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अयोध्या का फैसला: राजीव गांधी ने खुलवाया था विवादित परिसर का ताला, चाबी लगी मोदी के हाथ

Special Coverage News
10 Nov 2019 4:00 AM GMT
अयोध्या का फैसला: राजीव गांधी ने खुलवाया था विवादित परिसर का ताला, चाबी लगी मोदी के हाथ
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अविजित घोष

अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट का बहुप्रतीक्षित फैसला भारत के लिए बड़ा सामाजिक और राजनीतिक महत्व रखता है। मौजूदा राजनीति में हावी बीजेपी ने जिस समय इस मुद्दे को पकड़ा था, तब उसकी स्थिति आज की कांग्रेस से भी कहीं ज्यादा कमजोर थी। 2019 में 303 सीटें जीतकर सत्ता में आई बीजेपी को कुल 37 फीसदी वोट मिले, जबकि 2014 में यह आंकड़ा 31 फीसदी का था। यह इसलिए भी अहम है क्योंकि मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस को उसके मुकाबले आधे यानी 19 फीसदी वोट ही मिले।

हालांकि 35 साल पहले की तस्वीर देखें तो बिलकुल उलट थी। आज के तमाम युवा वोटरों को शायद इस बात पर यकीन भी नहीं होगा कि 1984 के आम चुनाव में कांग्रेस को 404 लोकसभा सीटें मिली थीं और 49 फीसदी वोटों के साथ राजीव गांधी पीएम बने थे। दूसरी तरफ बीजेपी को महज 8 पर्सेंट वोट ही मिले और सिर्फ दो सीटें ही पार्टी जीत सकी थी।

तब से अब तक भारत की राजनीति में बड़ा वैचारिक बदलाव भी देखने को मिला है। समाजशास्त्रियों और नौकरशाहों का मानना है कि 1980 के दशक के अंत में शुरू हुए राजन्मभूमि आंदोलन ने देश में दक्षिणपंथी विचारधारा को मुख्यधारा में लाने का काम किया। पूर्व पीएम राजीव गांधी के दो फैसलों के चलते इस विचार को बल मिला।

शाहबानो केस में राजीव के फैसले से मिला राइट विंग को बल

राजीव गांधी का पहला फैसला वह था, जिसके तहत उन्होंने सुप्रीम कोर्ट की ओर से तलाक पीड़ित मुस्लिम महिला शाहबानो को गुजारा भत्ता दिए जाने के आदेश को पलट दिया था। यह फैसला साफतौर पर मुस्लिम कट्टरपंथियों को खुश करने वाला था। अपनी किताब 'माय इयर्स विद राजीव ऐंड सोनिया' में पूर्व गृह सचिव आर.डी. प्रधान लिखते हैं कि मैंने राजीव गांधी को इस बारे में बात करते हुए सुझाव दिए थे।

राजीव से बोले थे प्रधान, आप मुश्किल स्थिति में हैं

उन्होंने लिखा, 'पीएम राजीव गांधी से बात करते हुए मैंने कहा कि आप मुश्किल स्थिति का सामना कर रहे हैं, लेकिन मैं समझता हूं कि आप मुस्लिम युवाओं और देशभर के अन्य युवाओं के वास्तविक नेता हैं। आप जो चाहते हैं करें, लेकिन अपनी प्रोग्रेसिव लीडर की छवि से समझौता न करें।' इस पर राजीव गांधी ने जवाब दिया था, 'प्रधानजी आप यह न भूलें कि मैं राजनेता भी हूं।'

तब राजीव गांधी को इस नौकरशाह ने दी थी नसीहत

पूर्व नौकरशाह ने कहा कि मैं राजीव गांधी की इन बातों से चिंतित हुआ था। प्रधान ने कहा, 'उस दौर तक राजीव गांधी अन्य आम नेताओं के मुकाबले कहीं तेजी से आगे बढ़े थे। उन्होंने साबित किया था कि वह बोल्ड फैसले ले सकते हैं। लेकिन, उस फैसले के बाद वह राजनीतिक जटिलताओं में फंसते चले गए।' इसके बाद फिर उन्होंने दूसरी बड़ी गलती की। वह शायद यह साबित करना चाहते थे कि उन्हें जितना मुस्लिमों की भावनाओं का ख्याल है, उतना ही हिंदुओं का भी। फरवरी 1986 में उन्होंने बाबरी मस्जिद के विवादित परिसर का ताला खोलने का आदेश दिया ताकि हिंदू समाज के लोग उसमें पूजा कर सकें।

तुष्टिकरण के दुष्चक्र में फंस गए थे राजीव गांधी?

मई 1986 में पत्रकार नीरजा चौधरी ने लिखा था, 'चुनावी फायदे के लिए दोनों समुदायों के तुष्टिकरण की जिस नीति पर सरकार आगे बढ़ रही है, वह एक तरह का दुष्चक्र है और उसे तोड़ना मुश्किल होगा।' विवादित परिसर का ताला खोलने से भगवा ब्रिगेड का तुष्टिकरण नहीं हुआ बल्कि इससे उन्हें हौसला मिला। अब वहां पर उन्होंने राम जन्मभूमि मंदिर की मांग करते हुए आंदोलन शुरू कर दिया।

जब गांव-गांव से संघ परिवार ने मंगाई राम शिला

इस आंदोलन को तेज करते हुए वीएचपी, आरएसएस और बीजेपी ने देशभर से राम शिला, ईंटें मंगानी शुरू कर दी। गांव-गांव से इन्हें पूजकर अयोध्या भेजा जाने लगा। इन ईंटों को लेकर कहा गया था कि इन्हें अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण में लगाया जाएगा। तमाम लोगों का यह भी मानना है कि 1987 में दूरदर्शन पर प्रसारित रामायण सीरियल ने भी हिंदुओं तक पहुंच बढ़ाने में योगदान दिया।

'जेपी मूवमेंट से मुख्यधारा में आई RSS की विचारधारा'

राजनीति शास्त्र के विद्वान इम्तियाज अहमद इससे थोड़ी इतर राय रखते हुए कहते हैं कि देश की मुख्यधारा में दक्षिणपंथ की एंट्री 1970 के दशक में ही शुरू हो गई थी। वह कहते हैं कि उस दौर में आरएसएस और उसकी विचारधारा को भारतीय राजनीति में अछूत माना जाता था। लेकिन, जेपी आंदोलन के दौरान संघ विपक्षी दलों के करीब आया। इमर्जेंसी के दौरान उसके लीडर जेल भी गए। यहीं से दक्षिणपंथी विचारधारा राजनीति के केंद्र में आनी शुरू हुई।

आडवाणी की रथयात्रा ने दी नई ऊंचाई

फिर लालकृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा ने इसे नई ऊंचाई पर ले जाने का काम किया। इम्तियाज अहमद कहते हैं कि राजीव गांधी को ताला खुलवाने के लिए गलत ठहराया जा सकता है, लेकिन वह महज एक घटना थी। यदि ताला न खुलवाया जाता तब भी राइट-विंग फोर्सेज अपना दबाव बढ़ाने के लिए तैयारी कर ही रही थीं।

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