीसरी लहर के पहले देश को सही मायनों में एकजुट होकर ठोस,कारगर प्रभावी रणनीति बनानी होगी वरना, इतिहास हमें माफ नहीं करेगा,
इस महामारी की नामुराद 'तीसरी लहर' आनी अभी बाकी है। पहली लहर में हम सस्ते में छूटे तो हमारा हाल बस यही था कि, मानो अंधे के हाथ बटेर लग गई । हम लगे अपने मुंह मियां मिट्ठू बनने और अपनी पीठ थपथपाने। हमें मिले इस अवधि का सदुपयोग करते हुए, पहले से तय 'दूसरी लहर' से एकजुट होकर लड़ने की ठोस तैयारियां करने के बजाय, हमने देश भर में कोरोना-विजय के राजसूय यज्ञ के आयोजन कर डाले, बेहयाई की हद करते हुए, फुलपेजिया विज्ञापन भी छपवा डाले। इस महामारी से लड़ने के कारगर तरीके ढूंढने तथा प्रभावी कार्ययोजना बनाने में अपनी पूरी ताकत लगाने के बजाय के बजाय यह सरकार देश के आंदोलनरत गरीब निरीह किसानों को देशद्रोही साबित करने, तथा येन केन प्रकारेण किसान आंदोलन को तोड़ने और बिहार सहित अन्य राज्यों के चुनावों में अधिकतम सत्ता व शक्ति हासिल कर लेने में अपनी पूरी ऊर्जा झोंक दी। सब के सब सत्ता हथियाने के खेल में मशगूल हो गए, जाहिर है महामारी की दूसरी प्रचण्ड लहर के सामने इनके पास घुटने टेकने के अलावा और कोई चारा ही नहीं था। इतिहास यह निश्चित रूप से सिद्ध करेगा कि, दूसरी लहर की इन बहुसंख्य मौतों को निश्चित रूप से टाला जा सकता था।
महामारी की इस दूसरी लहर में सरकार तथा नेताओं की अकर्मण्यता, अदूरदर्शिता तथा कुप्रबंधन से देश भर में मची अनपेक्षित तबाही में अपने प्रिय जनों को कीड़े मकोड़ों की मौत मरते देख रही जनता के दिलों में सरकार तथा इसके जिम्मेदार नेताओं के प्रति उत्पन्न जबरदस्त नफरत तथा गुस्से को को भांपते हुए सत्ता की कुर्सी के पायों के पहरेदार सक्रिय हो गए हैं, और अपनी क्रीतदासी मीडिया तथा सोशलमीडिया के अनगिनत बेनाम गुलाम योद्धाओं के जरिए देश को सकारात्मकता, शान्ति ,अध्यात्म की घुट्टी पिलानी शुरू कर दी है। इसे सत्ता का राष्ट्रहित में प्रायोजित गरूड़पुराण भी कर सकते हैं ।
जिस चाइना की फुलझड़ी तथा दिए को दिवाली के समय बैन कर के, हम चीन को धूल चटाने, पछाड़ने वाले वाक्यवीर देशभक्त आज चाइना से आ रही 41000, इकतालीस हजार ऑक्सीजन जरनेटर पर मुंह में दही जमाएं बैठे हैं, वैसे ये तो हजारों वर्ग किलोमीटर जमीन को चीन के द्वारा दबाए जाने पर भी कुछ ठोस कार्रवाई तो छोड़िए,अपनी मारक क्षमता के लिए मशहूर वो 'लाल आंखें' भी नहीं दिखा पाए।
सरकार कहती है अस्पतालों में बेड, ऑक्सीजन तथा दवाइयां भरपूर हैं, जबकि अस्पताल में एक अदद बेड के लिए अभूतपूर्व मारामारी है, एक अनार है तो सौ बीमार हैं। दवाइयों तथा ऑक्सीजन की मारामारी का आलम यह है कि, यह अपने मूल्य से बीसों गुना ज्यादा अदा करने के लिए तैयार मरीजों को भी नहीं मिल पा रहा है। लोग बिना अस्पताल ,ऑक्सीजन तथा दवाइयों के तड़प तड़प कर मर रहे हैं। दवाइयों की कालाबाजारी या गिद्धभोज का एक उदाहरण देखिए, एक ओर विश्व स्वास्थ्य संगठन तथा सरकार के विशेषज्ञ कहते हैं कि, रेडमेसिविर इस महामारी की मान्य जरूरी दवाई ही नहीं है, दूसरी ओर आपदा में अवसर ढूंढने वाले हमारे चिकित्सा बाजार ने ऐसा गजब का माहौल तैयार कर दिया कि, एक एक रेमडेसिविर इंजेक्शन के लिए मरीज यथाशक्ति मुंहमांगा पैसे देने के लिए तैयार हैं, दूसरी ओर अब इसका क्या करिएगा कि, पंजाब में चमकौर साहिब में भाखड़ा नहर से हजारों रेमडेसिविर तथा चेस्ट इंफेक्शन के इंजेक्शन आदि बरामद हो रहे हैं। हालात यह है कि एक वेंटीलेटर के लिए देश की बड़ी-बड़ी हस्तियां , जिनकी हनक से सरकारों की कुर्सियां भी हिल जाती थी,आज छीना छपटी मचाने के वावजूद, बेचारे अपने विशिष्ट और सर्व समर्थ होने के खण्डित विश्वास के साथ बिना वेंटिलेटर, बिना आक्सीजन के एक एक सांस के लिए संघर्ष करते हुए, अंत में पराजित होकर दम तोड़ रही हैं, वहीं दूसरी ओर फ़िरोज़ाबाद मेडिकल कॉलेज में 67 वेंटिलेटर धूल फांकते हुए,अपनी किस्मत को रो रहे हैं, ऑक्सीजन के टैंकर राज्यों की सीमाओं में कागजी खानापूर्ति की राह तकते अटके पड़े हैं ।
विभिन्न सरकारी विभागों के आपसी तालमेल के अभाव तथा अनावश्यक कानूनी पेचीदगियों के चलते, शीघ्रातिशीघ्र अस्पताल पहुंचकर लोगों की जान बचाने के बजाय,यह चीन से आई ये ऑक्सीजन जनरेटर जीवन रक्षक मशीनें हवाई अड्डे पर धूल खाती पड़ी रहीं और लोग आक्सीजन के अभाव में एक ही सांस के लिए तड़प तड़प कर जान देते रहे। यह जीवन रक्षक दवाइयों तथा वैक्सीन विभिन्न टैक्स से अगर मुक्त रखी जाती तो उस बचे हुए टैक्स के बदले अतिरिक्त दवाइयां तथा मशीनें खरीद कर लाखों जानें बचाई जा सकती थी। लालफीताशाही के ऐसे शर्मनाक उदाहरण अन्यत्र मिलना कठिन है,, पर हमारे यहां आप एक ढूंढोगे, हजार मिल जाएंगे। इस देश के हर डाल पर बैठे इन उल्लूओं का स्थाई इलाज बेहद जरूरी है । आपदा से उबरने में अग्रगामी नीति, त्वरित निर्णय तथा समुचित समन्वय व प्रभावी प्रबन्धन बहुत जरूरी हैं। किंतु हमारी सरकारें तथा हमारे अधिकांश गलाबाज नेता उपरोक्त सभी कसौटियों पर पूरी तरह से नाकारा तथा निकम्में निकले। कुप्रबंधन की ऐसी मिसालें मिलना मुश्किल है। इस मामले में साधनों के मामले में हमसे बहुत ज्यादा विपन्न, पड़ोसी देशों ने जैसे बांग्लादेश, नेपाल भूटान आदि ने हमसे बेहतर प्रदर्शन किया है। यहां तक की पाकिस्तान के नाम पर चाहे आप जितनी राजनीति कर लीजिए,परंतु यह सच है कि, हर मोर्चे पर पिटने तथा अपनी मूर्छित अर्थव्यवस्था व सीमित साधनों के बावजूद, कोरोना से लड़ने और अपनी जनता की जान बचाने के मामले में उनका भी प्रदर्शन हमसे हर हाल में बेहतर है। अगर आप का अदम्य राष्ट्रवाद, इनसे अब भी कुछ सीखने को तैयार नहीं, तो हम अपने ही देश में हमारे सबसे बड़ी प्रदेशों में से एक महाराष्ट्र तथा सबसे छोटे प्रदेश केरला जिन्होंने सीमित संसाधनों में अपने बूते इस महामारी की भयावहता पर एक हद तक नियंत्रण पाने में सफलता पाई है, इनसे भी बहुत कुछ सीखा जा सकता है, पर इसके लिए सबसे पहले तो इस नेतृत्व को सर्वज्ञानी, सर्वसमर्थ, त्रिकालदर्शी अवतारी पुरुष होने का झूठा दंभ त्यागना होगा। अब वक्त आ गया है कि, आप दसलखिया सूट त्याग कर, दस हजार करोड़ों के पुष्पक विमान, तीसहजार करोड़ के नए संसद तथा अपने नए बंगलों के मुंगेरी ख्वाबों छोड़ कर यथार्थ की धरती पर पैर जमाएं, अपना एकलाप छोड़कर बिलखती जनता का यह करूण विलाप सुनें तथा इस पर युद्ध स्तर पर तत्काल कार्रवाई करें। आपके पास जो भी नारायणास्त्र, पाशुपतास्त्र ,वरूणास्त्र ,अग्नियास्त्र, ब्रह्मास्त्र आदि जितने भी दिव्यास्त्र है सबका यथोचित प्रयोग करें, और अगर यह सब नहीं कर सकते तो बची खुची इज्जत व गरिमा के साथ अपना तथाकथित बहुचर्चित झोला ढूंढें और उसे लेकर उस 'कंदरा' की ओर, इस बार बिना फोटोग्राफर को साथ लिए निकल जाएं, क्योंकि अब इस असह्य दुःख के दौर में आपकी डिजाइनर तस्वीरें देखने में कोई विशेष रूचि नहीं रही। वहां जाकर तपस्या तथा आत्म चिंतन करेंगे तो निश्चित रूप से इस कथ्य का तथ्य आप को समझ आएगा।
दरअसल हमारे देश में कोई नेक योग्य व्यक्ति समाज सेवा की ईमानदार चाहत रखने के बावजूद चाह कर भी राजनेता नहीं बन सकता क्योंकि यहां पर लच्छेदार झूठे सच्चे भाषण देने, अपूर्णनीय आश्वासन देकर फुसलाने में महारत तथा कुटिल चालों के द्वारा येन केन प्रकारेण सत्ता पर काबिज होना ही अच्छे राजनेता बनने की मुख्य शर्त है, विपदाओं तथा महामारियों से बचाने के लिए तो हमारे भगवान हैं ही, फिर अगर मर भी गए तो ,यह आपके कर्मों का ही तो फल है। और यदि मर रहे ही हैं, तो यह क्यों भूल जाते हैं कि " नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः"। इसलिए हे पार्थ! जनता तू दिनों दिन बढ़ रहे मृत्यु के आंकड़ों से कदापि चिंतित ना हों, बस धीरज धरो आंकड़ों की बाजीगरी से हम अंततः यह सब एकदम ठीक कर देंगे । कौन किसका भाई ,कौन किसका पिता और किसका पुत्र ? आखिर किस की चिंता करते हो? जो आया है, सो जाएगा ही। आखिर क्या लेकर आए थे, और क्या लेकर जाओगे ? हम पर विश्वास करो क्योंकि "विश्वासम फलदायकम, संशयात्मा विनश्यति,"। इसलिए सावधान पार्थ!! प्रभु पर विश्वास रखते हुए प्रभु भक्ति जारी रखो बस!! ख्याल रहे कि, अवतारी पुरुष की शान में गुस्ताखी करना राष्ट्रद्रोह है । यह 'नवगीत' हमारी बिकी मीडिया और सोशल मीडिया के क्रीत सैन्यदल जत्थे बैंड बाजे के साथ एक सुर में गाने और जनता को सुनाने में लगे हुए हैं। पर क्या सत्ता और उसके अनुगामियों के सप्तमसुर मृत्यु गान के अनुनाद में असंख्य दम तोड़ते लोगों की आंहों,कराहों तथा दिल दहलाने वाली चीत्कारों का स्वर,इस नवगीत से दबाया जा सकता है?
इन विषम परिस्थितियों के निर्माण में इस नामुराद महामारी के साथ हमारा भी योगदान कम नहीं है। हमारा देश अतिआशावादियों का देश है, हर कठिन परिस्थितियों में हम चमत्कार की उम्मीद रखते हैं और यदि समस्या बहुत बड़ी और राष्ट्रीय या वैश्विक हुई तो अवतारों की। हमारे देश में अपने आप को भगवान कहलाने वाले बाबाओं की उत्पत्ति व नित्य स्वयंभू अवतारों के प्रकट होने का रहस्य भी यही है। पिछले कुछ वर्षों से यह परिपाटी बदली है अब हम बाबाओं के बजाय नेताओं में मुक्तिदाता तथा अवतार ढूंढ रहे हैं। कोरोना महामारी ने हमारी बहुत सारी धारणाओं व विश्वासों की कलई उधेड़ दी है, पर हम अब भी अपने इन नकली, बहुरूपिए , झूठे, बड़बोले व मक्कार नेताओं से चमत्कार की उम्मीद लगाए बैठे हैं। दरअसल इन नेताओं से ज्यादा दोष इनके चाटुकारों,मुग्ध अंधभक्तों का है, जो इनके निकृष्ट जीवन चरित को, झूठ व अतिरंजना से धो-पोछकर, चमका कर इनके फर्जी जीवनचरित पर कॉमिक्स, वीडियो गेम, बनाकर, विरूदावली, चालीसा लिखकर, इन्हें मानव से महामानव और अंततः भगवान का अवतार साबित करने की होड़ इन्हें घटिया इंसान से अच्छा मानव तो नहीं बना पाती , बल्कि अपार शक्ति प्रदान कर इन्हें आत्ममुग्ध महादानव अवश्य बना डालती है।
अब इस महामारी की तीसरी लहर के आने की भविष्यवाणियां की जा रही हैं। यह कितनी खतरनाक होगी , इसके झोले में हमारे लिए क्या-क्या विपदाएं हैं, यह हमें नहीं पता। लेकिन इस अवश्यंभावी तीसरी लहर आने के पूर्व इस देश को तय करना होगा कि, क्या हम इस महामारी की तीसरी लहर से इन्हीं नेताओ, नीतियों तथा उनके इन्हीं असफल साबित तौरतरीकों और हथियारों से ही लड़ेंगे, या फिर हम सब मिलकर इसके लिए नया कुछ ठोस सोचेंगे, लक्ष्य तय करेंगे और इस महामारी से समुचित योजनाबद्ध ,अनुशासित एकजुट समुदाय के रूप में चरणबद्ध तरीके से लड़ कर इसे पूरी तरह से परास्त कर इसे दफन कर देंगे। इसके लिए हमारी सरकार को विशेषकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी को तत्काल पहल करनी चाहिए तथा सभी दलों को के साथ बैठकर ,मिलजुलकर इस आपदा से निपटने की न केवल सर्वसम्मत कारगर रणनीति बनानी चाहिए। सभी राजनैतिक दलों को अपने क्षूद्र राजनैतिक एजेंडों तथा पूर्वाग्रहों से ऊपर उठकर, एकजुट होकर इससे निर्णायक लड़ाई लड़ना चाहिए तभी यह राजनीतिक पार्टियां तथा इसके नेता भविष्य में सत्ता की गद्दी के योग्य माने जाएंगे वरना देश और जनता की झूठी दिखावटी चिंता छोड, इन्हें भी इसी महामारी के साथ ही हमेशा के लिए दफन हो जाना चाहिए। जनता अपने लिए निश्चित रूप से कुछ न कुछ कर ही लेगी, जो वर्तमान से तो बेहतर ही होगा।
डॉ राजाराम त्रिपाठी राष्ट्रीय संयोजक अखिल भारतीय किसान महासंघ (आईफा)