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भ्रष्टाचार के चंगुल से निकलने के चक्कर मे हम सांप्रदायिकता के चक्रव्यूह में आ गए
मनीष सिंह
भ्रष्टाचार के चंगुल से निकलने के चक्कर मे हम सांप्रदायिकता के चक्रव्यूह में आ गए हैं। इससे निकलने का संघर्ष बड़ा खूंरेज और डरावना होगा। जब जब आपके इससे बाहर आने की राह पर दिखेंगे, खून बहेगा.. बम फटेंगे, बलात्कार, हत्या, दंगे आम हो जाएंगे। कहीं कोई मुद्दा अचानक खड़ा होगा, कुछ लोग सीधी कार्यवाही करने लगेंगे। बवंडर उठेगा.. आप पर मनोवैज्ञानिक दबाव होगा। आपको विश्वास दिला दिया जाएगा कि आपकी कौम पर एक ऑर्गनाइज्ड हमला हो चुका है। आप और डरेंगे, और उन्ही की गोद मे लौट जाने को बेताब हो जाएंगे।
बच्चो को पाप लगने, भूत दिखने, बच्चा पकड़ने ले वाले बाबा की होक्स याद हैं न ?? आपका भयभीत होना ही उनका काम बनाता है। लेकिन जिस दिन आप भूत की कहानियों पर हंसने लगे थे, बच्चा पकड़ने वाले बाबे से डरना बन्द किये थे.. उसी दिन से बड़े होना शुरू किया थे।
मगर शक है.. आप इतने बड़े भी नही हुए कि धर्मरक्षा, राष्ट्ररक्षा, या आरक्षण विरोध जैसी सीमिंगली-जस्टिफाइड चीजो के रैपर में छुपी साम्प्रदायिकता को पहचान सकें। आप हर क्षण आक्रामक प्रतिक्रिया के लिए तैयार सैनिक बन चुके है।
सैनिक का जीवन सुख का नही होता, आजादी का नही होता, सवाल करने का नही होता। न उंसके जीवन की सुरक्षा की गांरन्टी होती है। सुरक्षा सिर्फ एक बात में होनी है- थोक के भाव मे मशीन में बटन दबाए।
जीवन या स्वतंत्रता.. ? और आप भगतसिंह तो हैं नही।