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अयोध्या मामले पर पुनर्विचार याचिका दाखिल करेगा मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, जानिए क्या कहता है कानून?
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) ने अयोध्या मामले पर फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका (रिव्यू पिटीशन) दाखिल करने का ऐलान किया है. रविवार को ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा कि हमको मस्जिद के बदले दूसरी जगह पर दी जाने वाली 5 एकड़ जमीन मंजूर नहीं है. हम दूसरी जमीन पाने के लिए अदालत नहीं गए थे. हमको वही जमीन चाहिए, जहां पर बाबरी मस्जिद बनी थी. अब यहां सवाल यह उठता है कि क्या सुप्रीम कोर्ट को अपने फैसले पर पुनर्विचार करने का अधिकार है?
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के उपाध्यक्ष और सीनियर एडवोकेट जितेंद्र मोहन शर्मा का कहना है कि संविधान के अनुच्छेद 137 के तहत सुप्रीम कोर्ट को अपने फैसले पर पुनर्विचार करने का अधिकार मिला है. यह अधिकार सिर्फ सुप्रीम कोर्ट के पास है. सुप्रीम कोर्ट के अलावा हिंदुस्तान की किसी भी कोर्ट या ट्रिब्यूनल को अपने फैसले पर पुनर्विचार करने का अधिकार नहीं हैं. सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट जितेंद्र मोहन शर्मा ने बताया कि अयोध्या मामले के पक्षकार पुनर्विचार याचिका दायर कर सकते हैं.
उन्होंने बताया कि सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका फैसला आने के एक महीने के अंदर दाखिल करनी होती है. एक सवाल के जवाब में सीनियर एडवोकेट जितेंद्र मोहन शर्मा ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में दाखिल होने वाली 99.9 फीसदी पुनर्विचार याचिकाएं खारिज हो जाती हैं. सिर्फ 0.1 फीसदी पुनर्विचार याचिकाओं पर सुनवाई होती है. उन्होंने यह भी बताया कि पुनर्विचार याचिका सुप्रीम कोर्ट की उसी बेंच के समक्ष दाखिल की जाती है, जिसने फैसला सुनाया है.
जब सीनियर एडवोकेट जितेंद्र मोहन शर्मा से सवाल किया गया है कि अयोध्या मामले पर फैसला सुनाने वाले चीफ जस्टिस रंजन गोगोई रिटायर हो रहे हैं, तो क्या इस मामले की पुनर्विचार याचिका के लिए नई बेंच का गठन किया जाएगा, इस पर सीनियर एडवोकेट शर्मा ने कहा कि चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की जगह बेंच में दूसरे जस्टिस को शामिल किया जाएगा. हालांकि बाकी बेंच में शामिल 4 जस्टिस वही रहेंगे.
सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के उपाध्यक्ष जितेंद्र मोहन शर्मा ने यह भी बताया कि अगर अयोध्या मामले में पुनर्विचार याचिका खारिज हो जाती है, तो क्यूरेटिव पिटीशन दाखिल की जा सकती है.
अयोध्या मामले में क्या था सुप्रीम कोर्ट का फैसला?
आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट के 5 न्यायमूर्तियों की पीठ ने अयोध्या मामले में 9 नवंबर को रामलला विराजमान के पक्ष में फैसला सुनाया था. साथ ही सुन्नी वक्फ बोर्ड को अयोध्या में ही अलग से पांच एकड़ जमीन देने का आदेश दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने सुन्नी वक्फ बोर्ड को पांच एकड़ अलग से जमीन देने का फैसला अनुच्छेद 142 के तहत मिले अधिकार का इस्तेमाल करते हुए दिया था. इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या मामले के पक्षकार निर्मोही अखाड़ा और शिया वक्फ बोर्ड का दावा खारिज कर दिया था.